देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती, यहां से जुड़ी हैं पुरानी यादें

देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद साहब ने अपनी नज़रबंदी के दौरान रांची में कई एदारों की नींव रखी। जामा मस्जिद से लेकर अंजुमन इस्लामिया तक में मौलाना साहब की यादें आज भी ताज़ा हैं।

Update: 2020-11-11 10:35 GMT
देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती, यहां से जुड़ी हैं पुरानी यादें (Photo by social media)

रांची: भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की यौमे पैदाइश को यौमे तालीम के तौर पर मनाया गया। मौलाना साहब रांची में 30 मार्च 1916 से 31 दिसंबर 1919 तक नज़रबंद रहे। इस दौरान उन्होने रांची में कई संस्थाओं की स्थापना की। जामा मस्जिद, मदरसा इस्लामिया और अंजुमन इस्लामिया समेत कई संस्थाओं का गठन किया। मौलाना साहब की जयंती के मौके पर राजधानी रांची में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। रांची अंजुमन इस्लामिया में शिक्षा, स्वास्थ्य और सद्भावाना के तौर पर कलाम साहब को याद किया गया।

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रांची से जुड़ी यादें

देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद साहब ने अपनी नज़रबंदी के दौरान रांची में कई एदारों की नींव रखी। जामा मस्जिद से लेकर अंजुमन इस्लामिया तक में मौलाना साहब की यादें आज भी ताज़ा हैं। साल 1940 में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में भाग लेने के दौरान भी उन्होने रांची को क़रीब से जाना। जानकार बताते हैं कि, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने रांची प्रवास के दौरान यहां की राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षणिक क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी। नज़रबंदी के दौरान वे आमसभा नहीं कर सकते थे। लिहाज़ा, वे जामा मस्जिद में जुमा के दिन तक़रीर करते जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल होते थे।

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कांग्रेस का रामगढ़ अधिवेशन

साल 1940 में कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद रामगढ़े आए थे। सेवरलेट गाड़ी से ही मौलाना साहब रामगढ़ गए थे। प्रोफेशनल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आदित्य विक्रम जायसवाल ने आज उस गाड़ी की सवारी की और मौलान साहब के रांची प्रवास को याद किया। इस दौरान मौके पर मौजूद कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे ने कहा कि, मौलाना साहब महान स्वतंत्रता सेना, कवि, लेखक, पत्रकार और आधुनिक भारत के महानायक थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्यों के कारण ही 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। समाज उनके योगदान को कभी फरामोश नहीं कर सकता है।

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कलाम साहब के सपने अधूरे

रांची में नज़रबंदी के दौरान मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने सभी धर्मों की एकता पर ज़ोर दिया। यही वजह है कि, जुमा के दिन उनकी तक़रीर सुनने बड़ी संख्या में दूसरे मज़हब के लोग भी आया करते थे। मुस्लिम समाज के अंदर तालीमी बेदारी लाने के लिए उन्होने कई संस्थाओं की स्थापना तो की लेकिन आज वे बुरी हालत में हैं। रांची अंजुमन इस्लामिया आज गुटबंदी का शिकार है। मुस्लिम समाज की आवाज़ बनने के बजाय अंजुमन आपसी झगड़ों में फंसा हुआ है। मौलाना साहब ने जिस मक़सद के साथ अंजुमन का गठन किया वो आज भी अधूरे हैं। अंजुमन के अध्यक्ष से लेकर सदस्य तक मौलाना साहब के नक्शे क़दम पर चलने को तैयार नहीं हैं।

रिपोर्ट- शाहनवाज़

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