जानिए 40 साल में कैसे सुपरपावर बना चीन? पढ़िए उसके ताकतवर बनने की कहानी
चीन कम्युनिस्ट शासन की 70वीं वर्षगांठ मना रहा है। पूरी दुनिया में चीन का असाधारण विकास अपने आप में एक कहानी कह रही है। 1 अक्तूबर 1949 के दिन माओत्से तुंग ने चीन के गणराज्य बनने की घोषणा की थी। चीन में माओत्से तुंग के बाद आर्थिक क्रांति लाने का श्रेय डांग श्याओपिंग को दिया जाता है।
नई दिल्ली: चीन कम्युनिस्ट शासन की 70वीं वर्षगांठ मना रहा है। पूरी दुनिया में चीन का असाधारण विकास अपने आप में एक कहानी कह रही है। 1 अक्तूबर 1949 के दिन माओत्से तुंग ने चीन के गणराज्य बनने की घोषणा की थी। चीन में माओत्से तुंग के बाद आर्थिक क्रांति लाने का श्रेय डांग श्याओपिंग को दिया जाता है।
श्याओपिंग के आर्थिक क्रांति की शुरुआत किए 40 साल बीत चुके हैं। उन्होंने 1978 में आर्थिक क्रांति की नींव रखी थी। डांग श्याओपिंग का कहना था कि यह चीन की दूसरी क्रांति है। इस आर्थिक सुधार के बाद ही चीन ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में दमदार तरीके से शामिल हुआ। इस समय चीन के पास सबसे ज़्यादा विदेशी मुद्रा भंडार (3.12 ख़रब डॉलर) है।
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चीन जीडीपी (11 खरब डॉलर) के आकार के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने वाले देशों में में चीन दुनिया का तीसरे नंबर है।
1978 में चीन का दुनिया की अर्थव्यवस्था में हिस्सा महज 1.8 फीसदी था जो 2017 में 18.2 फीसदी हो गया।
चीन अब अपनी अतीत की उस ताकत की ओर बढ़ रहा है जब 15वीं और 16वीं शताब्दी में दुनिया की अर्थव्यवस्था में उसका हिस्सा 30 फीसदी के आसपास होता था।
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चीन को ताकतवर बनाने में माओत्से तुंग, डांग श्याओपिंग और वर्तमान नेता शी जिनपिंग का हाथ है। चीन की आर्थिक रफ्तार के लिए इन्हीं नेताओं का नाम लिया जाता है।
श्याओपिंग की आर्थिक क्रांति के 40 सालों बाद एक बार फिर से चीन शी जिनपिंग जैसे मजबूत नेता की नेतृत्व में विकास की ओर बढ़ रहा है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग देश की अर्थव्यवस्था को और प्रभावी बनाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग के मामले में सुपरपावर बनाना चाहते हैं। इसके लिए शी जिनपिंग डांग श्याओपिंग की नीतियों को ही आगे बढ़ा रहे हैं, जिनमें अर्थव्यवस्था को खोलना और आर्थिक सुधार जैसे कदम शामिल हैं।
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डांग श्याओपिंग ने कम्युनिस्ट समाजवादी राजनीतिक माहौल में ठोस बदलाव की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले सोवियत आर्थिक मॉडल के केंचुल को उतार फेंका और फिर चीन की अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को चीन की जरूरतों के साथ शुरू किया।चीन ने उदारीकरण के लिए पूरा खाका तैयार किया था।
चीन के नेताओं ने केंद्रीय नियंत्रण वाले नेतृत्व पर जोर दिया, लेकिन स्थानीय सरकार, निजी कंपनियां और विदेशी निवेशकों के बीच बेहद गजब का सामंजस्य बनाया।
विदेशी निवेशकों को चीन ने स्वायतत्ता दी। पहले के नेताओं की तुलना में शी जिनपिंग ने पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनर्शिप पर ज्यादा जोर दिया।
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2014 के बाद चीन में निजी निवेश बहुत तेजी से बढ़ा। शी जिनपिंग ने व्यापार का दायरा पूरी दुनिया में बढ़ाया वन बेल्ट वन रोड परियोजना के ज़रिए इंफ़्रास्ट्रक्चर और ट्रेड नेटवर्क को एशिया, यूरोप, अफ्रीका से जोड़ना है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ने ओबोर प्रोजेक्ट के लिए 64 राष्ट्रों को 1 ट्रिलियन यूएसडी की राशि कमीशन की है। स्टडी में खुलासा हुआ है कि किस तरह से बीजिंग इंडियन ओसिन रीजन में पोर्ट बनाने के लिए करीब 250 बिलियन यूएसडी वित्तीय सहायता कर रहा है इन देशों में श्रीलंका, मलेशिया, पाकिस्तान, बर्मा, केन्या, यूनाइटेड अरब अमीरात सहित कई देश शामिल हैं।
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चीन के सुपर पावर बनने की राह में ग्रीस में भी करीब 13.6 यूएसडी निवेश किया है ताकी वो पोर्ट ऑफ पाइरस के साथ ग्रीक यूटीलीटीज और फाइबर ऑपटिक कंपनीज में निवेश किया है। उसमें ग्रीस चीन और यूरोप के बीच में ब्रिज का काम कर रहा है।
चीन एशिया के सभी क्षेत्रों को जोड़ने के लिए और यूरोप तक रेलवे लाइन बिछा रहा है। अभी तक चीन ने 9 यूरोपीय देशों में 40 रूटों पर रेल लाइन बिछा दी है। वहीं चीन अमेरिका के साइंस और तकनीकी डोमेन पर भी कब्जा जमा चुका है।
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चीन का आने वाले समय में अफ्रीकी देशों में 150000 किलोमीटर तक फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क बिछाने की तैयारी है जिसे आगे 120 देशों तक बढ़ाने का प्लान है।
वहीं यूरेसिया में जीपीएस की तरह नेवीगेशन सिस्टम बना रहा इग्नेटस आगे लिखते हैं की चीन धीरे धीरे तकनीकी और व्यापार में भी अमेरिका को पीछे छोड़ने के लिए आगे बढ़ रहा है।