West Bengal Violence: फिर गरमाया मुद्दा, 114 शिक्षाविदों ने लिखा राष्ट्रपति को पत्र
West Bengal Violence: बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में 114 शिक्षाविदों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर इस मामले में दखल देने की मांग की है।
West Bengal Violence: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों (West Bengal Assembly Elections) के बाद विभिन्न क्षेत्रों में हिंसा (Violence) की घटनाओं का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। 114 शिक्षाविदों ने इस मामले में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) को चिट्ठी लिखकर इस मामले में दखल देने की मांग की है। इन शिक्षाविदों का कहना है कि बंगाल में दलितों और पिछड़ों को निशाना बनाया जा रहा है और इन दोनों वर्गों के साथ की जा रही हिंसा पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।
सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट (CSD) ने बंगाल में हो रही हिंसा की घटनाओं पर एक रिपोर्ट (Report) भी तैयार की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में दलित और पिछड़ा वर्ग से जुड़े लोगों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया जा रहा है। शिक्षाविदों (Academicians) ने मांग की है कि दलितों और पिछड़ों को हिंसा से बचाने के लिए राष्ट्रपति (President Ram Nath Kovind) को तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।
दलितों और पिछड़ों को बनाया निशाना
राष्ट्रपति को भेजे गए ज्ञापन में सीएसडी (CSD) से जुड़े छत्तीसगढ़, बिहार, दिल्ली, उड़ीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली और अन्य राज्यों के 114 प्रोफ़ेसर्स ने दस्तखत किए हैं। जानकारों का कहना है कि राष्ट्रपति के बाद अब इसी तरह की याचिका पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Governor Jagdeep Dhankhar) को भी सौंपी जाएगी।
ज्ञापन में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के कार्यकर्ताओं की ओर से की जा रही हिंसा का जिक्र किया गया है। ज्ञापन के मुताबिक इन कार्यकर्ताओं को राज्य पुलिस (Police) का सहयोग मिल रहा है और इनकी ओर से एससी-एसटी (SC-ST) और पिछड़ों को निशाना बनाया गया है।
40,000 से अधिक लोग प्रभावित
शिक्षाविदों का कहना है कि बेघर हुए 11000 से अधिक लोगों में अधिकांश एससी और एसटी समुदाय से जुड़े हुए लोग हैं। उन्होंने कहा कि हिंसा की 1627 घटनाएं हुई हैं और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की ओर से किए गए इन हमलों में 40,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। ज्ञापन के मुताबिक 5000 से अधिक घर तोड़ दिए गए और 142 महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार की घटनाएं हुईं। अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय से जुड़े 26 लोगों की मौत दर्ज की गई है।
सरकार को उठानी चाहिए जिम्मेदारी
ज्ञापन में मांग की गई है कि हिंसा की घटनाओं में अनाथ हुए बच्चों की देखभाल, मेडिकल सहायता और सुरक्षा की जिम्मेदारी अब सरकार को उठानी चाहिए, ऐसे लोगों को घर बनाकर दिए जाने चाहिए जो हिंसा की घटनाओं के कारण बेघर हो चुके हैं। नुकसान का आकलन करने के बाद उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए। जिन परिवारों के लोगों ने अपना सदस्य खोया है, उन्हें नौकरी या रोजगार स्थापित करने में भी मदद दी जानी चाहिए।
कमेटी ने मौके पर की थी जांच पड़ताल
हिंसा की घटनाओं की मौके पर जांच पड़ताल करने के लिए सीएसडी की एक कमेटी पिछले दिनों बंगाल गई थी। कमेटी के सदस्यों ने तीन दिनों तक हिंसा पीड़ित परिवारों से मुलाकात के बाद आंकड़े इकट्ठे किए हैं। सीएसडी से जुड़े दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजकुमार फुलवरिया का कहना है कि कमेटी ने पाया है कि हिंसा की घटनाओं में कई ऐसे लोगों की हत्या कर दी गई जो अपने घर में अकेले कमाने वाले शख्स थे। हिंसा का शिकार हुए लोगों में अधिकांश के घर और दुकानें जला दी गईं।
राज्य सरकार की मिलीभगत से हुई हिंसा
सीएसडी से जुड़े मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सोहनलाल गोसाई का कहना है कि राज्य सरकार की मिलीभगत से हिंसा की इन घटनाओं को अंजाम दिया गया। तृणमूल कार्यकर्ताओं ने सबसे ज्यादा दलित और पिछड़ा वर्ग से जुड़े लोगों को निशाना बनाया।
उन्होंने कहा कि पीड़ितों को न्याय और सुरक्षा देने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाना चाहिए। एक और प्रोफेसर सुभाष पहाड़िया का कहना है कि लोकतंत्र में कोई भी चुनाव जीत सकता है, लेकिन प्रतिद्वंद्वी पार्टी का समर्थन करने वालों के साथ हिंसा और अत्याचार की घटनाएं गलत है। उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ दल की ओर से किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमने ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
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