युद्ध हजारों पक्षियों से: बहुत विनाशकारी थी ये जंग, लाशों के ढेर की ये कहानी

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में सैनिकों को जो जमीन मिली थी, वो उन्हें पुनर्वास के लिए दी गई थी। ऐसे में अब सैनिक यहां किसान बन गए और अपनी-अपनी जमीनों पर खेती करने लगे। पर उस समय कुछ ही दिन बाद उनकी फसलों पर विशालकाय जंगली पक्षी एमू का हमला हो गया।

Update: 2021-03-10 06:46 GMT
इतिहास के किस्सों में हमें कई बार युद्ध, हमले और लड़ाई की कहानियां सुनने को मिलती हैं। पर क्या आपने कभी इंसान और पक्षियों के बीच हुए युद्ध के बारे में सुना है।

नई दिल्ली। इतिहास के किस्सों में हमें कई बार युद्ध, हमले और लड़ाई की कहानियां सुनने को मिलती हैं। पर क्या आपने कभी इंसान और पक्षियों के बीच हुए युद्ध के बारे में सुना है। ये बात सुनकर आपको मजाक सा लग रहा होगा, कि क्या बात पूछ रहे, पर ये सच है। हैरान कर देने वाली ये रोचक घटना साल 1932 की है। इस घटना के बारे में जो कोई भी सुनता है, वो अचम्भित जरूर होता है। तो ऑस्ट्रेलिया सरकार ने प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सेवानिवृत हुए कुछ सैनिकों को पुनर्वास के लिए जमीनें दी हुई थी। ये जमीने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में थी।

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20,000 एमू का हमला

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में सैनिकों को जो जमीन मिली थी, वो उन्हें पुनर्वास के लिए दी गई थी। ऐसे में अब सैनिक यहां किसान बन गए और अपनी-अपनी जमीनों पर खेती करने लगे। पर उस समय कुछ ही दिन बाद उनकी फसलों पर विशालकाय जंगली पक्षी एमू का हमला हो गया। ये बात तो छोटी लग रही है कि आगे सुनिये पता चलेगा।

फसलों पर हमला करने वाले जंगली पक्षी एमु की को 5-10 नहीं थी, बल्कि यहां 20,000 एमु ने एक साथ हमला किया था। जैसे की युद्ध के लिए किसी देश की सेना दूसरे देश पर हमला करने के लिए हजारों सैनिकों के साथ आती है।

हजारों की तादात में एमू का झुंड आता और किसानों की फसलों को बर्बाद करके चला जाता। केवल यहीं यहीं, उन्होंने खेतों की रक्षा के लिए जो फेंसिंग लगाई थी, उसे भी उन पक्षियों ने तोड़ दिया था।

फोटो-सोशल मीडिया

ऐसे में जब ऐसा आये दिन होने लगा तो किसान बने सैनिकों का एक प्रतिनिधिमंडल सरकार के पास अपनी गुहार लेकर पहुंचा। अब समस्या की गंभीरता को देखते हुए किसानों की सहायता के लिए ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन रक्षामंत्री ने मशीन गन से लैस सेना की एक टुकड़ी भेजी।

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6 दिन तक चला युद्ध

ये घटना है 2 नवंबर, 1932 की। सरकार द्वारा भेजी गई सेना ने एमूओं को भगाने वाला ऑपरेशन शुरू किया। जिसके चलते उन्हें एक जगह पर 50 एमूओं का झुंड दिखा, लेकिन जब तक वो मशीन गन से उनपर निशाना लगाते, तब तक उन पक्षियों का झुंड यह समझ गया कि उनपर हमला होने वाला है और वो वहां तेजी से भाग निकले और मशीन गन की रेंज से दूर हो गए।

दो दिन फिर 4 नवंबर, 1932 को भी कुछ ऐसा ही हुआ। सैनिकों ने लगभग 1000 एमूओं का एक झुंड देखा और वो उनपर अभी फायर करने ही वाले थे कि मशीन गन जाम हो गई। और जब तक मशीन गन सही होती तब तक एमू वहां से भाग गए थे। लेकिन फिर भी सैनिकों ने करीब 12 एमूओं को मार गिराया था।

ये युद्ध छह दिन तक चला। इस ऑपरेशन में सैनिकों द्वारा करीब 2500 राउंड फायर किए गए थे, हालाकिं 20 हजार एमूओं में से मुश्किल से वह 50 को ही मारने में सफल हो पाए थे।

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