बनेगा नया रिकार्डः सबसे कम समय में आ रही है कोरोना की वैक्सीन
कोविड-19 महामारी के खिलाफ जूझ रही पूरी दुनिया के सामने अब उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी है। ये उम्मीद है कोरोना वायरस के खिलाफ एक मजबूत ढाल की जो एक प्रभावी वैक्सीन के रूप में है।
लखनऊ: कोविड-19 महामारी के खिलाफ जूझ रही पूरी दुनिया के सामने अब उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी है। ये उम्मीद है कोरोना वायरस के खिलाफ एक मजबूत ढाल की जो एक प्रभावी वैक्सीन के रूप में है। भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में कोरोना की वैक्सीन डेवलप करने का काम जारी है और 160 से ज्यादा वैक्सीनों पर काम जारी है जिनमें से 30 का ह्यूमन ट्रायल चल रहा है। वैक्सीन की रेस में सबसे आगे रूस है जिसने अपनी वैक्सीन का प्रोडक्शन भी शुरू कर दिया है। दूसरे नंबर पर चीन है जिसकी वैक्सीन को पेटेंट मिल गया है।
ऐतिहासिक काम
वैक्सीन विकसित करना एक लंबी प्रक्रिया होती है। जो कांसेप्ट, डिजाइन, परीक्षण, मंजूरी जैसी स्टेजों से गुजरने के बाद निर्माण की अवस्था में पहुँचती है। इसमें एक दशक या उससे ज्यादा समय लग जाता है। लेकिन कोविड-19 की तात्कालिक जरूरत ने सभी सिस्टम बदल डाले हैं। अब पूरा प्रोसेस एक साल या उससे से भी कम समय में पूरा हो जाने की उम्मीद है। अभी तक ‘मम्प्स’ यानी गलसुआ बीमारी का टीका ही सबसे कम समय में बनाने में सफलता मिली है। मम्प्स के टीके के इनसानी ट्रायल अगले दो साल तक चले और दिसंबर 1967 में ‘मर्क’ कंपनी को इस टीके का लाइसेन्स मिला। इसके अलावा ये भी ध्यान देने वाली बात है कि अभी तक इनसानी बीमारियों में सिर्फ चेचक का ही टीका बन सका है और इस काम में भी वैश्विक सहयोग के साथ दस साल लग गए थे।
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रूस की वैक्सीन
रूस ने स्पुतनिक5 वैक्सीन लांच करने, इसका प्रोडक्शन शुरू करने घोषणा के बाद अब कहा है कि वह 40 हजार लोगों पर वैक्सीन का एडवांस ट्रायल यानी तीसरे चरण का ट्रायल करने जा रहा है। रूस की इस घोषणा से उसकी वैक्सीन पर संदेह और गहरा गया है। लेकिन रूस की पुतिन सरकार अपनी वैक्सीन को लेकर अब भी बहुत आश्वस्त है। अधिकारीयों ने कहा है कि इस महीने डाक्टर प्रयोग के तौर पर वैक्सीन लगाना शुरू कर देंगे और सामूहिक टीकाकरण अक्टूबर से शुरू कर दिया जाएगा।
रूस की वैक्सीन को लेकर भले ही दुनियाभर में सवाल उठ रहे हों, लेकिन वह इसको लेकर निश्चिंत है। रूस का मानना है कि उसकी वैक्सीन कारगर और प्रभावी है। रूस इस महीने के अंत तक बड़े पैमाने पर वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर देगा और सितंबर तक यह आम लोगों को मिलनी शुरू भी हो जाएगी, जबकि पहले उसने घोषणा की थी कि सितंबर में वैक्सीन का उत्पादन शुरू होगा और अक्तूबर में पूरे देश में टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा।
रूस के गमलेया इंस्टीट्यूट ने इस वैक्सीन को विकसित किया है, जिसे स्पुतनिक नाम दिया गया है। हाल ही में गमलेया इंस्टीट्यूट ने ये दावा किया था कि वह दिसंबर और जनवरी तक हर महीने वैक्सीन के 50 लाख डोज का उत्पादन करने की क्षमता हासिल कर लेंगे। उन्हें दुनिया के कई देशों से वैक्सीन के लिए ऑर्डर भी मिल चुके हैं। गमलेया रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के निदेशक अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग का कहना है कि यह वैक्सीन दो साल तक प्रभावी रहेगी।
