10 दिन में 4 बड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार, बदलेगी देश की तस्वीर!
कोर्ट ने कहा, ऐसा इसलिए क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है, महिलाओं को प्रवेश से रोका नहीं जाना चाहिए। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया।
नई दिल्ली: भारत की सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से अगले 10 दिन बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट 4 नवंबर से अगले 10 दिनों तक चार बड़े मामलों पर सुनवाई करने वाला है। इस लिस्ट में अयोध्या भूमि विवाद मामला भी शामिल है।
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इसके अलावा भी 3 अन्य महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई होगी। अयोध्या भूमि विवाद के साथ 10 दिनों में सबरीमाला मंदिर, चीफ जस्टिस ऑफिस को आरटीआई के तहत लाना और राफेल लड़ाकू विमानों पर सुनवाई होगी। इन मसलों पर 10 दिनों में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा।
इनपर आएगा फैसला
- अयोध्या भूमि विवाद
- सबरीमाला अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं का प्रवेश
- राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद-फरोख्त
- सीजेआई को आरटीआई के दायरे में लाने वाली याचिका
अयोध्या भूमि विवाद
अयोध्या भूमि विवाद एक पुराना और विवादित मामला है। अब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनना है। ऐसे में इस तरह की अटकलें तेज हो गई हैं कि पांच न्यायाधीशों की बेंच एक सर्वसम्मत फैसला कैसे दे पाएगी? ऐसा हो भी पाएगा या नहीं। इसके अलावा सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या कोर्ट के फैसले का स्वागत हिंदू और मुस्लिम अच्छे से करेंगे या इसपर भी बवाल होगा?
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अयोध्या विवाद पांच सदी पुराना है। कहते हैं बाबर ने 1528-29 के बीच मंदिर तोड़कर इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद साल 1853 में पहली बार अयोध्या में इसको लेकर दंगे हुए। साल 1859 में आजादी से पहले एक आंदोलन हुआ था, जिसमें ब्रिटिश शासकों ने परिसर को दो हिस्सों में बांट दिया था।
पहली बार जिला अदालत पहुंचा था मामला
बाद में साल 1885 में ये विवादित मामला पहली बार जिला अदालत पहुंचा था। इसके बाद 1934 में भी गुंबद क्षतिग्रस्त किए गए थे। 1949 में कथित तौर पर हिंदुओं ने मूर्ति स्थापित की थी तो सरकार ने इसको विवादित घोषित कर यहां ताला लगवा दिया था।
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अदालत से भगवान राम की पूजा की इजाजत साल 1950 में मांगी गयी थी। इसके बाद 1959-61 के बीच दोनों पक्षों ने इस स्थल पर हक जमाने के लिए मुकदमा किया था। साल 1984 में रामजन्मभूमि मुक्ति समिति का गठन किया गया। फिर फरवरी 1986 में ताला खोलने का आदेश जारी किया गया, जिसके बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी भी बनी।
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जून 1989 में विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर का शिलान्यास किया था। इसके बाद 25 सितंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी ई बिहार में रथ यात्रा रोककर उनको गिरफ्तार किया गया। 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में पहली बार कारसेवा तो हुई ही साथ में गोलीकांड भी हो गया। जून 1991 में उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए और सत्ता में बीजेपी सरकार आ गई। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी गई, जिसकी वजह से देश में दंगे शुरू हो गए। इसके बाद से मामला जगजाहिर है।
RTI के तहत CJI ऑफिस और पर राफेल भी फैसला
सीजेआई ऑफिस को आरटीआई के तहत लाने की अनुमति देने पर गोगोई की अध्यक्षता वाली एक अन्य पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। वहीं, फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद संबंधित मामले में एनडीए सरकार को क्लीन चिट पिछले साल दी गई, लेकिन इस फैसले को चुनौती देते हुए समीक्षा याचिका दायर की गईं जिस पर सीजेआई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच के निर्णय का इंतजार है।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश
वर्ष 2006 में सबरीमाला मंदिर के मुख्य ज्योतिषि परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा, अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं वो इसलिए नाराज हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवती ने प्रवेश किया है। इस बयान के कुछ समय बाद कन्नड़ स्टार प्रभाकर की पत्नी जयमाला ने कहा कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ। वह प्रायश्चित करना चाहती हैं।
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जयमाला का दावा था कि वर्ष 1987 में पति के साथ जब वह मंदिर दर्शन करने गई थीं तो धक्का लगने से गर्भगृह पहुंच गईं और भगवान अयप्पा के चरणों में गिर गईं। पुजारी ने उन्हें फूल भी दिए थे।
जयमाला के दावे पर राज्य में हंगामा खड़ा हो गया मंदिर में महिलाओं प्रवेश में वर्जना को लेकर वर्ष 2006 में यंग लॉयर्स असोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति न देने पर जवाब मांगा।
ब्रह्मचारी थे अयप्पा
बोर्ड ने जवाब दिया, अयप्पा ब्रह्मचारी थे और इस वजह से मंदिर में वही बच्चियां व महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं, जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो या फिर समाप्त हो चुका हो। 11 जुलाई 2016 को कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक का यह मामला संवैधानिक पीठ को भेजा जा सकता है।
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कोर्ट ने कहा, ऐसा इसलिए क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है, महिलाओं को प्रवेश से रोका नहीं जाना चाहिए। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया। जुलाई, 2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की थी। 7 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में है। 28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी है।