आसमान से बरसती मौत, 60 हजार से ज्यादा की हो गई है मौत

अरब विश्व के सबसे गरीब देश यमन की पूरी तरह छीछालेदर हो चुकी है। देश का इन्फ्रास्ट्रक्चर बर्बाद हो चुका है और 60 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। देश कई टुकड़ों में बंटा हुआ है और ढेरों गुट एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। ये लड़ाई अब यमन से बाहर निकल कर सऊदी अरब तक पहुंच चुकी है।

Update:2023-05-09 12:48 IST

सना: अरब विश्व के सबसे गरीब देश यमन की पूरी तरह छीछालेदर हो चुकी है। देश का इन्फ्रास्ट्रक्चर बर्बाद हो चुका है और 60 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। देश कई टुकड़ों में बंटा हुआ है और ढेरों गुट एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। ये लड़ाई अब यमन से बाहर निकल कर सऊदी अरब तक पहुंच चुकी है और आशंका है कि कहीं खाड़ी के देश इस आग की चपेट में न आ जायें।

अमेरिकी बमों और ब्रिटिश फाइटर जेट्स से लैस सऊदी अरब और उसके साथी पिछले चार साल से इस देश के खिलाफ विध्वंसकारी युद्ध छेड़े हुए हैं। यमन के गृह युद्ध में सऊदी अरब और उसके साथियों ने 26 मार्च 2015 को हस्तक्षेप किया था और तबसे अब तक 19 हजार से ज्यादा हवाई हमले किये जा चुके हैं।

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जब हवाई हमलों का सिलसिला शुरू हुआ तो सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को पूरा विश्वास था कि यमन के पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह की वफादार सेना और हूथी विद्रोहियों के गठजोड़ को चंद हफ्तों में नेस्तनाबूद कर हिया जायेगा। लेकिन चार साल की लड़ाई और 60 हजार मौतों के बाद भी सऊदी गठजोड़ यमनी राजधानी सना और अधिकांश शहरों पर कब्जा करने में नाकाम रहा है।

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सऊदी गठजोड़ दावा करता रहा है कि उनके हवाई हमलों में आम जनता को नुकसान नहीं पहुंचाया गया है जबकि सच्चाई ये है कि गठबंधन के दो तिहाई हमले असैन्य और अनजान ठिकानों पर किये गये हैं। हवाई अड्डों, बंदरगाहों पुलों सडक़ों के साथ-साथ खेत-खलिहानों, स्कूलों, तेल व गैस प्रतिष्ठानों और निजी व्यवसायों पर बम बरसाये जाते रहे हैं। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार नागरिक ठिकानों पर सभी हमले जानबूझ कर किये गये हैं।

हवाई हमलों के कारण यमन का नागरिक, आर्थिक और मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह खत्म हो जाने की कगार पर है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यमन की दो तिहाई जनता यानी करीब 2 करोड़ लोगों के पास खाने को कुछ नहीं है। हजारों लोग भूख या मामूली बीमारियों से मर रहे हैं और औसतन आठ नागरिक हर दिन बम व गोलियों के शिकार बन रहे हैं।

आज यमन कई हिस्सों में बंटा हुआ है। कुछ हिस्से हूथी विद्रोहियों के कब्जे में हैं तो कई इलाके सऊदी गठबंधन समर्थित अब्द रब्बू मंसूर हादी की सरकार के कब्जे में हैं। कुछ इलाकों में अल कायदा तो कईं कहीं आईएस का जोर चलता है। और ये सभी गुट एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं।

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ड्रोन हमले के बाद तेल की कीमत में हाहाकार

सऊदी अरब की सबसे बड़ी तेल कंपनी अराम्को की रिफाइनरी पर यमनी फोर्सेज के 10 ड्रोन से हमले से तेल की मंडी में हाहाकार मच गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के आरक्षित तेल के भंडार को बाजार में लाने का आदेश दिया है ताकि विश्व स्तर पर तेल की कीमत नियंत्रित रहे। ट्रम्प ने एक ट्वीट में कहा, ‘सऊदी अरब पर हुए हमले के मद्देनजर, मैंने बाजार में आपूर्ति बनाए रखने के लिए जरूरत पडऩे पर रणनैतिक पेट्रोलियम भंडार के इस्तेमाल का आदेश दिया है।’

