क्या मध्य प्रदेश कांग्रेस के भीतर यह सिंधिया का आखिरी दांव है
मध्य प्रदेश कांग्रेस में इस समय घमासान अपने चरम पर है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के तीन गुटों कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के बीच जबर्दस्त जंग छिड़ी हुई है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ : मध्य प्रदेश कांग्रेस में इस समय घमासान अपने चरम पर है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के तीन गुटों कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के बीच जबर्दस्त जंग छिड़ी हुई है। तीनों ही गुट अपने अपने सिपहसालारों की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी में जुटे हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया कर सकते ऐलान
इस बीच ज्योतिरादित्य की नाराजगी की खबरें भी आ रही हैं हालांकि दिग्विजय सिंह इस बात से इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि नाराजगी की खबरें गलत हैं। उनका कहना है कि फिलहाल अध्यक्ष की कुर्सी खाली नहीं है उस पर कमलनाथ विराजमान हैं।
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हालांकि मध्यप्रदेश की उठापटक के बीच यह खबरें भी आ रही हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं, जिसमें कांग्रेस को छोड़ने का एलान भी आ सकता है। क्योंकि प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर जा चुके सिंधिया की कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ी भूमिका की उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं।
सिंधिया के अमित शाह से मुलाकात
उनके पास विकल्प बहुत सीमित बचे हैं। बीच में सिंधिया के अमित शाह से मुलाकात की भी खबरें आई थीं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या सिंधिया अपनी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया के नक्शे कदम पर चल सकते हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया मनमोहन सिंह के सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे हैं और इन्होंने गुना शहर से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया है। ज्योतिरादित्य के पिता स्व. माधवराव सिन्धिया ने भी गुना का प्रतिनिधित्व किया था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2019 लोकसभा चुनाव गुना सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लड़ा था। भाजपा उम्मीदवार के.पी.यादव ने उन्हें एक लाख 25 हजार 549 वोटों के अंतर से हराया था।
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माधवराव ने 1971 में पहली बार 26 साल की उम्र में गुना से चुनाव जीता था। वे कभी चुनाव नहीं हारे। उन्होंने यह चुनाव जनसंघ की ओर से लड़ा था। आपातकाल हटने के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में उन्होंने निर्दलीय के रूप में गुना से चुनाव लड़ा था।
जनता पार्टी की लहर होने के बावजूद वह दूसरी बार यहां से जीते। 1980 के चुनाव में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और तीसरी बार गुना से चुनाव जीत गए। 1984 में कांग्रेस ने अंतिम समय में उन्हें गुना की बजाय ग्वालियर से लड़ाया था। यहां से उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मैदान में थे। उन्होंने वाजपेयी को भारी मतों से हराया था।
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महाराज माधवराव सिंधिया का परिचय
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में की पढ़ाई महाराज माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को हुआ था। माधवराव राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे। माधवराव ने सिंधिया स्कूल से शिक्षा हासिल की थी। उसके बाद वे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी पढ़ने चले गए।
माधवराव सिंधिया का नाम मध्य प्रदेश के चुनिंदा राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों में काफ़ी ऊपर लिया जाता था। माधवराव राजनीति के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य रुचियों के लिए भी विख्यात थे। क्रिकेट, गोल्फ, घुड़सवारी जैसे शौक के चलते ही वे अन्य नेताओं से अलग थे।
मप्र की सियासत में इस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया चर्चा में हैं। जितनी खबरें उनके मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर आ रही हैं उससे अधिक चर्चा इस बात की है कि वे बीजेपी में जा रहे हैं और उनकी मुलाकात बीजेपी अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह से हो चुकी है।
मजे की बात यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरफ से इन खबरों का खंडन भी नहीं किया गया है।जबकि सिंधिया स्वयं, उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे और येल यूनिवर्सिटी से पास पुत्र महाआर्यमन लगातार सोशल मीडिया पर एक्टिव रह कर लोगों से संवाद करते रहते हैं। कुल मिलाकर इन खबरों का उनके परिवार या उनके समर्थक मंत्रियों की ओर से खंडन न आना काफी संकेत दे रहा है।
