मोदी मंत्र से हारा चीन: भारत के सामने टेक दिए घुटने, इस तरह हुआ मजबूर

पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच मई महीने जारी तनाव के बाद अब ड्रैगन काबू में आता दिखाई दे रहा है। आज यानी सोमवार को चीनी सेना गलवान घाटी के पास हुई झड़प वाली जगह से एक किलोमीटर तक पीछे हटी है।

Update:2020-07-06 18:52 IST

नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच मई महीने जारी तनाव के बाद अब ड्रैगन काबू में आता दिखाई दे रहा है। आज यानी सोमवार को चीनी सेना गलवान घाटी के पास हुई झड़प वाली जगह से एक किलोमीटर तक पीछे हटी है। जिसके बाद स्थिति में थोड़ी सुधार आने की संभावना है। गौरतलब है कि चीन की चालबाजियों का ही नतीजा है कि सीमा पर लंबे समय से तनाव की स्थिति बनी रही।

भारत के आगे सेना को टेकने पड़े अपने घुटने

यह तनाव तब और बढ़ गया, जब 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ भारतीय सैनिकों की हिंसक झड़प हो गई। इस झड़प में हमारे सेना के कर्नल समेत 20 जवान शहीद हो गए थे। वहीं चीनी पक्ष को भी भारी नुकसान होने की खबर है। चीन की धोखेबाजी की वजह से भारतीय जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी। लेकिन ड्रैगन की चालबाजियों के बाद भी भारत डटा रहा और चीन पर लगातार दबाव बनाना जारी रखा। जिसके बाद उसे पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। जिसे भारत की कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।

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तो चलिए जानते हैं कि आखिर वो क्या मजबूरियां रही कि चीन को भारत के आगे झुकना ही पड़ा।

भारत की कूटनीतिक कोशिश

जब सीमा पर भारत और चीन के बीच तनाव शुरू हुआ तो भारत की ओर से वार्ता के जरिए इस समस्ता का हल निकालने का प्रस्ताव दिया गया। जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच कोर कमांडर स्तर पर बैठकें हुई, लेकिन इसके बाद भी कोई सटीक नतीजा नहीं निकला। इसके बाद भी अतंरराष्ट्रीय समुदाय ने दोनों देशों को बातचीत के जरिए विवाद को हल करने की सलाह दी।

कूटनीति के जरिए इन देशों को लिया अपने साथ

वहीं भारत ने अपनी कूटनीति के जरिए उन देशों को अपने साथ लिया, जिनके साथ चीन का तनाव है। कोरोना को लेकर पहले से ही चीन अंतरराष्ट्रीय दबाव झेल रहा था। इसके बाद सीमा विवाद पर भारत को दक्षिण पूर्वी एशियाई के साथ साथ अमेरिका, फ्रांस, जापान, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का भी समर्थन मिला। इस देशों ने खुलकर भारत का समर्थन किया और चीन का विरोध।

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PM मोदी और सेना प्रमुखों के दौरे से चीन को मिला कड़ा सबक

इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी बीते शुक्रवार को अचानक लेह दौरे पर पहुंच गए और अपने इस दौरे से चीन को एक कड़ा संदेश दिया। वहां पीएम मोदी ने सेना के जवानों और अधिकारियों से मुलाकात की और स्थिति के बारे में विस्तार से जाना। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने सेना के जवानों से मुलाकात कर उनका मनोबल बढ़ाया और सेना को संबोधित कर उनमें जोश भरा। इससे पहले सेनाध्यक्ष नरवणे भी लेह पहुंचे और हालात व सेना की तैयारियों का जायजा लिया था। यहीं नहीं चीन के साथ जारी विवाद के बीच वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने भी लद्दाख का दौरा किया था। उन्होंने फॉरवर्ड बेस पहुंच कर अधिकारियों से स्थिति पर समीक्षा की।

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प्रधानमंत्री मोदी और सेना प्रमुखों के दौरे ने चीन को एक कड़ा सबक दिया कि हम किसी भी परिस्थिति में पीछे हटने वाले नहीं है और सेना हर चाल का मुंहतोड़ जवाब देगी। वहीं भारत को इस मुद्दे पर अमेरिका से लेकर रूस का भी समर्थन मिला। अमेरिका ने तो भारत के साथ खड़े रहने की बात कही, लेकिन रूस ने भी भारत को आश्वासन दिया कि इस मुद्दे पर वह भारत के साथ खड़ा है। रूस ने कहा था कि वह भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है।

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चीन पर बना अंतरराष्ट्रीय दबाव

चीन में बीते साल दिसंबर से ही कोरोना वायरस की शुरूआत हो चुकी थी, लेकिन यह मामला दुनिया के सामने नहीं आया। और देखते ही देखते यह महामारी पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गई। इस महामारी से विश्व के शक्तिशाली देश भी काफी प्रभावित हुए। इनमें अमेरिका भी शामिल है। अमेरिका समेत पूरा यूरोप इस वायरस से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कोरोना को लेकर पहले से ही दुनियाभर के तमाम देश चीन से नाराज थे। वहीं इस बीच भारत के साथ तनाव ने एक बार फिर वैश्विक बिरादरी को चीन के खिलाफ खड़ा कर दिया।

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अमेरिका सीमा विवाद के शुरूआत से ही भारत का समर्थन किया। शुरूआत में तो अमेरिका ने मध्य्स्थता की भी बात कही, लेकिन दोनों देशों ने अपने आप समस्या का हल सुलझाने की बात कही। इसके बाद भी अमेरिका ने भारत के साथ हमेशा खड़े रहने की बात कही। और हाल ही में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को निशाने पर लेते हुए अपने सैनिकों की तैनाती को यूरोप से कम करते हुए एशिया में तैनात कर दिया। इससे भी चीन पर दबाव बढ़ा।

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अमेरिका के विदेश मंत्री ने चीन को खतरा बताते हुए कहा कहा था कि कुछ जगहों पर अमेरिकी संसाधन कम होंगे और वहां बढ़ाए जाएंगे, जहां चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी आक्रामक सैन्य कार्रवाई को बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा था कि हम अपनी सेना को उन जगहों पर तैनात करने जा रहे हैं, जहां चीन की सेना से सबसे अधिक खतरा है, जैसे- भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, दक्षिण चीन सागर।

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गलवान नदी में बढ़ा जल

चीनी सेना के पीछे हटने का एक कारण गलवान नदी के बढ़ते जलस्तर को भी माना जा रहा है। बर्फ से ढकी गलवां नदी जो अक्साई चीन क्षेत्र से निकलती है उसका जल स्तर वहां के तापमान में बढ़ोतरी होने की वजह से बढ़ रहा है। इस संबंध में एक वरिष्ठ सेनाधिकारी ने कहा था, ‘तीव्र गति से बर्फ पिघलने की वजह से नदी तट पर कोई भी स्थिति खतरनाक हो सकती है। इसके कारण चीनी टेंट बाढ़ में डूब सकते हैं।’

बता दें कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में गतिरोध प्वाइंट पर पांच किलोमीटर की दूरी पर चीन की पीएलए ने भारी तादाद में सैनिकों को एकत्र किया हुआ था। लेकिन बर्फ पिघलने की वजह से गलवां नदी का जलस्तर बढ़ने लगा, जिस कारण चीनी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा।

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