विधान परिषद के गठन में जुटीं ममता, केंद्र से तल्खी के कारण संसद की मंजूरी मिलना कठिन

Mamata Banerjee: विधानपरिषद का गठन कराने की कोशिश में जुट ममता सरकार और केंद्र के बीच चल रहे टकराव के कारण इस बिल का पास होना आसान नहीं माना जा रहा है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Shivani
Update: 2021-05-23 08:22 GMT

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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल (West Bengal) की कमान तीसरी बार संभालने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) राज्य में एक बार फिर विधानपरिषद (Vidhan Parishad) का गठन कराने की कोशिश में जुट गई हैं। राज्य मंत्रिमंडल की ओर से इस बाबत बिल को मंजूरी भी दे दी गई है और अब इसे राज्यपाल (Bengal Governor) के पास भेजने की तैयारी है। ममता इस बिल को राज्य विधानसभा में भी पारित कराने की तैयारी में जुट गई हैं जिसके बाद इसे राज्य सरकार की ओर से संसद की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

वैसे ममता सरकार और केंद्र के बीच चल रहे टकराव और खींचतान के कारण इस बिल का पास होना आसान नहीं माना जा रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हर मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने में जुटी रहती हैं। हाल में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा से उनकी तल्खी काफी बढ़ चुकी है। ऐसे में इस बिल को संसद से पास कराना ममता के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।

घोषणापत्र में किया था वादा

इस बार के विधानसभा चुनाव से पहले जारी घोषणापत्र में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में विधानपरिषद के गठन का वादा किया था। विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने एक साथ सभी सीटों के लिए तृणमूल कांग्रेस के टिकटों की घोषणा करके दूसरे दलों पर लीड ले ली थी।

ममता ने कई सीनियर नेताओं को चुनाव में टिकट नहीं दिया था और उनकी बगावत के डर से उन्हें विधानपरिषद का सदस्य बनाकर समायोजित करने की बात कही थी। यही कारण है कि ममता बनर्जी तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही विधानपरिषद के गठन की कोशिशों में जुट गई हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि ममता के लिए इस मामले में कामयाबी हासिल करना एक बड़ी चुनौती साबित होगा।

1969 में विधानपरिषद खत्म

पश्चिम बंगाल में 1969 तक विधानसभा और विधानपरिषद दोनों सदन थे मगर 1969 में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार ने विधानपरिषद को समाप्त करा दिया था। यूनाइटेड फ्रंट ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में विधानपरिषद को खत्म करने की बात कही थी और सत्ता में आने के बाद सरकार ने इस बाबत विधानसभा में बिल पेश किया और उसे दो तिहाई बहुमत से पास करा लिया।
राज्य विधानसभा में बिल के पास होने के 4 महीने बाद इसे संसद के दोनों सदनों की मंजूरी भी मिल गई। इसके साथ ही बंगाल में विधानपरिषद खत्म हो गई। अब ममता बनर्जी ने 51 साल बाद एक बार फिर राज्य में विधानपरिषद के गठन की कोशिशें शुरू कर दी हैं।

संसद की मंजूरी मिलना कठिन

जानकारों के मुताबिक संसद में विधानपरिषद के गठन का बिल पास करना इतना आसान काम नहीं है। कई बार इसे लेकर पेंच फंसता रहा है। असम विधानसभा की ओर से 2010 में और राजस्थान विधानसभा की ओर से 2012 में राज्य में विधानपरिषद के गठन का बिल पास किया गया था मगर अभी भी दोनों राज्यों के ये बिल राज्यसभा में अटके हुए हैं।

सियासी जानकारों का कहना है कि ममता सियासत की माहिर खिलाड़ी हैं। इसलिए वे निश्चित रूप से अपनी कुर्सी बचाने के लिए विधानपरिषद के गठन का सपना नहीं देख रही हैं। उन्हें पता है कि 6 महीने के भीतर इस बिल का पारित होना काफी कठिन है। यही कारण है कि उनकी कुर्सी को बचाने के लिए भवानीपुर सीट से जीते शोभन देव भट्टाचार्य ने इस्तीफा दे दिया है। अब ममता के इसी सीट से चुनाव मैदान में उतरने की चर्चाएं हैं क्योंकि यह विधानसभा सीट काफी दिनों से ममता का मजबूत गढ़ रही है।

6 राज्यों में दो सदनों वाली व्यवस्था

मौजूदा समय में देश के 6 राज्यों में दो सदनों वाली व्यवस्था है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक में विधानसभा के साथ ही विधानपरिषद की भी व्यवस्था है। मजे की बात यह है कि इनमें से 3 राज्यों के मुख्यमंत्री तो विधानपरिषद का सदस्य बनकर ही अपनी-अपनी कुर्सियों पर काबिज हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानपरिषद के ही सदस्य हैं। सबसे दिलचस्प बात तो नीतीश कुमार के साथ जुड़ी हुई है। वे लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं मगर इसके लिए उन्होंने विधानसभा चुनाव कभी नहीं लड़ा। वे विधानपरिषद का सदस्य बनकर ही मुख्यमंत्री के रूप में बिहार की कमान संभालते रहे हैं।
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