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जहां तक मध्यप्रदेश की राजनीति की बात करें कमलनाथ अभी मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष हैं जबकि सिंधिया समर्थक चाहते थे कि यह पद सिंधिया को मिले लेकिन कमलनाथ इसके लिए राजी नहीं हैं क्योंकि वे सत्ता का कोई दूसरा केंद्र विकसित नहीं होने देना चाहते हैं। और अपने अपने स्वार्थों को लेकर कमलनाथ और दिग्विजय इस समय परस्पर विरोधी होते हुए भी सिंधिया को रोकने के लिए एक साथ दिखाई दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश की सियासत में कांग्रेस संगठन में अपना दबदबा कायम करना सिंधिया के लिए इसलिए और भी कठिन होता जा रहा है क्योंकि कमलनाथ आदिवासी कार्ड का इस्तेमाल सिंधिया को रोकने में लगे हैं और अपने खास समर्थक गृहमंत्री बाला बच्चन या ओमकार मरकाम को कांग्रेस बनाना चाहते हैं।
गौरतलब है कि सिंधिया को राज्य से बाहर रखने के लिए यहां कमलनाथ को दिग्विजयसिंह का साथ हासिल है जो परम्परागत् रूप से सिंधिया राजघराने के विरोधी हैं। इससे स्पष्ट है कि मप्र की सत्ता से बाहर किए गए सिंधिया को राज्य संगठन में आसानी से कोई जगह नहीं मिलने वाली है और दिल्ली की कांग्रेस में भी सिंधिया की प्रभावी भूमिका सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने से धूमिल हो चुकी है।
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पार्टी में बुजुर्ग नेताओं की ही चलने वाली
सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने से साफ हो गया कि अब पार्टी में बुजुर्ग नेताओं की ही चलने वाली है। ऐसे में सिंधिया के पक्ष में माहौल न तो मध्यप्रदेश में नजर आ रहा है, न दिल्ली में। ऐसे में उनके सामने भविष्य की राह तय करना चुनौती है।
प्रशासनिक मामलों में भी सिंधिया को उनके कद के अनुरूप तवज्जो नहीं मिली है।इसकी मिसाल है ग्वालियर में उनकी मर्जी के विरुद्ध कलेक्टर बनाए गए। कुछ यही हाल उनके गुना शिवपुरी संसदीय इलाके के कलेक्टर्स, एसपी की नियुक्ति को लेकर है जहां से वे सवा लाख वोटों से इस बार चुनाव हारे हैं।
मोदी शाह के नेतृत्व में भाजपा जिस रास्ते पर बढ़ रही है, कांग्रेस और उसके नेताओं को लगातार हाशिये पर समेट रही है। ऐसे में सिंधिया जैसे विपक्षी नेताओं के अस्तित्व के लिए सवाल खड़े हो रहे है।
वहीं बुरी पराजय के बावजूद कांग्रेस की राजनीतिक सोच में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। खासकर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को लेकर पार्टी की सोच ने कम से कम हिंदी बैल्ट में तो वोटर्स को अपने से काफी दूर कर लिया है।
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सिंधिया मोदी सरकार के पक्ष में खड़े
हालांकि अनुच्छेद 370 पर पार्टी की अधिकृत लाइन से परे जाकर जिस तरह सिंधिया मोदी सरकार के पक्ष में खड़े दिखे हैं तो इसके सियासी निहितार्थ सिंधिया की भविष्य की राजनीति से जुड़े हो सकते हैं।
और ऐसे समय में जब पार्टी की कूपमंडूपता की स्थिति नित नय़े संकट खड़े कर रही है सिंधिया जैसे नेताओं को भाजपा से ज्यादा चुनौती कांग्रेस के भीतर है। हालांकि उनके पिता राजनीति का ककहरा संघ से सीखकर जनसंघ को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। लेकिन उनकी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया भाजपा की संस्थापक औऱ लंबे समय तक फाइनेंसर रही हैं।
राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे औऱ मप्र में यशोधरा राजे पहले से ही बीजेपी में प्रभावी स्थिति में हैं। ऐसे में भाजपा उनके लिए एक सुरक्षित स्थान हो सकती है। अगर वे वाकई मोदी शाह की बीजेपी में जाने का मन बनाते हैं तो वह एक बार फिर मध्य प्रदेश की राजनीति में अपने खोए गौरव को लौटा सकते हैं।
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सियासत की दुनिया में कदम
विजयाराजे सिंधिया ही सिंधिया परिवार की पहली सदस्य थीं जिन्होंने सियासत की दुनिया में कदम रखा था। विजयाराजे सिंधिया ने अपनी राजनीतिक शुरुआत कांग्रेस से की थी।
उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर 1957 में गुना-शिवपुरी संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था और हिन्दू महासभा के प्रत्याशी को चुनाव हराया था और पहली बार संसद पहुंची। लेकिन वो बहुत दिनों तक कांग्रेस के साथ नहीं रह सकीं।
हालांकि इस बीच भोपाल में सिंधिया समर्थकों ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के बाहर प्रदर्शन करके आलाकमान को चेतावनी दी है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को यदि प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो बड़ी संख्या में पार्टी के युवा कार्यकर्ता अपना सामूहिक इस्तीफा सौंप देंगे। मप्र महिला कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष वंदना मांडरे ने कहा कि यदि सिंधिया को अध्यक्ष नहीं बनाया तो वो इस्तीफा दे देंगी।
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मौजूदा परिदृश्य को देखने से यही प्रतीत हो रहा है कि यदि सिंधिया को कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो उनका अगला निर्णायक कदम कांग्रेस से विदा लेकर भाजपा में नए राजनीतिक भविष्य की शुरुआत होगा। सारी रस्साकशी और निचोड़ यही संकेत दे रहे हैं।