400 रु किलो हवा: तेजी से हो रहा इस पर काम, ऐसे बनेगा प्रोटीन
इंसान सब कुुछ बर्दास्त कर सकता है, लेकिन पेट की भूख नहीं सहन कर पाता है। करीब साढ़े 7 अरब की आबादी में 11.3 करोड़ से ज्यादा ऐसी आबादी है जो खाने के तरस रहे हैं।
नई दिल्ली। इंसान सब कुुछ बर्दास्त कर सकता है, लेकिन पेट की भूख नहीं सहन कर पाता है। करीब साढ़े 7 अरब की आबादी में 11.3 करोड़ से ज्यादा ऐसी आबादी है जो खाने के तरस रहे हैं। सामने आए आकंड़ों के अनुसार, इनमें 70 करोड़ बच्चों में एक तिहाई या तो कुपोषित या मोटापे का शिकार हैं। लगभग ये बच्चे 5 साल या उससे कम उम्र के हैं। तो ऐसे में लगातार बढ़ती आबादी को खाना मुहैया कराना सबसे बड़ी चिंता है। इस समस्या का हल निकालने के लिए फिनलैंड के वैज्ञानिक लगाताक कोशिशे कर रहे हैं। हालांकि कोरोना महामारी के चलते अभी इस नेक काम में ठहराव आ गया है।
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हवा से खाना बनाने की कोशिश
इस समस्या की कोशिश में उत्तरी यूरोप के इस देश में सोलर फूड्स नाम की कंपनी हवा से खाना बनाने की कोशिश कर रही है। इस खाने को तैयार करने में हवा की नुकसानदेह मानी जाने वाली गैस कार्बन डाइऑक्साइड को इस्तेमाल होगी।
इसके साथ में पानी और सोलर बिजली का इस्तेमाल होगा। हवा, पानी और बिजली के इस मिले-जुले से सोलेन नाम का प्रोटीन पाउडर बनने जा रहा है।
इस पर वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पौधों से मिलने वाले प्रोटीन से 10 गुना ज्यादा फायदेमंद और पशुओं से प्राप्त प्रोटीन से लगभग 70 गुना ज्यादा बेहतर होगा। वो भी खासकर पर्यावरण के हिसाब से देखें तो ये एनिमल प्रोटीन का काफी अच्छा विकल्प हो सकता है।
ये पौधों से मिलने वाले प्रोटीन से 10 गुना ज्यादा फायदेमंद और पशुओं से प्राप्त प्रोटीन से 70 गुना ज्यादा अच्छा होगा।
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पानी, विटामिन्स और न्यूट्रीएन्ट्स
ये प्रोटीन बनाने के लिए हवा से कार्बन डाइऑक्साइड लिया जाएगा। इसके लिए कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाएगा। इसके बाद इसमें पानी, विटामिन्स और न्यूट्रीएन्ट्स मिलाए जाएंगे।
वहीं इसके बाद सोलर एनर्जी के उपयोग से सोलेन बनाया जाएगा। इसे बनाने की प्रक्रिया नेचुरल फरमेंटेशन की तरह होगी, जिस तरह से यीस्ट और लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया बनाया जाता है।
क्योंकि ये खाना यानी प्रोटीन एक फरमेंटेशन टैंक के अंदर तैयार होगा। गजब की बात तो ये है कि सोलेन भी दूसरे प्रोटीन्स की तरह ही स्वादरहित और गंधरहित होगा।
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एजेंसी के साथ मिलकर काम कर रही
ऐसा कहा जा रहा है कि सोलेन नासा का आइडिया है, लेकिन इस पर अब फिनलैंड की कंपनी सोलर फूड्स काम कर रही है। इसके लिए कंपनी यूरोपियन स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर काम कर रही है।
इसके साथ ही ये अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बड़े काम की साबित हो सकती है। इससे उस क्षेत्र में खाना मिलना आसान हो जाएगा, जहां पर खेती की संभावना नामुमकिन है।
इसे साइंस के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा सकता है. कंपनी का कहना है कि पहले पहल मार्केट में इसे प्रोटीन शेक और योगर्ट के तौर पर उतारा जाएगा।
हवा से मिलने वाले फूड सोलेन बनाने का प्रोसेस कॉर्बन न्यूट्रल होगा. कंपनी का कहना है कि दुनिया में पहले से ही ग्रीन हाउस गैसेज़ की वजह से समस्याएं पैदा हो रही हैं. क्यों न इसके इस्तेमाल की बात सोची जाए. सोलेन बनाने की प्रक्रिया इसी दिशा में एक कदम है।
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पर्यावरण को कम नुकसान
ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग में कार्बन डाइऑक्साइड के किरदार को देखते हुए कोशिश यही की जा रही है कि इसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जा सके ताकि ये पर्यावरण को कम नुकसान करे।
ये गैस ईंधन बनाने, खाद तैयार करने जैसे कामों में इस्तेमाल हो रही है। बैंगलोर में रिसर्च टीम एक ऐसा आर्टिफिशियल फोटोसिंथेसिस प्रोसेस तैयार कर रही है, जिससे इस गैस को मेथेनॉल में बदला जा सकता है। मेथेनॉल से दवाइयां, इत्र और ईंधन बन सकता है।
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