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इन्हें पाकिस्तान करता है सलाम, आइए जाने कौन है ये महान इंसान

फ़ील्डमार्शल करियप्पा के बेटे एयर मार्शल नंदू करियप्पा अपने पिता की जीवनी में लिखते हैं, "एक बार जब मैं दिल्ली के नवीन भारत हाई स्कूल में पढ़ रहा था, एक दिन हमें लेने सेना का ट्रक स्कूल नहीं आ पाया।

Vidushi Mishra
Published on: 15 May 2020 8:58 AM GMT
इन्हें पाकिस्तान करता है सलाम, आइए जाने कौन है ये महान इंसान
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नई दिल्ली। भारतीय सेना के पहले कमांडर इन चीफ़ के.एम. करियप्पा ‘किपर’ एक ऐसे जनरल थे जिनकी नेतृत्व क्षमता अद्भुत थी। करियप्पा का सबसे बड़ा योगदान था कि उन्होंने भारतीय सेना को राजनीति से दूर रखा। शायद यही कारण था कि उन्होंने आईएनए के सैनिकों को भारतीय सेना में लेने से इंकार कर दिया। उनका मानना था कि अगर वो ऐसा करते हैं तो भारतीय सेना राजनीति से अछूती नहीं रह सकेगी। अनुशासन का पालन करने में करियप्पा का कोई सानी नहीं था।

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सरकारी कार का निजी इस्तेमाल

फ़ील्डमार्शल करियप्पा के बेटे एयर मार्शल नंदू करियप्पा अपने पिता की जीवनी में लिखते हैं, "एक बार जब मैं दिल्ली के नवीन भारत हाई स्कूल में पढ़ रहा था, एक दिन हमें लेने सेना का ट्रक स्कूल नहीं आ पाया।

मेरे पिता के एडीसी ने मुझे स्कूल से वापस लेने के लिए स्टाफ़ कार भेज दिया। कुछ दिन बाद जब मेरे पिता नाश्ता कर रहे थे तो इस घटना का ज़िक्र हुआ।

ये सुनते ही मेरे पिता आगबबूला हो गए और उन्होंने अपने एडीसी को लताड़ते हुए कहा कि सरकारी कार का किसी भी हाल में निजी इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने फ़ौरन उसका बिल बनवाया और एडीसी से कहा कि इसे उनके वेतन से काट लिया जाए।"

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पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार नीचे किए

भारत-पाकिस्तान युद्ध ख़्तम होने के बाद करियप्पा भारतीय जवानों का मनोबल बढ़ाने भारत-पाकिस्तान सीमा पर गए थे। इस दौरान उन्होंने सीमा पार कर 'नो मैन लैंड' में प्रवेश कर लिया था।

नंदू करियप्पा अपने पिता की जीवनी में लिखते हैं, "उन्हें देखते ही पाकिस्तनी कमांडर ने आदेश दिया कि वो वहीं रुक जाएं, वरना उन्हें गोली मार दी जाएगी।

भारतीय सीमा से किसी ने चिल्ला कर कहा ये जनरल करियप्पा हैं। ये सुनते ही पाकिस्तानी सिपाहियों ने अपने हथियार नीचे कर लिए। उनके अफ़सर ने आ कर जनरल करियप्पा को सेल्यूट किया।

करियप्पा ने पाकिस्तानी सैनिकों से उनका हालचाल पूछा और ये भी पूछा कि उन्हें अपने घर से चिट्ठियाँ मिल रही हैं या नहीं?"

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हिंदुस्तानी बोलने में मुश्किल

करियप्पा हिंदी बहुत अच्छी नहीं बोल पाते थे। इसलिए लोग अक्सर उन्हें 'ब्राउन साहब' कह कर पुकारते थे। आज़ादी के तुरंत बाद करियप्पा को सीमा के पास सैनिकों को संबोधित करना था।

वो उनसे कहना चाह रहे थे कि अब देश आज़ाद है। लेकिन करियप्पा ने कहा, "इस वक्त आप मुफ़्त, मुल्क मुफ़्त है, सब कुछ मुफ़्त है।"

एक बार अमृतसर में फ़ेमिली वेल्फ़ेयर सेंटर में सैनिकों की पत्नियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "माताओं और बहनों, हम चाहता है कि आप दो बच्चा पैदा करो, एक अपने लिए, एक मेरे लिए।"

शायद करियप्पा ये कहना चाह रहे थे कि आपके दो बेटे होने चाहिए। उनमें से एक परिवार के साथ रहे और दूसरा भारतीय सेना का हिस्सा बने।

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सूट-बूट के शौकीन

फ़ील्डमार्शल करियप्पा हमेशा अच्छे कपड़े पहनते थे। डिनर में वो हमेशा काले रंग के सूट या बंदगले में दिखाई देते थे। वो हमेशा डिनर के समय कपड़े बदलते थे, चाहे वो अपने घर में अकेले डिनर कर रहे हों।

एक बार उन्होंने एक अमरीकी डिपलॉमेट को डिनर पर बुलाया। मेहमान को करियप्पा के ड्रेस कोड का पता नहीं था। वो सादी कमीज़ पहनकर घर पहुंच गए। मेरे पिता ने ठंडे मौसम का बहाना दे कर उन्हें अपना कोट पहनने के लिए मजबूर किया। तब जा कर वो खाने की मेज़ पर बैठे।"