रूस ने भले ही वैक्सीन बना ली हो लेकिन रूस के बाहर सबके लिए इसकी उपलब्धता अभी निकट भविष्य में नहीं होने वाली। वैक्सीन का प्रोडक्शन तुरंत शुरू होने की संभवना है। गमालेया इंस्टिट्यूट के अलावा इस वैक्सीन का प्रोडक्शन रूस के एक बड़े बिजनेस हाउस सिस्टेमा द्वारा किये जाने की उम्मीद है। सिस्टेमा ने एक बयान में कहा है कि वैक्सीन का पहला बैच तैयार है और इनको सबसे पहले रूसी प्रान्तों में भेजा जायेगा और डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को इसकी खुराक दी जायेगी। सिस्टेमा की क्षमता साल भर में 15 लाख खुराक बनाने की है जो दुनिया में तत्काल अरबों खुराक की मांग के सामने कुछ भी नहीं है। ऐसे में रूस द्वारा अन्य देशों की मांग को पूरा किया जाना बेहद मुश्किल है। हालाँकि रूस का कहना है कि उसने 50 करोड़ खुराक बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय करार किये हुए हैं। रूस के अनुसार उसे विदेशों से एक अरब खुराक सप्लाई के आग्रह प्राप्त हुए हैं।
भारत में कब मिलेगी
अगर रूस वैक्सीन की खुराक बनाए की क्षमता को बहुत बढ़ा भी देता है तबभी भारत में इसकी उपलब्धता होने में काफी समय लग जाएगा। भारत में वैक्सीन के प्रयोग की मंजूरी दो तरह से होती है। भारत के नियामक सिस्टम के तहत किसी भी अन्य देश में डेवलप की गयी कोई भी दवा या वैक्सीन को भारत में इस्तेमाल की अनुमति दिए जाने से पहले स्थानीय जनता पर एडवांस चरण के मानव ट्रायल होना जरूरी है। ऐसा इसलिए कि किसी भी वैक्सीन का अलग अलग जनसमूहों पर अलग अलग इम्यून रिस्पांस होता है। इसका मतलब ये हुआ कि रूसी डेवलपर्स या भारत में उनके पार्टनर्स को भारत में वालंटियर्स पर दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल करने होंगे।
ये प्रक्रिया हाल में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और आस्ट्रा ज़ेनेका द्वारा डेवलप की गयी वैक्सीन पर भारत में अपनाई गयी थी। पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया का इस वैक्सीन के निर्माण के लिए डेवलपर्स के साथ करार हुआ है। सीरम इंस्टिट्यूट को हाल ही में नियामक संस्था से दूसरे और तीसरे चरण के मानव ट्रायल करने की इजाजत मिली है। अगर ये टेस्ट संतोषजनक होते हैं तभी ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन के भारतीय लोगों पर इस्तेमाल की अनुमति दी जायेगी। रूसी वैक्सीन की बात करें तो अगर सुपर फ़ास्ट गति से भी काम हो तो भारत में दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल में कम से कम दो-तीन महीने लग जायेंगे। इसके पहले तो किसी दवा कंपनी को नियामक संस्था के पार आवेदन करना होगा और फिलहाल किसी ने अभी आवेदन नहीं किया है। बहरहाल, गामलेया रिसर्च इंस्टिट्यूट से मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारी बात कर रहे हैं। भारतीय दूतावास इस वैक्सीन की सेफ्टी और प्रभाव के डेटा का इंतजार कर रहा है।
चीन ने भी बना ली वैक्सीन
