प्रवासी मजदूरों को हवाई जहाज से पहुंचाया घर, छोटी सी उम्र में किया ये बड़ा काम

मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए जहां एक ओर सरकार ने श्रमिक स्पेशन ट्रेनों का संचालन किया है तो वहीं निजी स्तर पर भी लोग मजदूरों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। वहीं इस बीच एक 12 साल की बच्चे ने अपने बचत के पैसे से 3 मजदूरों को आसमान की सैर करा उन्हें झारखंड पहुंचाया है।

Update:2020-06-01 11:15 IST

नोएडा: कोरोना वायरस के चलते अन्य राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने का काम जारी है। मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए जहां एक ओर सरकार ने श्रमिक स्पेशन ट्रेनों का संचालन किया है तो वहीं निजी स्तर पर भी लोग मजदूरों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। वहीं इस बीच एक 12 साल की बच्चे ने अपने बचत के पैसे से 3 मजदूरों को आसमान की सैर करा उन्हें झारखंड पहुंचाया है।

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अपने बचत के 48 हजार रुपए से श्रमिकों को पहुंचाया घर

इस 12 वर्षीय लड़की का नाम निहारिका द्विवेदी है। जिसने अपने बचत के 48 हजार रुपए खर्च कर तीन प्रवासी श्रमिकों को हवाई जहाज से झारखंड भेजा है। निहारिका द्विवेदी नाम की इस बच्चा का कहना है कि समाज ने हमें बहुत कुछ दिया है। अब उनकी जिम्मेदारी भी बनती है कि इस संकट के समय में वह इसे समाज को लौटाएं। इस तरह श्रमिकों की मदद करने के लिए लोग उनकी प्रशंसा कर रहे हैं।

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मजदूरों ने बच्ची का किया शुक्रिया अदा

निहारिका भी खुद उन श्रमिकों की मदद कर बेहद खुश हैं। निहारिका की इस मदद से श्रमिक आराम से अपने घर पहुंच सके हैं। वहीं, झारखंड के रहने वाले मजदूरों ने भी उनकी मदद करने के लिए इस बच्ची का शुक्रिया अदा किया है।

बेंगलुरु के पूर्व छात्रों ने भी चंदा इकट्ठा कर मजदूरों को भेजा था घर

गौरतलब है कि इससे पहले नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु के पूर्व छात्रों ने भी चंदा इकट्ठा कर मुंबई में फंसे 180 श्रमिकों को हवाई जहाज से रांची भेजा था। जब छात्रों को पता चला कि कुछ मजदूर मुंबई आईआईटी के पास फंसे हैं और उनके पास पैसे नहीं है तो छात्रों ने उनकी मदद करने के लिए एक योजना तैयार की।

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मजदूरों ने नाम नहीं किए उजागर

सभी छात्रों ने मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए पैसे जुटाए। इसके लिए एनजीओ और पुलिस ने भी उनकी मदद की। इस तरह से सभी श्रमिकों को फ्लाइट के जरिए झारखंड भेजा। हालांकि छात्रों ने मजदूरों की मदद के लिए अपने-अपने नाम उजागर नहीं किए। छात्रों का कहना था कि श्रमिकों की मदद उन्होंने नाम कमाने के लिए नहीं की है।

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