SC on Dowry Death: ससुराल में हर अस्वाभाविक मौत दहेज हत्या नहीं, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

SC on Dowry Death: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए माना कि मृतका के साथ मौत से पहले ज्यादती हुई है। कोर्ट ने कहा कि महिला के पिता के बयान के मुताबिक, शादी के शुरूआती महीनों में दहेज के रूप में एक मोटरसाइकिल की मांग की गई थी। हालांकि, बयान से ऐसा कुछ साबित नहीं होता है कि मौत से तुरंत पहले इस तरह की कोई मांग की गई हो।

Update: 2023-04-26 12:54 GMT
SC on Dowry Death (Photo: Social Media)

SC on Dowry Death: दहेज हत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर मौत का कारण पता न हो तो शादी के 7 साल के भीतर हर अस्वाभाविक मौत दहेज हत्या नहीं है। जस्टिस अभय एस कोका और जस्टि राजेश बिंदल की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए दहेज हत्या के आरोपी को बरी कर दिया। उक्त शख्स को लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने दहेज के लिए अपनी पत्नी की हत्या करने के मामले में दोषी ठहराया था।

दहेज का मामला नहीं होता साबित

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए माना कि मृतका के साथ मौत से पहले ज्यादती हुई है। कोर्ट ने कहा कि महिला के पिता के बयान के मुताबिक, शादी के शुरूआती महीनों में दहेज के रूप में एक मोटरसाइकिल की मांग की गई थी। हालांकि, बयान से ऐसा कुछ साबित नहीं होता है कि मौत से तुरंत पहले इस तरह की कोई मांग की गई हो। सुप्रीम कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ आरोपी को बड़ी राहत दे दी।

क्या है पूरा मामला ?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, महिला की शादी साल 1993 में हुई थी। महज दो साल बाद जून 1995 में उसकी मौत हो गई थी। महिला के पिता ने अपने दामाद के परिवार वालों चरण सिंह, देवर गुरमीत सिंह और सास संतों कौर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी। मामले में ट्रायल कोर्ट ने व्यक्ति को दोषी मानते हुए उसे 10 साल की सजा सुनाई थी। जिसे उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने भी व्यक्ति को दोषी माना। लेकिन सजा घटाकर सात साल कर दी। शख्स ने फिर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां आखिरकार उसे राहत मिल गई।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट का 4 साल पुराना दहेत हत्या से जुड़े एक मामले का फैसला चर्चाओं में है। साल 2019 में हाईकोर्ट ने यह कहते हुए आरोपी को बरी कर दिया था कि शादी के सात साल के भीतर आत्महत्या दहेज हत्या का सबूत नहीं है। उच्च न्यायालय का कहना था कि केवल इसलिए की एक महिला ने शादी के निर्धारित अवधि के भीतर आत्महत्या कर ली है।

दहेज हत्या की शिकायत की गई

यह नहीं माना जा सकता है कि यह दहेज मृत्यु थी। दरअसल, 21 साल पुराने इस मामले में एक शख्स की पत्नी ने शादी के कुछ ही साल बाद आत्महत्या कर ली थी। घटना के वक्त वह 27 का था, लडकी के परिवारवालों ने उसके खिलाफ दहेत हत्या की शिकायत दर्ज कराई थी। लोअर कोर्ट में दोषी ठहराए जाने के बाद हाईकोर्ट ने उसे मामले में बरी कर दिया था। राज्य सरकार द्वारा फैसले को पलेटने को लेकर कोर्ट में अपील भी दायर की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था।

दहेज विरोधी कानूनों की समीक्षा

बता दें कि दहेज के खिलाफ काफी सख्त कानून बनाए गए हैं। लेकिन फिर भी समाज में यह कुरीति जारी है। हालांकि, ऐसे कई मामले सामने आ चुके है, जिसमें इन कड़े कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल वर पक्ष को परेशान करने के लिए इस्तेमाल किया गया है। इसलिए दहेज विरोधी कानूनों की समीक्षा करने की मांग भी होती रही है।

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