चीन में वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स द्वारा डेवलप की गयी वैक्सीन इस साल दिसंबर तक आ जाने की उम्मीद है। इस वैक्सीन का उत्पादन चीन की सरकारी कंपनी सीनोफार्म करेगी। सीनोफार्म ने कहा है कि उसकी वैक्सीन की कीमत करीब 11 हजार रुपये होगी। कम्पने के सीईओ लिऊ जिंगशेन का कहना है कि वैक्सीन की एक खुराक कोरोना वायरस के खिलाफ 97 फीसदी सुरक्षा प्रदान करेगी। दो खुराक लेने से 100 फीसदी सुरक्षा मिल सकेगी। फ़िलहाल इस वैक्सीन का तीसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल किया जा रहा है। इसके अलावा चीन की वैक्सीन बनाने वाली कंपनी कैन्सिनो बायोलॉजिक्स इंक की कोरोना वैक्सीन को पेटेंट मिल गया है। इस वैक्सीन को चीनी सेना और कैन्सिनो बायोलॉजिक्स कंपनी ने मिलकर तैयार किया है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल के अंत तक यह वैक्सीन बाजार में आ सकती है।
भारत की वैक्सीन
भारत में तीन वैक्सीन का ट्रायल चल ही रहा है। भारत में जिन तीन वैक्सीन का ट्रायल हो रहा है, उनमें से सबसे आगे ऑक्सफर्ड का टीका ही है। भारत बायोटेक और आईसीएमआर ने मिलकर जो वैक्सीन तैयार की है, उसके पहले चरण के ट्रायल के नतीजे आ गए हैं। इसमें वैक्सीन सेफ पाई गई है। किसी भी वॉलंटियर में वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स नहीं देखे गए। अगले चरण में वैक्सीन के प्रभाव को आंका जाएगा। पहले चरण में 12 जगहों पर 375 वॉलंटियर्स पर ट्रायल हुआ था। इसके अलावा भारत में बनी कोवैक्सिन और जाएकोव – डी के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल चल रहे हैं।
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ऑक्सफ़ोर्ड - आस्ट्रा ज़ेनेका
ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के टीके के शुरुआती नतीजे पॉजिटिव रहे हैं। वैक्सीन की डोज देने के 28 दिन के भीतर ऐंटीबॉडी रेस्पांस डेवलप होता है। दूसरी बूस्टर डोज देने पर ऐंटीबॉडी रेस्पांस और ज्यादा हो जाता है। भारत में इस्तेमाल के लिए विदेशी टीकों में ऑक्सफर्ड का टीका रेस में आगे इसलिए है क्योंकि भारतीय कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट न सिर्फ वैक्सीन को बनाएगा, बल्कि डिस्ट्रीब्यूशन में भी उसका अहम रोल है। इसके अलावा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और ‘गावी’ ने भी इस वैक्सीन को फंडिंग देने का ऐलान किया है।
कोविशील्ड नाम की इस वैक्सीन के लिए सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया और आस्ट्रा जेनेका के बीच डील हुई है। देश भर के 17 राज्यों में वैक्सीन का दूसरे और तीसरे चरण का ट्रायल होगा। सीरम इंस्टिट्यूट इस वैक्सीन की एक बिलियन डोज तैयार करने की सहमति भी दे चुका है। सीरम इंस्टिट्यूट के प्रमुख अदार पूनावाला ने 2020 तक भारतीय जनता के लिए वैक्सीन की उपलब्धता की घोषणा की है। उनका कहना है हम अगस्त के अंत तक टीके का निर्माण शुरू कर देंगे।
अमीर देशों ने कर लीं डील
अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन की तरह भारत ने अभी तक किसी कंपनी से डील नहीं की है मगर टीका हासिल करने की कोशिश में जुट गया है। कोरोना वायरस का टीका पाने के लिए भारत सरकार की नजर ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन कोविशील्ड पर है। भारत सरकार देश में डेवलप किए जा रहे कोरोना टीकों पर भी नजर बनाए हुए है। सरकार को लगता है कि ये टीके भी ऑक्सफर्ड टीके के कुछ दिन ट्रायल में क्लियर होने के बाद मार्केट में उतर सकते हैं।
अमीर देशों ने कोरोना की संभावित सभी वैक्सीनों की एक अरब से ज्यादा खुराकों के आर्डर बुक कर दिए हैं। अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम ने सनोफी और ग्लैक्सो से सप्लाई पक्की कर ली है जबकि जापान ने फाइजर कंपनी के साथ करार किया है। यूरोपियन यूनियन ने भी कई कंपनियों से सप्लाई सुनिश्चित करने के एग्रीमेंट किये हैं। ये हाल तब है जब कि अभी किसी वैक्सीन की प्रभाविकता पता नहीं है।
एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि 2022 की पहले तिमाही तक दुनिया को एक अरब खुराकें से ज्यादा नहीं मिल पाएंगी। ऐसे में अगर अमीर देश अधिकांश खुराकें खरीद लेंगे तो बाकी दुनिया का क्या होगा, ये एक चिंता की बात बन गयी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया भर के देशों को कोविड-19 वैक्सीन के लिए आसान और न्यायसंगत पहुंच प्रदान करने के उद्देश्य से एक वैश्विक समझौते का आह्वान किया है। कोवैक्स वैश्विक टीके की सुविधा अमीर देशों और गैर-लाभकारी संस्थाओं से वैक्सीन विकसित करने और इसे दुनिया भर में समान रूप से वितरित करने के लिए धन मुहैया कराएगी।
ऑस्ट्रेलिया में टीकाकरण मुफ्त होगा
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि टीका बनने के बाद इसे मुफ्त में 2.5 करोड़ नागरिकों को उपलब्ध कराया जाएगा। मॉरिसन ने कहा कि हमने ब्रिटिश कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ कोविड वैक्सीन को लेकर समझौता किया है। वैक्सीन मानकों पर खरा उतरी तो ऑस्ट्रेलिया में ही उत्पादन, वितरण और आपूर्ति की जाएगी। एस्ट्राजेनेका का टीका दिसंबर के अंत तक बाजार में आ सकता है।
आधी कामयाब वैक्सीन भी ठीक
संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ और अमेरिका की कोरोना वायरस टास्क फोर्स के सदस्य डॉक्टर एंथनी फाउची ने उम्मीद जताई है कि इस साल के अंत या अगले साल की शुरुआत तक सुरक्षित वैक्सीन दुनिया के सामने होगी। उन्होंने कहा कि आधी कामयाब वैक्सीन भी एक साल के भीतर दुनिया को पहले की तरह सामान्य बनाने के लिए पर्याप्त होगी। फाउची ने कहा है कि अगले साल तक ही वैक्सीन आम लोगों तक पहुंचेगी। उनका कहना है कि ऐसा नहीं लगता कि वैक्सीन 100 प्रतिशत प्रभावी होगी, लेकिन आधी कामयाब वैक्सीन भी जनजीवन को सामान्य बना देगी। फाउची ने कहा कि अगर अगले साल की शुरुआत में वैक्सीन उपलब्ध हो जाती है तो कोरोना वायरस महामारी को 2021 के अंत तक काफी हद तक नियंत्रण में लाया जा सकता है।
फाउची ने कहा कि इतिहास में सिर्फ स्मॉलपॉक्स को खत्म किया जा सका है, लेकिन इससे महामारी इतने नियंत्रण में आ जाएगी कि हम सामान्य जनजीवन शुरू कर सकेंगे। हम अर्थव्यवस्था और रोजगार को पटरी पर ला सकेंगे। आधी कामयाब वैक्सीन का मतलब है कि यह जिन लोगों को दी जाएगी, उनमें से 50 प्रतिशत ही कोरोना वायरस से सुरक्षित रहेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसा हो सकता है कि जिन लोगों को यह वैक्सीन दी जाएगी, उनके संक्रमण से बचने की संभावना 50 प्रतिशत हो जाएगी। अमेरिका के ड्रग नियामक ने कहा था कि वह 70 प्रतिशत प्रभावी वैक्सीन को मंजूरी देगा, लेकिन अब वह 50 प्रतिशत कारगर वैक्सीन को हरी झंडी देने को तैयार है। एंथनी फाउची ने रूस की वैक्सीन को लेकर शक जाहिर किया है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन होना और ये सुरक्षित और कारगर भी होना दो अलग चीजें हैं। अगर हम लोगों को नुकसान पहुंचाने का जोखिम लेकर उन्हें कुछ ऐसी चीज देना चाहते हैं, जो काम न करें तो हम भी ऐसा कर सकते हैं। हम अगले हफ्ते से ऐसा कर सकते हैं।
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चुनौतियाँ अभी काफी हैं
