लाखों में हिंसक झड़पे: सड़क पर आया तबाही का मंजर, ऐसे खूंखार विरोध प्रदर्शन

पोलैंड की राजधानी वॉरसा में शुक्रवार को करीब 4 लाख से अधिक लोग सड़कों पर आ गए। इसके बाद गर्भपात के अधिकार के समर्थक बीते हफ्ते में जोरो-शोरों से प्रदर्शन करते रहें। वहीं वॉरसा में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर दनादन आग के गोले फेंके गए।

Update: 2020-11-01 13:37 GMT
राजधानी वॉरसा में शुक्रवार को करीब 4 लाख से अधिक लोग सड़कों पर आ गए। इसके बाद गर्भपात के अधिकार के समर्थक बीते हफ्ते में जोरो-शोरों से प्रदर्शन करते रहें।

वॉरसा: पोलैंड के हालात काफी ज्यादा हिंसात्मक हो गए हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर तरह के स्वैच्छिक गर्भपात को असंवैधानिक करार देने के बाद से स्थितियां बिगड़ती ही जा रही हैं। ऐसे में राजधानी वॉरसा में शुक्रवार को करीब 4 लाख से अधिक लोग सड़कों पर आ गए। इसके बाद गर्भपात के अधिकार के समर्थक बीते हफ्ते में जोरो-शोरों से प्रदर्शन करते रहें। वहीं वॉरसा में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर दनादन आग के गोले फेंके गए। साथ ही दर्जनों लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

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हजारों लोग इस हफ्ते सड़कों पर

ऐसे में सामने आई रिपोर्टों के अनुसार, प्रदर्शनकारियों और दक्षिणपंथी गुटों के बीच देश के कुछ दूसरे शहरों में भी झड़पें हुईं। और अब इस हफ्ते ऐसा होने की आशंकाएं और गहन हो गई हैं। साथ ही दक्षिणपंथी गुट 'फालांगना' ने एलान किया है कि गर्भपात विरोधी हजारों लोग इस हफ्ते सड़कों पर उतरेंगे।

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इसके अलावा इस गुट ने चेतावनी दी है कि उसके समर्थक संघर्ष के तरीकों में प्रशिक्षित हैं। यदि उनका विरोध हुआ, तो वे अपने तरीके से उससे निपटेंगे। इससे वहां हिंसा की आशंका और बढ़ गई है।

( फोटो:सोशल मीडिया)

आपको बता दें, बीते 23 अक्तूबर को पोलैंड के सुप्रीम कोर्ट ने हर तरह के स्वैच्छिक गर्भपात पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात असंवैधानिक है। पोलैंड में दूसरे यूरोपीय देशों की तुलना में गर्भपात कराना पहले से ही काफी कठिन था।

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इन मामलों में गर्भपात कराने की मंजूरी

आगे कोर्ट ने कहा था कि अब भ्रूण में दोष होने पर भी इसकी मंजूरी नहीं होगी। केवल उन मामलों में गर्भपात कराने की मंजूरी होगी, जिनमें गर्भ या तो बलात्कार या पारिवारिक यौन संबंध की वजह से ठहरा हो या फिर मां की जान खतरे में हो।

ऐसे में कोर्ट का ये फैसला सत्ताधारी दक्षिणपंथी पार्टी के विचारों के हिसाब से आया है। इससे महिला अधिकार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में गुस्सा भड़क उठा। उन्होंने आंदोलन का आह्वान किया लेकिन उसे इतना बड़ा समर्थन मिलेगा, इसका अनुमान खुद उन्हें भी नहीं था।

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