विरासत में मिली राजनीति! फिर ऐसे बनाया महाराष्ट्र की राजनीति में दबदबा
जब देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की, तब पूरे विदर्भ और नागपुर में अकेले भाजपा नेता नितिन गडकरी ही थे। फडणवीस ने गडकरी के मार्गदर्शन में ही अपनी राजनीतिक सफर शुरू किया। बाद में, जैसे जैसे भाजपा के अंदरुणी समीकरण बदलने लगे वैसे वैसे फडणवीस ने गडकरी से खुद को दूर कर लिया और पार्टी में उनके विरोधी माने जाने वाले गोपीनाथ मुंडे का हाथ थाम लिया।
मुंबई: महाराष्ट्र में मतगणना के बाद से ही सियायी उठापटक साफ देखी जा सकती है, महाराष्ट्र विधानसभा का मतगणना हुए दो दिन का वक्त बीत गया है, लेकिन अभी तक राजनैतिक स्थिती साफ नहीं हो पाई है।
आपको बता दें कि आज हम बात करते हैं, देवेंद्र फडणवीस की।
खास बात यह है कि बीते 40 वर्षों में देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है और अब विधानसभा चुनाव के नतीजों में कामयाबी हासिल करने के बाद वे अपनी दूसरी पारी के लिए तैयार हैं।
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तुलना की जाये तो पिछली बार के मुकाबले भाजपा को इस बार कम सीटें मिली हैं। ऐसे में प्रश्न खड़ा होता है कि मुख्यमंत्री के तौर पर देवेन्द्र फडणवीस के सामने कैसी चुनौतियां होंगीं? पिछले पांच साल के दौरान फडणवीस ने शिवसेना को अच्छी तरह से संभाला था लेकिन क्या इस बार वे उन्हीं रणनीति के ज़रिए शिवसेना का साध पाएंगे, यह कहना मुश्किल है, अभी तक कोई भी स्पष्ट स्थिती नहीं दिख रही है।
चुनावी नतीजों के बाद उद्धव ठाकरे ने जिस तरह से पावर शेयरिंग पर ज़ोर दिया है उससे लग रहा है कि फडणवीस की चुनौतियां बढ़ने वाली हैं। हालांकि भाजपा का दावा है कि मुख्यमंत्री की छवि के सामने कोई संकट नहीं है।
भाजपा के प्रवक्ता ने बताया...
तमाम अटकलों के बीच राज्य में भाजपा के प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने बताया कि मुख्यमंत्री बेहद क्षमतावान हैं, दिन में 17-18 घंटे काम करते हैं। ऐसे मुख्यमंत्री की छवि तो पॉजिटिव ही रहेगी।
आपके मन में यह प्रश्न जरूर उठता होगा कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री के पद तक कैसे पहुंचे? वे कैसी राजनीति करते हैं? इनका राजनीति सफर कैसा रहा है, क्या उन्होंने पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री के पद को लेकर प्रतिद्वंद्विता को खत्म कर दिया है? ....
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इसका साथ ही मीडिया की समझ रखने वाले फडणवीस क्या अब मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश करते नजर आते रहे हैं, किस तरह नियंत्रित करते हैं? अगले पांच सालों में उनके सामने कौन कौन सी चुनौतियां होंगी? आईये हम आपको लेकर चलते हैं, और इन्हीं प्रश्नों में ही उत्तर खोजते हैं।
शरद पवार...
आपको बता दें कि 29 जुलाई 2014 को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को लेकर एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बरामती चुनाव क्षेत्र में धनगर समुदाय के लोगों ने धरना दिया। तब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे देवेंद्र फडणवीस वहां पहुंचे और इस मसले को हल किया।
इस मसले को हल करने के साथ ही उन्होंने वादा किया कि जब भाजपा सत्ता में आएगी तब कैबिनेट की पहली ही बैठक में धनगर समुदाय के आरक्षण का मुद्दा लिया जाएगा।
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बता दें कि पांच साल बीत गए लेकिन न केवल धनगर समुदाय के आरक्षण का मुद्दा आज भी लंबित है बल्कि विधानसभा में इसे प्रमुखता से भी नहीं उठाया गया। इस दौरान धनगर समुदाय के एक प्रमुख नेता गोपीनाथ पडलकर भाजपा में शामिल हो गए और बारामती में अजीत पवार के ख़िलाफ चुनाव लड़े।
यह उन उदाहरणों में से एक है जिसके कारण बीते पांच वर्षों के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने कुछ इस तरह की कूटनीतिक महारथ से राज्य की राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत बनाई है।
फडणवीस घराने से मिली राजनीति...
बता दें कि देवेन्द्र फडणवीस ने 90 के दशक में राजनीति में प्रवेश किया। इनका परिवार पहले से ही राजनीति में था। उनके पिता जनसंघ के नेता थे और उनकी चाची शोभा फडणवीस भाजपा-शिवसेना की पहली सरकार में मंत्री थीं। 90 के दशक में वे नागपुर के मेयर थे और पहली बार 1999 में राज्य विधानसभा के लिए चुने गए।
मेयर के पद को कर चुके हैं सुसज्जित...
