मतुआ संप्रदाय: मोदी-ममता और शाह हर कोई लुभाने की कर रहा कोशिश, लेकिन क्यों
बीजेपी ने बोरो मां के पोते शांतनु ठाकुर को बोंगन लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतार दिया। बीजेपी की मतुआ वोट पाने की यह रणनीति काम कर गई। जिसके बाद से इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार विजय प्राप्त की।
दुर्गापुर: देश के गृह मंत्री अमित शाह अपने दो दिवसीय पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरान अपने बिजी शेड्यूल से समय निकालकर मतुआ समुदाय के लोगों से मिलने वाले हैं।
जिसके बाद से अब पश्चिम बंगाल के अंदर मतुआ समुदाय की चर्चा तेज हो गई है। पश्चिम बंगाल के अंदर अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें मतुआ समुदाय के बारें में जानकारी नहीं है। लोग एक दूसरे से बात करके और इंटरनेट पर साइट्स खंगाल कर इस बारें में जानने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान मतुआ समुदाय के 100 साल पुराने मठ बोरो मां बीणापाणि देवी के अंदर माथा टेककर अपने बंगाल चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। लोकसभा चुनाव के लिए पीएम मोदी की ये सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी। जो बाद में काम कर गई।
ममता दी के वोट बैंक में बीजेपी ने ऐसे लगाई थी सेंध
बीजेपी ने बोरो मां के पोते शांतनु ठाकुर को बोंगन लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतार दिया। बीजेपी की मतुआ वोट पाने की यह रणनीति काम कर गई।जिसके बाद से इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार विजय प्राप्त की।
अब जबकि अमित शाह अपने दो दिवसीय पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरे पर हैं तो ये माना जा रहा है कि पीएम मोदी की तरह ही वे भी मतुआ समुदाय को लुभाने की पूरी कोशिश करेंगे। इसी कड़ी में वे अपने अपने बिजी शेड्यूल से समय निकालकर भी मतुआ समुदाय के लोगों से मुलाकात करने वाले हैं।
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कौन हैं ये मतुआ समुदाय
दरअसल मतुआ समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से आते हैं और ये लोग नागरिकता संशोधन कानून के तहत भारत में बसने के लिए नागरिकता देने की मांग करते रहे हैं। ऐसी भी चर्चा है कि 2019 में इस समुदाय के लोग बीजेपी के पक्ष में खड़े थे, लेकिन अब उनके युवा सांसद शांतनु ठाकुर इस कानून को लेकर मोदी सरकार से खफा चल रहे हैं।
ऐसे में इस बात की भी चर्चा तेज हो गई है कि देश के गृह मंत्री अमित शाह मतुआ परिवार के लोगों के साथ खाना खाकर उनके साथ अपनापन का एहसास कराना चाहते हैं।
लेकिन बीजेपी के लिए इस बार मतुआ समुदाय को अपने पाले में खड़ा करना इतना आसान भी नहीं होगा क्योंकि सीएम ममता बनर्जी ने भी बड़ा दांव इस बार खेला है।
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बुधवार को ममता बनर्जी ने भी 25,000 शरणार्थी परिवारों को भूमि के अधिकार प्रदान किए हैं।
इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने मतुआ विकास बोर्ड और नामशूद्र विकास बोर्ड के लिए क्रमश: 10 करोड़ और पांच करोड़ रुपये का आंवटन भी कर दिया है।
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कब और कैसे आये राजनीति में
इतिहासकारों की मानें तो हरिचंद ठाकुर के वंशजों ने मतुआ संप्रदाय की स्थापना की थी। नॉर्थ 24 परगना जिले के ठाकुर परिवार का सियासत से पुराना नाता रहा है।
यहां पर हरिचंद के प्रपौत्र प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य बने थे। प्रमथ का विवाह बीणापाणि देवी से 1933 में हुआ था। बीनापाणि देवी को ही बाद में ‘मतुआ माता’ या ‘बोरो मां’ (बड़ी मां) की उपाधि प्रदान की गई।
1918 में अविभाजित बंगाल के बारीसाल जिले में बीनापाणि देवी पैदा हुई थी।आजादी के बाद बीणापाणि देवी ठाकुर परिवार के साथ पश्चिम बंगाल आकर बस गईं थी।
ऐसा कहा जाता है कि बीणापाणि देवी अपने अंतिम दिनों तक इस समुदाय के लिए भाग्य की देवी बनी रही। वक्त जैसे –जैसे बीतते गया बीनापाणि देवी की ख्याति दूर-दूर तक फैलती गई। आगे चलकर ठाकुर परिवार के कई सदस्यों ने राजनीति अपना कदम रख दिया और मतुआ महासंघ की स्थापना की।
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बीणापाणि देवी के प्रति लोगों में थी अपार श्रद्धा
बीणापाणि देवी के बारें में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने नामशूद्र शरणार्थियों की सुविधा के लिए अपने परिवार के साथ मिलकर वर्तमान बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज नाम की एक शरणार्थी बस्ती बसाने का काम किया था। इसमें सीमापार से आने वालों खासतौर पर नामशूद्र शरणार्थियों को रखा जाता था।
धीरे-धीरे राजनीति के क्षेत्र में भी इस परिवार का कद बढने लगा। 1962 में परमार्थ रंजन ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व सीट हंसखली से विधानसभा का चुनाव में भारी वोटों से जीत दर्ज की।
आगे चलकर सन 1990 में प्रमथ रंजन ठाकुर की मौत हो गई। इसके बाद बीनापाणि देवी ने मतुआ महासभा के सलाहकार की भूमिका खुद संभाली। संप्रदाय से जुड़े लोग उन्हें देवी की तरह देखने लगे। 5 मार्च 2019 को मतुआ माता बीनापाणि देवी ने अंतिम सांस ली थी।
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