ज़्यादातर एक्सपर्ट की राय में 2021 के मध्य तक कोविड-19 की वैक्सीन बन जाएगी। लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वैक्सीन पूरी तरह कामयाब ही होगी। वैक्सीन तैयार होने के बाद पहला काम इसका पता लगाना होगा कि यह कितनी सुरक्षित है। अगर यह बीमारी से कहीं ज़्यादा मुश्किलें पैदा करने वाली हुईं तो वैक्सीन का कोई फ़ायदा नहीं होगा। रूस की वैक्सीन को इसी पहलू के चलते शंका के साथ देखा जा रहा है। वैक्सीन तैयार होने के बाद भी इसके अरबों डोज़ तैयार करने की ज़रूरत होगी। ये हो जाए तो दुनिया भर के अरबों लोगों तक इसकी खुराक पुहंचाने के लिए लॉजिस्टिक व्यवस्थाएं करने का इंतज़ाम भी करना होगा।
कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए यह माना जा रहा है कि 60 से 70 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन देने की ज़रूरत होगी। इन सब प्रक्रियाओं को लॉकडाउन थोड़ा धीमा करेगा। एक दूसरी मुश्किल भी है अगर कोरोना से कम लोग संक्रमित होंगे तो भी इसका पता लगाना मुश्किल होगा कि कौन सी वैक्सीन कारगर है। वैक्सीन की जांच में तेज़ी लाने का एक रास्ता है कि पहले लोगों को वैक्सीन दिया जाए और उसके बाद इंजेक्शन के ज़रिए कोविड-19 का वायरस उनके शरीर में पहुंचाया जाए। लेकिन यह तरीका मौजूदा समय में बेहद ख़तरनाक है क्योंकि कोविड-19 का कोई इलाज़ मौजूद नहीं है।
महामारी खत्म तो नहीं होगी
कोरोना वायरस की वैक्सीन बन जाने से महामारी एक झटके में ख़त्म तो नहीं होगी लेकिन तब लॉकडाउन का हटाया जाना ख़तरनाक नहीं होगा और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रावधानों में ढिलाई मिलेगी। कोरोना वायरस हमारे बीच बना रहेगा लेकिन वैक्सीन की ढाल हमें बचा कर रखेगी। माना जा रहा है कि वैक्सीन का ज़्यादा उम्र के लोगों पर कम असर होगा। लेकिन इसका कारण वैक्सीन नहीं बल्कि लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता से है क्योंकि उम्र अधिक होने के साथ-साथ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती जाती है।
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क्या हैं वैक्सीन डेवलपमेंट के अलग अलग फेज़
पहला चरण
पहले चरण के परीक्षणों का लक्ष्य होता है वैक्सीन की सेफ्टी का मूल्यांकन करना और वैक्सीन द्वारा पैदा की गयी इम्यूनिटी प्रक्रिया के प्रकार और सीमा का निर्धारण करना।
दूसरा चरण
दूसरे चरण के परीक्षण में एक विशाल समूह को शामिल किया जाता है। कुछ व्यक्ति उन समूहों से संबंधित होते हैं जिन्हें बीमारी होने का खतरा होता है। ये परीक्षण रैंडमाइज्ड होते हैं। दूसरे चरण के परीक्षण का लक्ष्य होता है वैक्सीन की प्रभाविता, प्रतिरक्षा क्रिया क्षमता, प्रस्ताविक खुराकों, प्रतिरक्षण की समय-सारणी, और टीका प्रदान करने की विधि का अध्ययन करना।
तीसरा चरण
दूसरे चरण में सफल वैक्सीन को बड़े पैमाने पर परीक्षण के लिए तैयार किया जाता है, जिसमें दसियों हजार लोग शामिल हो सकते हैं। तीसरे चरण का उद्देश्य होता है लोगों के विशाल समूह में वैक्सीन की सुरक्षा का मूल्यांकन करना। क्योंकि हो सकता है कि पिछले चरण में लोगों में कुछ विरले दुष्परिणामों का पता न चले। इसके अलावा इस चरण में वैक्सीन की इफेक्टिवनेस की भी जांच की जाती है। ये देखा जाता है कि क्या वैक्सीन रोग की रोकथाम करता है? क्या यह विषाणु के संक्रमण से सुरक्षा देता है? क्या इससे एंटीबॉडीज या विषाणु से जुड़ी अन्य प्रकार की इम्यूनिटी क्रियाओं का निर्माण होता है?