खास बात यह है कि यह है कि मुख्यमंत्री बनने से पहले उनका प्रशासनिक अनुभव मेयर के पद तक ही सीमित था। इससे पहले वे कभी किसी मंत्री के पद पर भी नहीं रहे।
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जब देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की, तब पूरे विदर्भ और नागपुर में अकेले भाजपा नेता नितिन गडकरी ही थे। फडणवीस ने गडकरी के मार्गदर्शन में ही अपनी राजनीतिक सफर शुरू किया। बाद में, जैसे जैसे भाजपा के अंदरुणी समीकरण बदलने लगे वैसे वैसे फडणवीस ने गडकरी से खुद को दूर कर लिया और पार्टी में उनके विरोधी माने जाने वाले गोपीनाथ मुंडे का हाथ थाम लिया। इस नजदीकी की बदौलत फडणवीस राज्य में पार्टी के प्रमुख के पद तक पहुंचने में कामयाब हुए।
फडणवीस का मुख्यमंत्री बनने का सफर...
मुख्यमंत्री का पद पाने में फडणवीस के लिए पार्टी प्रमुख का पद बहुत अहम साबित हुआ। उनके ही नेतृत्व में भाजपा राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन यही एक मात्र कारण नहीं रहा।
संघ की विचारधारा में ढले फडणवीस में आरएसएस बहुत विश्वास रखता है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव 2014 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा की केंद्र में सरकार बनी जो गडकरी के माकूल नहीं था।
अन्य राज्यों में भाजपा की रणनीति अल्पसंख्यक समुदाय से मुख्यमंत्री बनाने की रही न कि बहुसंख्यक वर्ग से। हरियाणा में गैर जाट मनोहरलाल खट्टर, झारखंड में गैरआदिवासी रघुबर दास और महाराष्ट्र में गैरमराठा देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसका फायदा यह हुआ कि महाराष्ट्र में भाजपा को गैर मराठाओं का समर्थन मिला।
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मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को अपनाया। महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में बहुत कम ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपना मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा किया हो।
फडणवीस के सामने भी ऐसी संकट की स्थिति पैदा हुई लेकिन उन्होंने न केवल अंदरूणी प्रतिद्वंद्विता को काबू किया बल्कि गठबंधन की सहयोगी शिवसेना से उपजी प्रतिकूल परिस्थितियों का भी बखूबी सामना किया।
पार्टी को किया इकठ्ठा...
फडणवीस को अपनी पार्टी के अंदर ही प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ा। नितिन गडकरी, एकनाथ खड़से, पंकजा मुंडे, विनोद तावड़े और चंद्रकांत पाटील सरीखे नेताओं को फडणवीस का मुख्य प्रतिद्वंद्वी माना गया।
इनमें से गडकरी को केंद्र में अहम पद दिया गया ताकि स्वभाविक रूप से राज्य की राजनीति में उनका कद कम हो जाए। दूसरी तरफ, एकनाथ खड़से, पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े जैसे नेताओं को राज्य में मंत्री का पद तो दिया गया लेकिन समय समय पर उनके सामने परेशानियां आती रहीं और वो विवादों में घिरते गए।
आपको बता दें कि खड़से पर भ्रष्टाचार का आरोप था, लिहाजा उन्हें अपना मंत्री पद खोना पड़ा। बाद में न तो उन्हें कभी कैबिनेट में नहीं लिया गया और न ही इस चुनाव में उन्हें टिकट ही दी गई।
विनोद तावड़े फर्जी डिग्री और स्कूल के लिए सामानों की ख़रीद में अनियमितता की वजह से मुश्किलों में पड़ गए। वहीं पंकजा मुंडे पर भी चिक्की ख़रीद मामले में आरोप लगा। इन सभी मामलों का सीधा राजनीतिक लाभ फडणवीस को मिला।
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उन्होंने कुछ वैकल्पिक नेताओं को मजबूत बनाया ताकि ऊपर बताए गए सभी नेताओं के लिए अब आगे आना मुश्किल हो। वे खड़से की जगह गिरीश महाजन को तो विनोद तावड़े की जगह आशीष शेलार को लाए।
लेकिन फडणवीस को अब भी चंद्रकांत पाटील से चुनौती मिल रही है। पाटील राज्य की कैबिनेट में नंबर दो पर हैं और केंद्रीय नेतृत्व से भी उनके अच्छे संबंध हैं। उन्हें अमित शाह के वफादार के रूप में जाना जाता है। उनके पास मराठा होने का लाभ भी है।
लिहाजा, आने वाले वक्त में चंद्रकांत पाटील फडणवीस के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी होंगे। दूसरी ओर, खड़से और तावड़े के साथ जो हुआ उसे देखते हुए पार्टी के अंदर अन्य विरोधी एकजुट होकर फडणवीस के ख़िलाफ सामने आ सकते हैं।
इसके साथ ही फडणवीस को गठबंधन की सहयोगी शिवसेना से भी निपटना होगा। चूंकि भाजपा को राज्य विधानसभा में पूर्ण बहुमत नहीं हासिल हो सका है, लिहाजा उन्हें शिवसेना का साथ लेकर ही सरकार चलाना है। भले ही शिवसेना को उन्होंने मंत्रिमंडल में कोई ख़ास महत्वपूर्ण विभाग नहीं दिया लेकिन गठबंधन में उसे बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।
मुंबई नगरपालिका चुनावों में भाजपा को मिली भारी सफलता इसका परिचायक है। कई ऐसी वजहें हैं जिससे वे शिवसेना को गठबंधन में बनाए रखने में कामयाब हुए और कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए राजी भी कर सके।
इस बार उन्होंने शिवसेना को ज़रूर अपनी चतुराई से संभाल लिया है लेकिन अपने पिछले अनुभवों को देखते हुए शिवसेना इस बार ज़रूर दबाव की राजनीति का इस्तेमाल करेगी।
मराठा समुदाय की चुनौतियों का किया सामना...