यमनी हमले के कारण

अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान, यमनी सेना द्वारा सऊदी अरब पर की गयी कार्रवाई के बाद आया है। बम हमले के कारण ब्रेन्ट कच्चे तेल और अमेरिकी कच्चे तेल की कीमत में तेज वृद्धि दर्ज की गई है।

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सऊदी अरब पिछले पांच साल से यमनी विद्रोहियों के खिलाफ जंग छेड़े हुए है। इन हमलों के जवाब में यमनी फोर्सेज ने शनिवार को अराम्को के मुख्य तेल प्रतिष्ठान अब्कीक और खुरैस पर 10 ड्रोन से हमले किए। इस हमले के बाद सऊदी अरब में कच्चे तेल के उत्पादन में 50 फीसदी कमी आयी है और इस कंपनी में कच्चे तेल का उत्पादन घट कर 57 लाख बैरल प्रतिदिन पहुंच गया है। बम हमले से जितना नुकसान हुआ है उससे ये कह पाना मुश्किल है कि इन रिफाइनरी में तेल का उत्पादन कब शुरू हो पायेगा।

फिर भी कई हफ्ते तक रिफाइनरी ठप रहने की आशंका है। इस हमले के साथ अमेरिका और ईरान तथा सऊदी अरब और इजरायल के बीच तनाव बढ़ गया है। अमरिका ने हमले के लिये ईरान को दोषी ठहराया है। ट्रम्प ने कहा है कि अमेरिका तैयार बैठा है और उसे सऊदी अरब से यह जानने का इंतजार है कि हमला किसने किया है। ईरान ने अमेरिका के आरोपों को गलत बताया है और कहा है कि अमेरिका उस पर हमला करने के लिए बहाने ढूंढ रहा है।

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नई आफत

सऊदी अरब पर हमले से मध्यपूर्व की राजनीति उस दौर में पहुंच गई है जिसका सबको डर था। डर कि कहीं तेल रिफाइनरी और तेल कुंओं पर हमले न शुरू हो जाएं। इराक और लीबिया इसके दुष्परिणाम देख चुके हैं। सऊदी अरब में तेल सेक्टर के सबसे बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर अब्कीक और खुरैस के तेल मैदान और रिफाइनरियां हैं। इनकी तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था को यमनी ड्रोन विमानों ने भेद दिया। दुनिया भर में तेल के बाजार को स्थिर रखने में इस तेल मैदान के इन्फ्रास्ट्रक्चर का बहुत बड़ा हाथ है।

रीढ़ की हड्डी

सऊदी अरब के तेल सेक्टर में अब्कीक तेल मैदान को रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। वर्ष 2018 में इस तेल मैदान ने सऊदी अरब के कुल तेल उत्पादन का 50 प्रतिशत भाग मुहैया कराया था। सारी दुनिया में प्रयोग होने वाले हर 20 बैरल तेल में एक बैरल तेल यहीं का था। सऊदी अरब के पूर्वी इलाकों से निकलने वाले तेल को पश्चिमी सऊदी अरब में लाल सागर के तट तक पाइप लाइन से पहुंचाया जाता है। अब्कीक पर हुए हमले के बाद अब यह सप्लाई लाइन भी कट गई है। अब सऊदी अरब की कोशिश होगी कि वह तेल निर्यात की मात्रा कम न होने दे और इसके लिए वह अपने रिजर्व तेल भंडारों का प्रयोग करे। ये रिजर्व भंडार सऊदी अरब के अलावा मिस्र, जापान और हालैंड में भी हैं लेकिन वर्ष 2016 से इन तेल भंडारों में तेल की मात्रा लगातार कम होती चली गई है।

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एक दिन में कमा लिए दो अरब डॉलर

सऊदी तेल रिफाइनरी पर हमले से अमेरिकी तेल व्यापारी हेरल्ड हैम की किस्मत चमक उठी। हेरल्ड की कंपनी कॉंटीनेंटल रिसोर्सेस के शेयर एक दिन में 22 फीसदी उछल गये। इससे हेरल्ड को 2 अरब डॉलर का फायदा हो गया। तेल की खोज और उत्पादन का काम करने वाली इस कंपनी में हेरल्ड की 77 फीसदी की हिस्सेदारी है।

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