आगे के चरण
तीसरे चरण के परीक्षण के सफल होने के बाद, टीका निर्माता नियामक निकाय से वैक्सीन के लिए लाइसेंस की मांग करते हैं। लाइसेंस की प्रक्रिया में टीके के डेवलपमेंट से जुड़े स्टडी डाक्यूमेंट्स की समीक्षा की जाती है और उस फैक्ट्री का निरीक्षण किया जाता है जहां टीके का निर्माण होगा। इसके अलावा वैक्सीन की लेबलिंग का अनुमोदन किया जाता है। लाइसेंस मिल जाने के बाद, नियामक निकाय लगातार टीके के निर्माण की निगरानी करते हैं।
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वैक्सीन की सप्लाई और दाम तय
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी आस्ट्रा ज़ेनेका, मोडेरना बायोटेक, फाइजर - बायोएनटेक और चीन की सीनोवाक कंपनियों ने इस साल के अंत तक इन वैक्सीन को बाजार में उतारने की पूरी तैयारी कर ली है। वैक्सीन लांच करने के प्रति इनका इतना कॉन्फिडेंस है कि अब वैक्सीन के दाम तय करने की प्रक्रिया चालू हो गयी है। साथ ही ये भी तय किया जा रहा है कि वैक्सीन पहले किन देशों को दी जाए।
ऑक्सफ़ोर्ड - आस्ट्रा ज़ेनेका : 1000 रुपये की डोज़
ऑक्सफोर्ड-आस्ट्रा ज़ेनेका के वैक्सीन की कीमत एक हजार रुपये से कम रहने की उम्मीद है। भारत में ये वैक्सीन कोविडशील्ड नाम से मिलेगी। कंपनी ने भारत और अन्य मध्यम व निम्न आय वाले देशों के लिए वैक्सीन की एक अरब डोज़ बनाने के लिए भारत के सीरम इंस्टिट्यूट के साथ साझेदारी की है। कंपनी ने शुरुआती तीन करोड़ डोज़ बनाने के लिए ब्राजील सरकार के साथ करीब 13 करोड़ डालर की डील की है। कंपनी को अमेरिका से 1.2 अरब डालर की शुरुआती फंडिंग मिली थी सो उसके बदले में अमेरिका को 30 करोड़ डोज़ डी जायेंगी।
मोडेरना बायोटेक : 4500 रुपये का कोर्स
अमेरिका की मोडेरना बायोटेक की योजना अपनी वैक्सीन के पूरे कोर्स का दाम 3700 से 4500 रुपये के बीच रखने की है। इसकी एक डोज़ का दाम 1800 से 2300 रुपये के बीच रहेगा। मोडेरना कंपनी का इरादा दिसंबर तक बाजार में वैक्सीन ले आने का है। अमेरिकी सरकार ने मोडेरना को वैक्सीन डेवलप करने के लिए 50 करोड़ डालर दिए हैं। मोडेरना ने वैक्सीन की शुरुआती 10 करोड़ डोज़ के निर्माण के लिए कैटालेंट नामक दवा निर्माता कंपनी से करार किया है। इसके अलावा स्पेन और स्विटज़रलैंड की कंपनियों के अलावा इजरायल सरकार से भी करार किये गए हैं।
फाइजर - बायोएनटेक : 300 रुपये की एक डोज़
अमेरिका कि दिग्गज दवा कंपनी फाइजर को उम्मीद है कि वह अक्टूबर में नियामक अप्रूवल की स्टेज में पहुँच जायेगी और साल के अंत तक बाजार में वैक्सीन आ जायेगी। ट्रंप सरकार ने 10 करोड़ डोज़ के लिए फाइजर के साथ 2 अरब डालर का करार किया है। यूके की सरकार ने 3 करोड़ डोज़ का करार किया है। नीदरलैंड, जर्मनी, फ्रैंक और इटली के साथ भी डील हो चुकी हैं। फाइजर के वैक्सीन के दाम नीदरलैंड, जर्मनी, फ़्रांस और इटली में 225 से 300 रुपये प्रति डोज़ रहने की संभावना है। अमेरिका में दो डोज़ के कोर्स का दाम करीब 2900 रुपये रहने का अनुमान है।
गावी अलायंस : 4 हजार रुपये की डोज़