फडणवीस के सामने एक और बड़ी चुनौती महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा वर्चस्व का सामना और इस समुदाया का समर्थन प्राप्त करना था।
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर वो सड़कों पर उतर गए और राज्य भर में बड़ी बड़ी रैलियों का आयोजन किया। इससे फडणवीस को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता था, लेकिन फडणवीस ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने की घोषणा करके इस चुनौती को भी सफलतापूर्वक पार कर लिया।
देवेन्द्र फडणवीस का मीडिया पर नियंत्रक...
हमेशा से माना जाता रहा है कि फडणवीस को मीडिया की अच्छी समझ है, मीडिया रिपोर्ट की मानें तो देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री बनने से पहले और उसके बाद मीडिया का बहुत ही चतुराई से इस्तेमाल किया।
सबसे महत्वपूर्ण बात, उन्होंने पत्रकारों के बीच अपने हमदर्द पैदा कर लिए हैं। उन्हें मुंबई में लश्कर-ए-देवेंद्र कहा जाता है।
वे एक तरह से भाजपा के प्रवक्ताओं की तरह काम करते हैं। वे बहुत बेहतरीन तरीके से सरकार का समर्थन करते हैं। मीडिया के जरिए सरकार की सकारात्मक छवि कैसे बनाई जाए और नकारात्मक कवरेज से कैसे बचा जाए इसमें फडणवीस को महारथ हासिल है।
आगे के रास्ते और कठिन...
भले ही देवेंद्र फडणवीस अगले पांच वर्षों के लिए एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे जाएं लेकिन इस बार चुनौतियां और भी गंभीर हो सकती हैं। सबसे पहली चुनौती तो होगी मराठा युवाओं को रोज़गार देना। फिर राज्य में बेरोज़गारी की समस्या से निबटना होगा।
सरकार को राज्य में आर्थिक सुस्ती से भी जूझना होगा। वहीं धनगर समुदाय को आरक्षण को लेकर भी कुछ फैसले करने होंगे। किसानों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी और इन सब पर अगले पांच वर्षों में नतीजे देने होंगे।
इसके अलावा कई अधूरी परियोजनाएं पूरी करनी होंगी और इन स भी चुनौतियों से पार पाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। इन सबके साथ उन्हें बढ़ी हुई ताक़त वाली शिवसेना के दबाव और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विरोध का सामना भी करना पड़ेगा।
देवेन्द्र फडणवीस पर एक नजर...
देवेन्द्र फडणवीस एक भारतीय राजनेता हैं। वर्तमान में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तथा राज्य के भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तथा महाराष्ट्र विधानसभा में नागपुर दक्षिण पश्चिम से विधायक है। पूर्व में वे नागपुर नगर निगम के मेयर भी रह चुके हैं।
जीवन परिचय...
देवेन्द्र गंगाधरराव फडणवीस महाराष्ट्र की राजनीति का वो नाम है, जिसने अपने पिता से राजनीति विरासत मिलने के बावजूद अपनी अलग पहचान बनाई। फडणवीस ब्राह्मण परिवार से तालुक रखते हैं और उनके पिता गंगाधर राव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ में रहे हैं।
फडणवीस के पिता राज्य विधान परिषद के सदस्य भी रहे। देवन्द्र ने लॉ से स्नातक किया इसके अलावा उन्होंने बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई भी की। फडणवीस अपने कॉलेज के दिनों में एबीवीपी के एक सक्रिय सदस्य थे। एबीवीपी के कार्यकर्ता के रूप में उन्होने जमीनी स्तर पर राजनेताओं के लिए कार्य किया।
व्यक्तिगत जीवन...
देवेन्द्र फडणवीस ने 2006 में अमृता रानाडे से शादी की। इनकी एक बेटी है, जिसका नाम दिविजा फडणवीस है। अमृता रानाडे नागपुर के एक्सिस बैंक में एसोसिएट उपाध्यक्ष हैं। रानाडे एक गैर राजनीतिक परिवार की पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखती हैं। उसके माता पिता नागपुर में डॉक्टर हैं।