बिहार चुनावः शुरू हो गया नूराकुश्ती का दौर, विरोध छोड़ आए चुनाव मोड में

लेकिन चुनाव आयोग की गतिविधियों व राज्य सरकार की अति सक्रियता से जैसे ही चुनाव होना मुमकिन लगने लगा वैसे ही सभी पार्टियां चुनावी मोड में आ गईं।

Update:2020-08-29 16:14 IST
चुनाव आयोग की गतिविधियों व राज्य सरकार की अति सक्रियता से जैसे ही चुनाव होना मुमकिन लगने लगा वैसे ही सभी पार्टियां चुनावी मोड में आ गईं।

पटना: बिहार में चुनावी नूरा कुश्ती का खेल शुरू हो गया है। गठबंधन बचाने की चाहत भी है लेकिन साथ ही सीट शेयरिंग को लेकर मतभेद भी अपनी जगह पर हैं। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो रहा है। कुछ दिन पहले तक भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड को छोड़ कर लगभग सभी पार्टियों ने राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने का विरोध किया था।

सरकार में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) भी चुनाव न कराने की पक्षधर थी। जन अधिकार पार्टी (जाप) के मुखिया पप्पू यादव ने तो चुनाव रोकने के लिए हाईकोर्ट की शरण लेने की घोषणा कर दी थी। लेकिन चुनाव आयोग की गतिविधियों व राज्य सरकार की अति सक्रियता से जैसे ही चुनाव होना मुमकिन लगने लगा वैसे ही सभी पार्टियां चुनावी मोड में आ गईं।

तैयारी में सब जुटे हैं

बिहार चुनाव ( फाइल फोटो)

अंदरखाने सबने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। अमित शाह ने तो सात जून को ही वर्चुअल रैली का आयोजन कर बकायदा चुनाव का बिगुल फूंक दिया था। इनके साथ-साथ जदयू व सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने भी सांगठनिक चर्चा के नाम पर ताबड़तोड़ वर्चुअल बैठकें कीं। तेजस्वी यादव भी राष्ट्रीय जनता दल को वर्चुअल मोड में ले आए।

ये भी पढ़ें- तूफान ‘लॉरा’ की तबाही: आपदाओं से घिरा महाशक्तिशाली देश, हर तरफ हाहाकार

और अपनी विभिन्न यात्राओं के जरिए वोटरों से कनेक्ट करने की कवायद तेज कर दी। राहुल गांधी ने वर्चुअल बैठक कर कांग्रेस को सक्रिय करने की कोशिश की जबकि महागठबंधन के अन्य घटक विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) व हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) की गतिविधियां तेज हो गईं हैं।

चुनाव से पहले ध्रुवीकरण

बिहार चुनाव ( फाइल फोटो)

पार्टियों के अंदर समीकरण-ध्रुवीकरण का खेल रफ्तार में है। सभी दल उनकी पहचान करने में जुटे हैं जो दुविधा के दरवाजे पर खड़े हैं। सौदेबाजी होते ही वे बाहर वाले का दामन थाम लेते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है श्याम रजक के साथ। लालू राज के समय रामकृपाल यादव और श्याम रजक की जोड़ी बड़ी मशहूर थी। राजद के शासन काल में श्याम रजक काफी दिनों तक मंत्री रहे और फिर 2009 में वे जदयू में शामिल हो गए।

ये भी पढ़ें- नाकामी और प्रेम त्रिकोणः सुलझी कम उलझी ज्यादा, संगीता कुमारी की कहानी

2010 में नीतीश सरकार में मंत्री बने लेकिन 2015 में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया किंतु जब राजद का साथ छोड़ जदयू ने एकबार फिर भाजपा से गठबंधन कर सरकार बनाई तो 2019 में कैबिनेट विस्तार के दौरान उन्हें पुन: मंत्री बनाया गया। वे पटना की फुलवारीशरीफ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। चर्चा है कि श्याम रजक से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले जदयू के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) आरसीपी सिंह ने इस बार अरुण मांझी को फुलवारीशरीफ से चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी है।

श्याम रजक पर बवाल

बिहार चुनाव ( फाइल फोटो)

श्याम रजक के जाने पर आरसीपी सिंह कहते हैं, चुनाव के समय में ऐसा होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जबकि जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि रजक लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं इसलिए उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। हालांकि श्याम रजक कहते हैं कि 99 प्रतिशत मंत्री मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाखुश हैं।

ये भी पढ़ें- भदोही: तालाब में डूब रहे बालक को बचाने में मां भी डूबी, दोनों की मौत

उनमें कई ने अभी निर्णय नहीं लिया है। कौन कहां जाएगा मैं नहीं जानता, मैं राजद ज्वाइन कर रहा हूं। यहां बड़ी-बड़ी बातें की जातीं हैं, कोई काम नहीं होता। राजद से निकाले गए विधायकों की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। कोई इसे घर वापसी बता रहा तो कोई नीतीश कुमार को पिछड़ों-दलितों का मसीहा। किंतु इसके पीछे पलायन का असली कारण अपना-अपना गणित व चुनाव जीतने की चिंता ही है।

गठबंधनों में विवाद

बिहार चुनाव ( फाइल फोटो)

बिहार में सरकार में भाजपा-जदयू-लोजपा का गठबंधन है। दूसरी तरफ विपक्षी महागठबंधन में राजद-कांग्रेस-हम-रालोसपा-वीआइपी व अन्य शामिल हैं। इन दलों के बीच भी सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान जारी है। भाजपा नीत गठबंधन की बात करें तो इसके सभी घटक असहज स्थिति में हैं।