गावी अलायंस नामक अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी संगठन विश्व में वैक्सीन डेवलप करने और उपलब्ध करने का काम करता है और भारत भी इसका सदस्य है। गावी कोरोना की वैक्सीन के लिए काम कर रहा है और भारत ने इस काम के लिए डेढ़ करोड़ डालर दिए हुए हैं। गावी अलायंस कोवैक्स वैक्सीन पर काम कर रहा है और इसे उम्मीद है कि वह 2021 के अंत तक पूरे विश्व में 2 अरब डोज़ की सप्लाई कर लेगा। फिलहाल, ये संगठन अमीर - गरीब देशों के लिए अलग अलग कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध करने के लिए प्रयास कर रहा है।
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इम्यूनिटी बूस्टर के कारोबार में जबरदस्त उछाल
कोरोना से बचने के लिए लोग तरह तरह के उपाय कर रहे हैं जिसके चलते इम्यूनिटी बूस्टर दवाओं और सप्लीमेंट्स की जबर्दस्त डिमांड बन गई है। कोरोना संकट के बाद दुनिया भर में औषधीय जड़ी-बूटियों की धूम मच गई है। ग्रीन टी, एलोवेरा, गिलॉय, हल्दी, दालचीनी, अदरक जैसी औषधीय जड़ी-बूटियों की मांग और उपभोग चरम पर है। इम्यूनिटी से संबंधित जो दवाइयां पहले से उपलब्ध थीं उनकी बिक्री में तीन गुना की वृद्धि हुई है। वर्तमान में इम्यूनिटी और हाईजीन से संबंधित उत्पादों की बिक्री का हिस्सा कुल सभी बिक्री का 56 से 60 प्रतिशत तक है। हर्बल कारोबार में इस तेजी की वजह से कई बड़ी कंपनियां हर्बल कंपनी में निवेश करने लगी है।
विटामिन सी की भारी मांग
कोरोना काल में एंटी एलर्जिक और एंटी बायोटिक दवाओं के साथ साथ विटामिन सी की बिक्री काफी बढ़ गई है। विटामिन सी की मांग आम दिनों की तुलना में तीन गुना बढ़ चुकी है। इसके अलावा विटामिन बी काम्प्लेक्स और एंटी ऑक्सीडेंट्स गोलियों की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है। डाक्टरों का कहना है कि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए रोज विटामिन सी की 500 मिलीग्राम की दो गोली कम से कम एक महीना लेनी चाहिए।
विटामिन डी
चूँकि तमाम रिसर्च में पता चला है कि जिन लोगों में विटामिन डी की कमी होती है वो कोरोना के खतरे में ज्यादा होते हैं, ऐसे में विटामिन डी सप्लिमेंट्स की मांग भी बढ़ी है। डाक्टरों का कहना है कि सिर्फ गोली के भरोसे नहीं रहना चाहिए और प्राकृतिक रूप से मिलने वाले विटामिन डी को ग्रहण करना ज्यादा बेहतर है। इसके लिए रोज कम से कम एक घंटा धूप लेनी चाहिए और वह भी इस तरह से कि शरीर का 40 फ़ीसदी हिस्सा खुला रहे।
गिलोय और अश्वगंधा
आयुर्वेदिक दवाओं के विक्रेताओं के अनुसार गिलोय जूस और कैप्सूल की बिक्री पहले से चार गुना बढ़ गई है। साथ ही च्यवनप्राश की मांग भी काफी है। आयुर्वेद के चिकित्सकों का कहना है कि लंबे समय तक अश्वगंधा और गिलोय का सेवन उचित नहीं है। चिकित्सक की राय से ही इनका सेवन करना चाहिए। जिनको अर्थराइटिस जैसी ऑटो इम्यून बीमारी हैं उनको गिलोय का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए।
आर्सेनिक अल्बम और केम्फर