सनकपन भी कम नहीं

करियप्पा अपनी सनक के लिए मशहूर थे। उन्हें बर्दाश्त नहीं था कि कोई अपनी वर्दी की कमीज़ की आस्तीनों को मोड़े। बुशर्ट को बहुत हिकारत से 'मैटरनिटी जैकेट' कहा करते थे।

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कोई खेल खेलते समय भी उनकी गर्दन में हमेशा एक स्कार्फ़ बँधा होता था। खाने पर आने वाले हर शख़्स से अपेक्षा की जाती थी कि वो सूट पहन कर आए।

अगर किसी ने अपने कोट के बटन खोल रखे हैं तब भी वो बुरा मान जाते थे। उन्हें हारमोनियम से भी बहुत चिढ़ थी। सेना के समारोहों में जब भी कोई संगीत का आइटम होता था, उसमें हारमोनियम बजाने की मनाही होती थी।

87 साल की उम्र में बने फ़ील्ड मार्शल

15 जनवरी 1986 को वो सेना दिवस की परेड के लिए दिल्ली आए हुए थे। परेड के बाद उस समय के सेनाध्यक्ष जनरल के सुंदरजी ने घोषणा की कि सरकार ने जनरल करियप्पा को फ़ील्डमार्शल बनाने का फ़ैसला किया है।

पहले भारतीय अफसर

1942 में करियप्पा लेफ़्टिनेंट कर्नल का पद पाने वाले पहले भारतीय अफ़सर बने। 1944 में उन्हें ब्रिगेडियर बनाया गया और बन्नू फ़्रंटियर ब्रिगेड के कमांडर के तौर पर तैनात किया गया। उनके बारे में अनेकों किस्से मशहूर हैं।

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उनका नाम किपर कैसे पड़ा इसके बारे में कहा जाता है कि अंग्रेज़ अफसरों को उनका नाम का उच्चारण करने में दिक्कत होती थी सो करियप्पा को किपर बुलाया जाने लगा।

लेह में महत्वपूर्ण भूमिका

नवंबर 1947 में करियप्पा को सेना के पूर्वी कमान का प्रमुख बना कर राँची में तैनात किया गया। दो महीने के अंदर ही जैसे ही कश्मीर में हालत खराब हुई, उन्हें लेफ़्टिनेंट जनरल डडली रसेल के स्थान पर दिल्ली और पूर्वी पंजाब का जीओसी इन चीफ़ बनाया गया।

उन्होंने तुरंत जनरल थिमैया को जम्मू कश्मीर फ़ोर्स का प्रमुख नियुक्त किया। लेह जाने वाली सड़क तब तक नहीं खोली जा सकती थी जब तक भारतीय सेना का जोज़ीला, ड्रास और कारगिल पर कब्ज़ा नहीं हो जाता। ऊपर के आदेशों की अवहेलना करते हुए करियप्पा ने वही किया।

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अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया होता तो आज लेह भारत का हिस्सा नहीं बना होता। उनकी बनाई गई योजना के तहत भारतीय सेना ने पहले नौशेरा और झंगर पर कब्ज़ा किया और फिर जोज़ीला, ड्रास और कारगिल से भी हमलावरों को पीछे धकेल दिया।

मेहर सिंह को दिलाया महावीर चक्र दिलवाया

इसी अभियान के दौरान ही एयर कॉमोडोर मेहर सिंह पुँछ में हथियारों समेत डकोटा विमान उतारने में सफ़ल हो गए, वो भी रात में। कुछ समय बाद उन्होंने लेह में भी डकोटा उतारा जिस पर जनरल थिमैया सवार थे।

करियप्पा ने न सिर्फ़ मेहर सिंह को महावीर चक्र देने की सिफ़ारिश की बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि ये सम्मान उन्हें मिले भी। अजीब बात ये थी कि वायु सेना को अपने ही अफ़सर को महावीर चक्र देना पसंद नहीं आया और इसके बाद उन्हें कोई पदोन्नति नहीं दी गई।

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पहले भारतीय कमांडर इन चीफ़

1946 में अंतरिम सरकार में रक्षा मंत्री रहे बलदेव सिंह ने उस समय ब्रिगेडियर के पद पर काम कर रहे नाथू सिंह को भारत का पहला कमांडर इन चीफ़ बनाने की पेशकश कर दी थी।

करियप्पा की जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी अपनी किताब 'फ़ील्ड मार्शल के एम करियप्पा हिज़ लाइफ़ एंड टाइम्स' में लिखते हैं, "नाथू सिंह ने विनम्रतापूर्व इस पेशकश को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उनका मानना था कि वरिष्ठ होने के कारण करियप्पा का उस पद पर दावा अधिक बनता था।"

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"नाथू सिंह के बाद राजेंद्र सिंहजी को भी ये पद देने की पेशकश हुई लेकिन उन्होंने भी करियप्पा के सम्मान में उस पद को स्वीकार नहीं किया। तब जा कर 4 दिसंबर, 1948 को करियप्पा को सेना का पहला भारतीय कमांडर इन चीफ़ बनाया गया।"

उस समय करियप्पा की उम्र 49 साल थी। ब्रिटिश शासन के 200 साल बाद पहली बार किसी भारतीय को भारतीय सेना की बागडोर दी गई थी। 15 जनवरी, 1949 को करियप्पा ने इस पद को गृहण किया। तब से लेकर आज तक इस दिन को 'आर्मी डे' के रूप में मनाया जाता है।

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रिपोर्ट- नील मणि लाल

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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