ये भी पढ़ें- असीम पोर्टल : एक अनार सौ बीमार, बहुत कम लोगों को मिला रोजगार

भाजपा व जदयू के बीच भी उन सीटों पर खींचतान तय है जो उनकी सिटिंग सीट रहीं हैं। यही उलझन लोजपा की भी है। शायद यही वजह है कि दबाव बनाने के लिए लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान लगातार नीतीश सरकार पर हमलावर रहे हैं।

विपक्ष में भी सब ठीक नहीं

बिहार चुनाव ( फाइल फोटो)

इसी तरह महागठबंधन में तेजस्वी यादव का मौन भी उसके सहयोगियों, कांग्रेस व हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को ज्यादा परेशान कर रहा है। सीट शेयरिंग के मुद्दे पर समन्वय समिति की मांग कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी तो अपनी अनदेखी से इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने नीतीश कुमार का गुणगान शुरू कर दिया। इधर, अपनी यात्रा में मगन तेजस्वी यादव कांग्रेस के नेताओं से भी मुलाकात से परहेज कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें- नानी की हैवानियत: 1 महीने की नातिन के लिए 1लाख रुपये, ऐसे हुआ खुलासा

पार्टी के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल बिहार दौरे पर सीटों के बंटवारे पर चर्चा के लिए आए थे। किंतु राजद के साथ मुद्दा सुलझाए बिना वे भी लौट गए। रालोसपा, वीआइपी व वामपंथी दलों से भी महागठबंधन में किसी फोरम पर चर्चा न होने से घटक दलों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। तेजस्वी यादव को पता है कि उनका एमवाई समीकरण उनके लिए पर्याप्त है। अपनी यात्राओं में भी तेजस्वी अपने पिता लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय व धर्मरिपेक्षता की ही चर्चा करते हैं और कोरोना व बाढ़ से निपटने के तरीके पर नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधते हैं।

लोजपा का 42 सीटों पर दावा

बिहार चुनाव ( फाइल फोटो)

लोजपा के मुखिया चिराग पासवान पिछले कुछ दिनों से दबाव की राजनीति करने में जुटे हुए हैं। उन्होंने कोरोना संकट व बाढ़ को लेकर हाल के दिनों में नीतीश सरकार पर कई बार हमला बोला है। उनका कहना है कि नीतीश सरकार इन दोनों संकटों को समझाने में नाकाम रही है। अब इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए लोजपा की ओर से राज्य विधानसभा की 243 में से 42 सीटों पर दावेदारी ठोक दी गई है।

ये भी पढ़ें- गोंडा सदर विधायक प्रतीक भूषण सिंहः प्रचारक से कम उम्र में मुकाम

पार्टी के प्रवक्ता संजय सिंह ने 42 सीटों पर दावेदारी ठोकते हुए कहा कि हमारे कोटे की सीटों में कमी का सवाल ही पैदा नहीं होता। उन्होंने दावा किया कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने हमें 2015 के चुनाव जितनी सीटें देने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा अध्यक्ष के आश्वासन के बाद हम उतनी सीटों पर चुनाव मैदान में जरूर उतरेंगे।

लोकसभा चुनाव को बनाया आधार

बिहार चुनाव ( फाइल फोटो)

लोजपा प्रवक्ता ने कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव के आधार पर गठबंधन में सीटों के गणित को समझना होगा। उन्होंने कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान लोजपा और भाजपा का स्ट्राइक रेट सौ फीसदी रहा था‌ जबकि जदयू को एक सीट पर पराजय का मुंह देखना पड़ा था। यदि इस आधार पर सीटों का बंटवारा किया जाए तो भाजपा को 105, जदयू को 96 और लोजपा को 42 सीटें मिलनी चाहिए। लोजपा की दावेदारी के बाद भाजपा और जदयू दोनों पार्टियां सतर्क हो गई हैं।

ये भी पढ़ें- आम आदमी को झटका: सब्जियों के दाम में लगी आग, मारी इतनी लंबी छलांग

भाजपा प्रवक्ता संजय टाइगर का कहना है कि चुनावों में सभी पार्टियां अधिक से अधिक सीटों पर लड़ना चाहती हैं। उन्होंने दावा किया कि बिहार में एनडीए की स्थिति काफी मजबूत है और एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले के लिए जीत की गारंटी होती है। इसलिए सीटों के लिए मारामारी मचना स्वाभाविक ही है। ‌उन्होंने कहा कि समय आने पर यह बात तय की जाएगी कि गठबंधन में शामिल दल कितनी- कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।

नीतीश पर हमलावर हैं चिराग

बिहार चुनाव ( फाइल फोटो)

जदयू ने भी भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि एनडीए में सीटों को लेकर किसी प्रकार का विवाद नहीं है। जदयू नेता और मंत्री अशोक चौधरी का कहना है कि चुनाव के समय हर कोई अधिक से अधिक सीटों पर लड़ना चाहता है। लोजपा की दावेदारी से कोई संकट नहीं पैदा होने वाला और हम समय रहते इस समस्या का निराकरण कर लेंगे। लोजपा पिछले कुछ दिनों से दबाव की राजनीति करने में जुटी हुई है।

ये भी पढ़ें- सैनिकों में खूनी संघर्ष: सीमा पर भिड़ी दोनों देश की सेना, तिलमिलाया अमेरिका

लोजपा के मुखिया चिराग पासवान लगातार नीतीश सरकार पर हमले कर रहे हैं। उनका कहना है कि बिहार में मौजूद बड़े संकटों का समाधान करने में नीतीश सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। हालांकि जदयू की ओर से भी चिराग पासवान को जवाब दिया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने चिराग को कालिदास की संज्ञा तक दे डाली। उन्होंने कहा कि जिस तरह कालिदास जिस डाल पर बैठे थे उसी को काट रहे थे, आज वही काम चिराग पासवान कर रहे हैं।

Tags:    

Similar News