राज्यपाल ने गहलोत को शर्तों और सवालों में उलझाया, अब CM के सामने ये मुश्किलें

मुख्यमंत्री की तमाम कोशिशों और कैबिनेट के दो बार प्रस्ताव पारित करने के बाद राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाने पर तो तैयार हो गए मगर उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत को शर्तों और सवालों के जाल में उलझा दिया है।

Update: 2020-07-27 13:59 GMT

अंशुमान तिवारी

जयपुर। राजस्थान ने सियासी संकट के 18 दिन बीतने के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। मुख्यमंत्री की तमाम कोशिशों और कैबिनेट के दो बार प्रस्ताव पारित करने के बाद राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाने पर तो तैयार हो गए मगर उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत को शर्तों और सवालों के जाल में उलझा दिया है। मुख्यमंत्री की सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि वे जल्द से जल्द विधानसभा का सत्र बुलाना चाहते हैं जबकि राज्यपाल ने 21 दिन का नोटिस देकर सत्र बुलाने की शर्त रख दी है।

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विधायकों को रखना होगा गोलबंद

दरअसल राजस्थान के मौजूदा सियासी संकट में गहलोत के सामने सबसे बड़ी दिक्कत विधायकों को गोलबंद रखने की है। इसी कारण वे जल्द से जल्द विधानसभा में विश्वासमत हासिल कर सियासी संकट को टालने की कोशिश में जुटे हुए हैं। एक बार विश्वासमत हासिल कर लेने पर गहलोत का सियासी संकट कई महीनों के लिए टल जाएगा। विधायकों को गोलबंद रखने के लिए ही गहलोत ने दो हफ्ते से अधिक समय से विधायकों को जयपुर के एक होटल में टिकवा रखा है। अब गहलोत के लिए एक खुशखबरी तो यह है कि राज्यपाल ने विधानसभा का सत्र आहूत करने पर सहमति दे दी है, लेकिन दूसरी बुरी खबर यह है कि उन्होंने शर्तों और सवालों के जाल में भी मुख्यमंत्री को उलझा दिया है।

21 दिन के नोटिस पर बुलाएं सत्र

राज्यपाल ने विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए यह शर्त रख दी है कि विधानसभा का सत्र 21 दिन का क्लियर नोटिस देकर ही बुलाया जाए ताकि कोरोना महामारी के इस संकट काल में किसी भी विधायक को सत्र में हिस्सा लेने में दिक्कतों का सामना न करना पड़े। राज्यपाल की शर्त ने गहलोत की दिक्कतें बढ़ा दी हैं क्योंकि अब उन्हें लंबे समय तक विधायकों को गोलबंद रखना होगा। अगर इस दौरान कुछ विधायक छिटकते हैं तो निश्चित रूप से गहलोत की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

कार्यवाही की रिकॉर्डिंग और लाइव प्रसारण

राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से यह भी पूछा है कि क्या आप विश्वासमत प्रस्ताव लाना चाहते हैं? राज्यपाल का कहना है कि यदि किसी भी परिस्थिति में विश्वासमत हासिल करने की कार्यवाही की जाती है तो इसमें संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की मौजूदगी होनी चाहिए। इसके साथ ही पूरी कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग भी कराई जानी चाहिए और इसका लाइव प्रसारण भी होना चाहिए।

कोरोना संकटकाल में बैठक पर सवाल

राज्यपाल ने कोरोना संकटकाल में विधानसभा का सत्र बुलाने पर सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर भी सवाल खड़ा किया है। राज्यपाल का कहना है कि विधानसभा का सत्र बुलाने पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे किया जाएगा। उन्होंने सवाल किया कि क्या कोई ऐसी व्यवस्था है जिसमें 200 सदस्यों और 1000 से ज्यादा अधिकारियों कर्मचारियों के इकट्ठा होने पर भी उनमें संक्रमण का कोई खतरा न हो? यदि इस दौरान कोई संक्रमण का शिकार होता है तो उसे फैलने से कैसे रोका जाएगा?

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सत्र न बुलाने की मंशा से इनकार

राज्यपाल कलराज मिश्र का कहना है कि राजभवन की कभी ऐसी मंशा नहीं रही कि विधानसभा सत्र न बुलाया जाए। उन्होंने कहा कि राजभवन यही चाहता है कि संवैधानिक नियमावली और तय प्रावधानों के तहत प्रदेश में सरकार चलनी चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि वे इसके लिए प्रतिबद्ध हैं और इसीलिए संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत सरकार से विधानसभा का सत्र बुलाने को कहा गया है। राज्यपाल ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में विभिन्न मुकदमों में जो फैसले दिए हैं, उन्हें विधानसभा में विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान अवश्य ध्यान में रखा जाए।

पीएम से शिकायत के बाद राज्यपाल की सहमति

इससे पहले राज्य सरकार और राजभवन के बीच पैदा हुए टकराव को देखते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत करके राज्यपाल की शिकायत की थी। उन्होंने सोमवार को विधायकों को संबोधित करते हुए पीएम से इस मुद्दे पर बातचीत होने की जानकारी दी थी। कांग्रेस लगातार राज्यपाल को घेरते हुए यह आरोप लगाती रही है कि वे दिल्ली में अपने मास्टर से निर्देश न मिलने के कारण विधानसभा का सत्र नहीं बुला रहे हैं। कांग्रेस का इशारा स्पष्ट रूप से पीएम मोदी की ओर था और पीएम मोदी से मुख्यमंत्री की बातचीत के बाद अब राज्यपाल ने विधानसभा सत्र बुलाने को हरी झंडी दिखा दी है।

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गहलोत को अब करना होगा इंतजार

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से राज्यपाल को भेजे गए नए प्रस्ताव में 31 जुलाई से विधानसभा का सत्र बुलाने की अनुमति देने की मांग की गई थी मगर राज्यपाल ने अब 21 दिन के नोटिस की समय सीमा तय की है। इस कारण अशोक गहलोत को अब विश्वासमत हासिल करने के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा और इसके साथ ही इस दौरान विधायकों को गोलबंद रखने का बड़ा काम भी करना होगा।

सचिन पायलट गुट की दिक्कतें भी बढ़ीं

दूसरी ओर विधानसभा का सत्र आयोजित होने पर सचिन पायलट गुट की दिक्कतें भी बढ़ेंगी। विश्वासमत प्रस्ताव पर चर्चा से पहले कांग्रेस की ओर से व्हिप जारी करने की योजना है और ऐसे में सचिन पायलट ग्रुप के विधायकों के सामने मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।

अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत करने के कारण वे गहलोत सरकार का समर्थन नहीं कर सकते और व्हिप के खिलाफ जाने पर उनकी सदस्यता जाने का खतरा पैदा हो जाएगा। इसके साथ ही विधानसभा के सत्र में हिस्सा लेने के लिए उन्हें जयपुर आना होगा। राजस्थान की एसओजी कई दिनों से पायलट गुट के विधायकों से पूछताछ करने की कोशिश में जुटी हुई है मगर उसे कामयाबी नहीं मिल पा रही है। विधायकों के जयपुर पहुंचने पर वे एसओजी के फंदे में भी फंस सकते हैं।

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