Birbhum Violence: ड्राइवर से करोड़पति बना तृणमूल का भादू शेख, पढ़ें हिंसा के पीछे की असल कहानी

Birbhum Violence: पश्चिम बंगाल में रामपुरहाट के पास बोगतुई में हुआ नरसंहार बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की राजनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-03-25 12:37 IST

बीरभूम हिंसा (photo : social media ) 

Birbhum Violence: पश्चिम बंगाल में रामपुरहाट के पास बोगतुई में हुआ नरसंहार बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की राजनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। आठ लोगों का नरसंहार जाहिर तौर पर तृणमूल द्वारा संचालित बरशाल ग्राम पंचायत के उप प्रमुख 45 वर्षीय भादु शेख की हत्या के प्रतिशोध में था। भादु इस क्षेत्र में रेत और पत्थर के अवैध कारोबार को कंट्रोल करता था।

कुछ साल पहले एक नामालूम से ड्राईवर भादू शेख ने देखते – देखते बंगाल के इस कोने में राजनीतिक मामलों पर पूर्ण रूप से दबदबा बना लिया था। भादू शेख का तीन मंजिला घर है। नीले और सफ़ेद रंग की इस इमारत के परिसर में एक हार्डवेयर की दुकान है।

राजनीति में भादू का अद्भुत उदय

भादू के पास चार एसयूवी हैं और कई तरह के बिजनेस में उसकी हिस्सेदारी है जिसमें एक नर्सिंग होम, शामिल है। मारफास शेख के छह बेटों में से चौथे भादू ने 2010 में ड्राइवर के रूप में काम किया था जबकि उसके भाई दिहाड़ी मजदूर थे। उस समय भादू का वेतन 5000 रुपये प्रति माह और भोजन के लिए प्रति दिन 150 रुपये था।

तृणमूल नेता बताते हैं कि स्थानीय राजनीति में भादू का अद्भुत उदय हुआ था। हर कोई जानता था कि पिछले कुछ वर्षों में अवैध रेत और पत्थर के कारोबार के माध्यम से उसकी हैसियत कैसे बढ़ गयी। पार्टी में अन्य समूहों के साथ उनकी दुश्मनी के पीछे भादू के धंधे ही प्राथमिक कारण थे क्योंकि क्षेत्र में वस्तुतः कोई विपक्ष नहीं है।

अधिकांश स्थानीय लोगों का कहना है कि भादु तृणमूल का निर्विवाद नेता था। नरसंहार के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए 11 लोगों में से ज्यादातर भादू के करीबी सहयोगी और रिश्तेदार हैं। यह पूरी घटना बताती है कि कैसे एक स्थानीय क्षत्रप का उदय सत्ताधारी पार्टी में एक अन्यथा पिछड़े क्षेत्र में अशांति पैदा करता है, जहां आजीविका के विकल्प सीमित हैं।

बंगाल में सत्ता परिवर्तन के बाद तृणमूल में शामिल होने से पहले भादू दिहाड़ी मजदूर था लेकिन जल्द ही वह इतना शक्तिशाली हो गया कि इलाके से पत्थर के चिप्स और रेत ले जाने वाले हर ट्रक को उससे मंजूरी की जरूरत होती थी।

जैसे ही भादू ने इन अनियमित व्यापारों के माध्यम से पैसा बनाना शुरू किया, वह बीरभूम में पार्टी नेतृत्व के करीब आ गया। पार्टी में भादू का उदय हाल के नगरपालिका चुनावों में साफ़ दिखाई दिया क्योंकि उसने कथित तौर पर विपक्षी दलों के ज्यादा प्रतिरोध के बिना रामपुरहाट में तृणमूल की जीत के पीछे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

रामपुरहाट में तृणमूल ने 18 में से पांच वार्डों में निर्विरोध जीत हासिल की, क्योंकि सभी विपक्षी उम्मीदवारों ने भादू और उनकी टीम द्वारा डराने-धमकाने के आरोपों के बीच अपना नामांकन वापस ले लिया था। कांग्रेस के उम्मीदवार सहजदा हुसैन बताते हैं कि जब उन्होंने नामांकन पत्र दाखिल किया था तब भादू ने गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी, जिसके बाद वह छिप गए थे।

सूत्रों के मुताबिक तृणमूल में सबसे मजबूत गुट जिसकी भादू से दुश्मनी थी उसका का नेतृत्व संजू शेख कर रहा था, जिसके घर से सात जले हुए शव बरामद किए गए थे। भादू की हत्या की प्राथमिकी में नामजद सोना शेख और पलाश शेख उर्फ छोटो लालन तृणमूल के सभी जाने-माने कार्यकर्ता हैं। क्षेत्र में अवैध व्यापार की लूट को लेकर पिछले कुछ वर्षों में उनकी भादू के साथ प्रतिद्वंद्विता थी।

भादू और दूसरे गुट के बीच तकरार इतनी तीव्र थी कि भादू के भाई की भी करीब एक साल पहले हत्या कर दी गई थी। मुख्य रूप से, भादू की हत्या के आरोपी के परिवार के सदस्यों को जलाकर मार दिया गया था और आरोपी भाग गए थे। अब वे बदला लेना चाहते हैं। यही कारण है कि भादू के परिवार के सदस्य गांव छोड़ रहे हैं।

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