होम्योपैथिक दवा आर्सेनिक अल्बम और कैम्फर का भी काफी प्रयोग किया जा रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि इनसे कोरोना के खिलाफ प्रतिरक्षा बनती है। इसके बारे में होम्यो चिकित्सकों में भी दो तरह की राय है। अलीगंज के डॉ आरएस यादव कहते हैं कि हफ्ते में एक बार कैंफर की तीन बूंद और रोजाना आर्सेनिक की तीन चार बूंद सुबह शाम लेने से कोरोना से बचाव होता है। वहीं एक अन्य चिकित्सक जीएस तिवारी का कहना है कि होम्यो दवा की अधिक डोज़ से कोई नुकसान नहीं है लेकिन ज्यादा समय तक लेने से ये बेअसर हो जाती है। वैसे, गाइडलाइन के मुताबिक आर्सेनिक को तीन दिन लगातार सुबह खाली पेट लेना है। बहुत से बहुत एक महीने बाद दोबारा इसे ले सकते हैं। लेकिन डाक्टर से सलाह जरूर ले लेना चाहिए।
15 अरब डॉलर का कारोबार
आंकड़ों के मुताबिक 2019 से 2024 के बीच 7.79 प्रतिशत की दर से हर्बल कारोबार बढ़ने की उम्मीद है। यानी 2024 तक औषधीय जड़ी-बूटियों का कारोबार 15.09 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। यह अनुमान कोरोना काल से पहले का है। आने वाले समय में यह कारोबार 30 अरब डॉलर तक भी पहुंच जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। पूरे विश्व के हर्बल बाजार में भारत औऱ चीन की हिस्सेदारी 39 प्रतिशत है। गूगल के मुताबिक मई में भारत में इम्यूनिटी शब्द सर्च करने में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार विटामिन सी शब्द को सर्च करने में 2019 में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, लेकिन जून के दौरान इसमें 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसी तरह गिलोय 380 प्रतिशत और काढ़ा जैसी होम रिमेडीज के सर्च में 90 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
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बढ़ा काढ़े का कारोबार
कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच रेडीमेड काढ़े का कारोबार भी बहुत बढ़ा है। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में आयुर्वेदिक दवा का कारोबार करने वाली फैक्ट्रियों में काढ़े का उत्पादन काफी तेजी से हो रहा है। एक दर्जन फैक्ट्रियों में 90 फीसदी उत्पादन सिर्फ का काढ़े का ही हो रहा है। देश के विभिन्न प्रदेशों में हाथरस से प्रतिदिन 1000 किलोग्राम काढ़े की सप्लाई की जा रही है। पिछले कुछ समय से और आयुर्वेदिक दवाओं का बाजार ठंडा पड़ा हुआ था और बाजार में मांग न होने का कारण कारोबारियों में काफी निराशा दिख रही थी। पचास करोड़ वार्षिक के टर्नओवर वाले इस कारोबार में काढ़ा का हिस्सा सिर्फ 10 फीसदी ही था मगर अब स्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं। काढ़े की बढ़ती मांग के कारण लोगों को रोजगार भी मिल गया है।
काढ़ा बनाने में गिलोय, तुलसी, दालचीनी, मुलेठी, कालीमिर्च और अश्वगंधा आदि का इस्तेमाल किया जा रहा है। काढ़े का सेवन करने से इम्युनिटी में बढ़ोतरी हो रही है जिससे कोरोना से जंग लड़ने में मदद मिल रही है। यहां से औषधियों एवं काढ़े की सप्लाई विदेशों तक में की जा रही है।
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