गुलजारीलाल नंदा: ऐसा प्रधानमंत्री जिसकी सादगी के दिवाने थे लोग, ऐसा रहा सफर
गुलजारीलाल नंदा ने ऐसे समय में प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली, जिस वक्त देश संकट की घड़ी में था। अगर सबसे कम समय तक देश के प्रधानमंत्री की बात की जाए तो यह रिकॉर्ड गुलजारी लाल नंदा के ही पास है।
नई दिल्ली: आज के समय में देश के दिग्गज नेताओं पर उनकी ईमारनदारी से लेकर संपत्ति तक पर कई सवाल उठते रहे हैं, लेकिन राजनीति के इतिहास में ऐसे भी कई नेता हैं जो सत्यनिष्ठ व ईमानदार हुए और जिनकी मिसाल आज तक दी जाती है। उनमें से एक हैं गुलजारीलाल नंदा। कांग्रेस नेता गुलजारीलाल नंदा सादगी पसंद, ईमानदार व गांधीवादी नेता थे। वो अपने राजनीतिक सफर में दो बार देश के प्रधानमंत्री बने, हालांकि दोनों बार कार्यवाहक रहे।
दो बार बने प्रधानमंत्री
गुलजारीलाल नंदा ने ऐसे समय में प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली, जिस वक्त देश संकट की घड़ी में था। अगर सबसे कम समय तक देश के प्रधानमंत्री की बात की जाए तो यह रिकॉर्ड गुलजारी लाल नंदा के ही पास है। नंदा पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद मात्र 13 दिनों ( 27 मई 1964 से 9 जून 1964) के लिए प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद गुलजारी लाल नंदा को प्रधानमंत्री के तौर पर फिर चुना गया। उनका दूसरा कार्यकाल 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक रहा।
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पाकिस्तान में हुआ था जन्म
नंदा गांधीवादी विचारधारा के पोषक रहे और लोकतांत्रिक मूल्यों में उनकी गहरी आस्था थी। वो हमेशा ही गरीबों की सहायता के लिए मौजूद रहे। काफी सरल और सादगीपसंद नंदा का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में 4 जुलाई 1898 को हुआ था। ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मजदूर समस्या पर रिसर्च स्कॉलर के रूप में उन्हें काम करने का मौका मिला। साथ ही वो नेशनल कॉलेज मुंबई में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भी रहे।
मकान मालिक ने फिंकवाया था सामान
गुजारीलाल नंदा की ईमानदारी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वो जीवन भर किराये के साधारण से मकान में रहे। यही नहीं एक बार जब गुजारीलाल नंदा किराया नहीं दे पाए तो उनके मकान मालिक ने उनका सामान तक बाहर फिंकवा दिया था। बैंक में भी वो करीब दो हजार चार सौ चौहत्तर रुपये ही अपने पीछे छोड़ गए। 1997 में गुलजारीलाल नंदा को देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारतरत्न' और दूसरा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान 'पद्मविभूषण' प्रदान किया गया था।
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ऐसा रहा राजनीतिक सफर
अगर गुलजारीलाल नंदा के राजनीतिक सफर की बात की जाए तो उन्होंने 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लिया। 1932 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942-1944 में नंदा ने जेल की भी सजा काटी। मुंबई कांग्रेस ओर से विधानसभा में विधायक रहे। 1947 में इंटक की स्थापना की गई, जिसका श्रेय नंदा को ही दिया जाात है। नंदा केंद्र में गृहमंत्री और श्रम व रोजगार मंत्री भी रहे। साल 1998 में उन्होंने सौ वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया था।
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