शाह के 3 कठोर फैसलें: इससे पूरे देश भर में बढ़ा कद, विपक्ष की उड़ी थी नींद

जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाने और अनुच्छेद 370 हटाने के लिए उनकी खूब आलोचना हुई लेकिन देश का बड़ा वर्ग उनके साथ खड़ा रहा क्योंकि वह मान रहा था कि अमित शाह का फैसला भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए है।

Update: 2020-10-22 10:58 GMT
अमित शाह के इस बयान के बाद से माना जा रहा है कि अब ये मुद्दा आगे और भी ज्यादा तूल पकड़ने वाला है। कांग्रेस पार्टी भी चुप नहीं बैठने वाली है।

नई दिल्ली। पुलवामा हमले के बाद जब पूरा देश शोक और आक्रोश के हवाले था तो केंद्र सरकार के गृहमंत्री अमित शाह भी तीन दिन तक बेचैनियों से भरे रहे। उन्होंने इस दौरान किसी से मुलाकात भी नहीं की और तीन दिन बाद उन्होंने अपने कुछ नजदीकी सलाहकारों से चर्चा के बाद फैसला कर लिया कि कश्मीर से अनुच्छेद -370 को पूरी तरह हटाना होगा। उनके करीबियों की मानें तो इस दौरान उन्होंने कश्मीर से जुड़ी हर फाइल पलट डाली और तय किया कि 370 को हटाने के साथ ही जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए। उन्होंने अपना होमवर्क और तेज किया और अमरनाथ यात्रा को बीच में ही रोकने का फैसला करते हुए घाटी के अलगाववादी नेताओं पर शिकंजा कस दिया।

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अमित शाह का फैसला भारत की एकता और अखंडता के लिए

जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाने और अनुच्छेद 370 हटाने के लिए उनकी खूब आलोचना हुई लेकिन देश का बड़ा वर्ग उनके साथ खड़ा रहा क्योंकि वह मान रहा था कि अमित शाह का फैसला भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए है। कठोर और बड़े फैसलों के लिए बनी अमित शाह की छवि इस घटना के बाद और भी मजबूत और स्पष्ट हो चली।

केंद्र में गृहमंत्री के तौर पर उन्हें बड़े फैसलों पर अमल करने वाला राजनेता मान लिया गया। 1982 में कॉलेज शिक्षा के दौरान नरेंद्र मोदी से मिलने वाले अमित शाह ने 1983 में विद्यार्थी परिषद के साथ काम शुरू किया। 22 अक्टूबर 1964 को एक व्यापारी परिवार में जन्म लेने वाले इस नेता ने मेहनत को ही सफलता की कुंजी माना।

फोटो-सोशल मीडिया

कभी लालकृष्ण आडवाणी के चुनाव प्रबंधन की बागडोर संभालने वाले शाह अब तक अपना कोई भी चुनाव नहीं हारे हैं। राजनीति के साथ ही परिवार और व्यापार को भी नहीं छोड़ा। आज वह 40 करोड़ की संपत्ति के मालिक भी हैं और व्यापार में भी लगातार वृद्धि हो रही है।

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उनके बारे में कहा जाता है कि वह बड़े व कठोर फैसले करते हैं और फिर उन पर अमल करने के लिए कार्य योजना तैयार कर जुट जाते हैं। अनुच्छेद 370 , जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन के अलावा भी उन्होंने कई बड़े फैसले किए हैं।

एयर स्ट्राइक का फैसला भी शाह की पहल पर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या चाहते हैं यह अमित शाह से बेहतर शायद ही कोई समझता हो। शाह के करीबियों का कहना है कि पुलवामा हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री चाहते थे कि समस्या का स्थायी समाधान हो। तब शाह ने अनुच्छेद 370 और जम्मू -कश्मीर के बारे में प्रस्ताव तैयार करने के साथ ही उन्हें उरी हमले की तर्ज पर बड़ी कार्रवाई का सुझाव दिया।

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इसके साथ ही उन्होंने कश्मीर में पंचायतों की भूमिका प्रभावी बनाने का भी खाका तैयार किया। उनके तैयार ड्राफ्ट के आधार पर ही अब जम्मू-कश्मीर देश का पहला राज्य बन चुका है जहां पंचायतों के अपने कर्मचारी हैं और उनके पास विभिन्न विकास कार्यों को पूरा करने के लिए फंड है। पंचायतों के फैसले में कलेक्टर की भूमिका सीमित हो चुकी है और अब घाटी के राजनेताओं को भी कोई पूछ नहीं रहा है।

तीन तलाक का कानून

मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक का विधेयक को कानून का अमलीजामा पहनाने में गृहमंत्री अमित शाह की भूमिका बेहद अहम रही। 2019 में नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद अमित शाह ने जुलाई महीने में तीन तलाक को कानून का दर्जा दिला दिया। इससे मोदी सरकार की सख्त प्रशासक के साथ ही सुधारवादी छवि का भी निर्माण हुआ।

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नागरिकता संशोधन कानून

तीन तलाक कानून, अनुच्छेद 370 के साथ ही केंद्रीय गृहमंत्री के तौर पर अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून भी पेश कर दिया। इस कानून का मकसद ऐसे लोगों को भारत में सम्मान से जीने का अधिकार दिलाना है जो दूसरे देशों में अल्पसंख्यक होने की वजह से प्रताडि़त किए गए और देश छोडऩे के लिए मजबूर हुए। तमाम विरोधों के बावजूद अपने फैसले पर अडिग रहे।

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राजनीतिक फैसले

2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा पूरे देश में मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही थी अमित शाह ही हैं जिन्होंने देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अपना दल के साथ गठबंधन का फैसला किया। उनका यह फैसला कामयाब भी रहा और प्रदेश की 80 में से 73 सीटें जीतने में भाजपा सफल रही।

इसके बाद उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया और उन्होंने भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनाने के लिए सदस्यता को 10 करोड़ तक पहुंचा दिया। महाराष्ट्र में शिवसेना की बैसाखी छोडऩे का कठोर फैसला भी उनका है।

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रिपोर्ट- अखिलेश तिवारी

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