लड़े पाकिस्तानी सेना-नेता: खतरे में इमरान की सत्ता, मच गया घमासान
इस्लामाबाद में हुई विपक्षी दलों की बैठक को लंदन से पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी संबोधित किया और देश की मौजूदा समस्याओं के लिए इमरान खान सरकार को नहीं, बल्कि "उन्हें सत्ता में बिठाने वालों" को जिम्मेदार बताया।
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियां सेना से दो दो हाथ करने के मूड में दिख रही हैं। पिछले दिनों सत्ताधारी दल पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ को छोड़कर सभी अहम विपक्षी पार्टियों ने एक गठबंधन बनाया है और देश भर में अगले महीने से बड़े विरोध प्रदर्शनों और रैलियों की तैयारी हो रही है।
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अयोग्य हुकमरानों को देश पर थोपा
इस्लामाबाद में हुई विपक्षी दलों की बैठक को लंदन से पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी संबोधित किया और देश की मौजूदा समस्याओं के लिए इमरान खान सरकार को नहीं, बल्कि "उन्हें सत्ता में बिठाने वालों" को जिम्मेदार बताया।
नवाज़ का इशारा पाकिस्तान की सेना की तरफ था। उन्होंने कहा कि आज देश जिन हालात का सामना कर रहा है, उसकी बुनियादी वजह वे लोग हैं जिन्होंने जनता की राय के खिलाफ अयोग्य हुकमरानों को देश पर थोपा है।
धांधली का आरोप
यह पहला मौका नहीं है जब शरीफ और अन्य विपक्षी नेताओं ने सेना पर 2018 के आम चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है। नेताओं ने इसके पहले भी सैन्य जनरलों पर लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगाया हुआ है।
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लेकिन विपक्ष की हालिया बैठक में सेना विरोधी आवाजें बहुत मुखर सुनाई दीं। बैठक में मौजूद सभी पार्टियां इस बात पर सहमत थीं कि सेना अपनी संवैधानिक भूमिका से बाहर जा रही है। नवाज शरीफ की राय में, ‘सेना आज देश से ऊपर हो गई है।‘
बदहाल देश
पाकिस्तान में सेना और राजनेताओं के बीच टकराव की स्थिति ऐसे समय में बन रही है जब देश की अर्थव्यवस्था बदहाल है और मानवाधिकारों की स्थिति चिंतातनक है। जलवायु परिवर्तन और कोरोना वायरस ने इन समस्याओं को और बढ़ाया है।
सांसदों और सैन्य अधिकारियों के बीच बेहतर तालमेल देश को संभालने में मदद कर सकता है। लेकिन सवाल यही है कि क्या पाकिस्तान को एक नई सामाजिक व्यवस्था की जरूरत है जिसमें पाकिस्तान की सेना और चुनी हुई सरकार एक साथ काम कर सकें।
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दायरे में रहे सेना
पाकिस्तान की सिविल सोसायटी चाहती है कि 1973 के संविधान में सेना की जिस भूमिका का जिक्र है, वह उसी के दायरे में रहे। मानवाधिकार समूह पाकिस्तानी सेना पर गैरकानूनी रूप से सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने और मीडिया की सेंसरशिप का आरोप लगाते हैं। प्रबुद्ध लोग चाहते हैं कि नागरिक प्रशासन से जुड़े सभी मामले चुनी हुई सरकार के अधीन होने चाहिए जिनमें घरेलू नीतियों से लेकर अर्थव्यवस्था और विदेश नीति, सब कुछ शामिल है।
लेकिन जमीन पर हालात बिल्कुल अलग हैं। 1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान बनने के बाद से सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पाकिस्तान की सियासत में अहम भूमिका निभाते रहे हैं।
इमरान पर आरोप
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि सेना और राजनीति दलों को करीब लाने का काम प्रधानमंत्री इमरान खान का है। उनका कहना है कि इमरान खान संसद के नेता हैं। उन्हें लोकतांत्रिक समूहों के लिए जगह तैयार करनी होगी, विपक्ष के साथ बात करनी होगी। लेकिन वह तो उनसे बात ही नहीं करना चाहते। असल में प्रधानमंत्री ने गैर निर्वाचित अफसरों को ज्यादा अहमियत दे दी है।
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सेना को नेताओं पर भरोसा नहीं
एक तर्क ये भी है कि सेना देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करना चाहती है लेकिन उसे नेताओं पर भरोसा नहीं है। मिसाल के तौर पर नवाज़ शरीफ सेना की शक्तियों को कम करना चाहते हैं। इसी से अविश्वास पैदा होता है।
सेना यह नहीं चाहती कि चुनी हुई सरकार भारत से संबंध सामान्य करने के लिए कोई तात्कालिक कदम उठाए, जैसा कि नवाज शरीफ ने 2013 से 2017 के बीच बतौर प्रधानमंत्री अपने तीसरे कार्यकाल में करने की कोशिश की थी।
टकराव की स्थिति से बचने के लिए कई लोग बीच का रास्ता अपनाने का सुझाव देते हैं। पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग के महासचिव खालिक कहते हैं कि पाकिस्तान को जो चाहिए वह है संसद की सर्वोच्चता जो संविधान के मुताबिक होनी चाहिए।
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