अमेरिका और ईरान में युद्ध! जानिए कौन देश किसके साथ, रूस-चीन किसे देंगे समर्थन
अमेरिकी हमले में ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के बाद पूरे मध्य पूर्व में युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। ईरान ने बदले की कार्रवाई की है और अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर हमला किया है। ईरान ने अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर दर्जनों मिसाइलों से हमला किया है।
नई दिल्ली: अमेरिकी हमले में ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के बाद पूरे मध्य पूर्व में युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। ईरान ने बदले की कार्रवाई की है और अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर हमला किया है। ईरान ने अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर दर्जनों मिसाइलों से हमला किया है और दावा किया है कि उसने 80 अमेरिकी सैनिकों को मार गिराया है। इस हमले के बाद युद्ध की संभवाना बढ़ गई है।
ईरान जनरल कासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद दुनिया के देशों ने इलाके में शांति बनाने की अपील की है। तकरीबन सभी देशों ने दोनों पक्षों से संयम रखने की बात कही। हालांकि अमेरिका अपनी सैन्य कार्रवाई कम नहीं कर रहा है। अब इस बीच ईरान के हमले के बाद युद्ध के हालात के बन गए हैं जो कभी भी किसी समय शुरू हो सकता है। अमेरिकी नागरिक विमानों को ईरानी आकाश से गुजरने पर रोक लगा दी गई है।
पूरी दुनिया दो खेमों में बंट गई है और रूस ने परमाणु युद्ध की आशंका जताई है। दोनों देशों में जंग के खतरे के बीच यह सवाल खड़ हो रहा है कि अगर दोनों देश के बीच युद्ध छिड़ता है तो कौ देश किसके साथ होगा और कितना ताकतवर है।
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हालांकि कहा जा रहा है कि कोई भी देश नहीं चाहता कि युद्ध हो। किसी भी तरह की सीधी लड़ाई से पूरी दुनिया को नुकसान होगा, हालांकि सवाल सामने है कि अगर युद्ध हुआ तो और कौन किसके साथ होगा।
माना जा रहा है कि ईरान अमेरिका से सीधी लड़ाई नहीं लड़ सकता है और ऐसी लड़ाई में उसे दुनिया के बाकी किसी देश का समर्थन मिलना कठिन है। इस बात की संभावना ज्यादा है कि अमेरिका के खिलाफ ईरान प्रॉक्सी वार की शुरु कर सकता है। इसमें उसे कुछ देशों के सशस्त्र चरमपंथी गुट समर्थन दे सकते हैं। लेकिन ईरान के अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमले के बाद कहा जा रहा है वह युद्ध के लिए तैयार और उसके सर्वोच्च नेताओं ने भी इसका ऐलान किया है।
अमेरिका के खिलाफ युद्ध में ईरान को लेबनान, यमन, इराक और सीरिया का समर्थन मिल सकता है। कोई भी देश इसमें खुलकर सामने नहीं आना चाहेगा, लेकिन यही बात अमेरिका के साथ भी है। ईरान के साथ जंग में अमेरिका के मित्र राष्ट्र भी शामिल नहीं होना चाहेगा। अब रूस को डर है कि अमेरिका ईरान पर हमला करता है तो विश्व युद्ध छिड़ सकता है।
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मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन सीरिया पहुंचे थे और उन्होंने राष्ट्रपति बशर अल असद से मुलाकात की है। सीरिया ईरान का सहयोगी है। अमेरिका और ईरान के बीच तनाव के बाद पुतिन के यह दौरा अहम माना जा रहा है। मिडिल ईस्ट में इजरायल, खाड़ी के देश और सऊदी अरब जैसे देश अमेरिका का समर्थन कर सकते हैं। ब्रिटेन ने अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर ईरान के हमले की निंदा की है।
ब्रिटेन समेत पूरा यूरोप अभी सुरक्षात्मक और युद्ध को रोकने के प्रयास में हैं, लेकिन युद्ध होता है तो वह अमेरिका का साथ दे सकते हैं। इजरायल के प्रधानमंत्री ने भी ईरान को आगाह किया है। यूरोपीय संघ और जर्मनी ने भी ईरान को चेतवानी देते हुए हिंसा न बढ़ाने की सलाह दी है। अगर युद्ध होता है तो इजरायल, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, सऊदी अरब यूएई, कुवैत और कतर जैसे बड़े देश अमेरिका का साथ दे सकते हैं।
चीन और रूस किसके साथ
ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध की बनती संभावना के बीच दुनिया की दो सबसे ताकतवर देशों में शुमार रूस और चीन पर नजर है। वर्तमान स्थिति को देखकर साफ है कि चीन और रूस ईरान का ही साथ देंगे, क्योंकि सुलेमानी की हत्या के बाद मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन सीरिया पहुंचे थे जो ईरान का सहयोगी देश है।
रूस ने इसे अमेरिका की अवैध कार्रवाई करार दिया है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से कहा है कि अमेरिका का ईरान पर हमला अवैध है। उसे ईरान के साथ बात करनी चाहिए। लावरोव इस बात से नाराज थे कि अमेरिका ने इस तरह की कार्रवाई से पहले जानकारी नहीं दी।
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पुतिन की तरफ से कहा गया है कि कासिम सुलेमानी के मारे जाने से मिडिल ईस्ट के हालात और बिगड़ेंगे। मारे गए कासिम सुलेमानी ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद 29 जुलाई 2015 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी। उस वक्त तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन एफ कैरी ने इस पर आपत्ति जताई थी।
वहीं चीन के विदेश मंत्रालय ने भी सुलेमानी की हत्या की कड़ी आलोचना की थी। रूस की सेना जहां सीरिया में तैनात, तो वहीं चीन ने भी अपने युद्धपोत ईरान के पास ओमान की खाड़ी में तैनात कर रखे हैं। हाल ही में चीन, रूस और ईरान ने संयुक्त नौसैनिक युद्धाभ्यास किया था। तुर्की भी इस हमले में ईरान का साथ दे सकता है।
हालांकि कहा जा रहा है कि रूस, ईरान में अमेरिकी कार्रवाई का विरोध करेगा, लेकिन ईरान के साथ जंग में वो नहीं कूदना चाहेगा। वो भी तब, जब रूस ने इराक के युद्ध और लीबिया की सरकार गिराने में अमेरिका का साझीदार रहा है। हालांकि अब देखना होगा कि कौन किसका साथ देता है।
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कौन कितना ताकतवर
अमेरिका के पास एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टरों की संख्या कुल 10170 है तो वहीं ईरान के पास मात्र 512 है। अगर सैनिक की बात करें तो अमेरिका के पास 12 लाख 81 हजार सैनिक हैं जबकि ईरान के पास सैनिकों की संख्या मात्र 5 लाख 23 हजार है। अमेरिका के पास टैंक और तोप कुल 48 हजार 422 है तो वहीं ईरान के पास 8 हजार 577 है।
अगर बात जहाज और पनड्डुबियों की बात करें तो अमेरिका के पास यह संख्या 415 है जबकि ईरान के पास मात्र 398। दोनों देशों के रक्षा बजट में भी भारी अंतर है। अमेरिका का रक्षा बजट 716 बिलियन डॉलर है जबकि ईरान का बजट मात्र 6.3 बिलियन डॉलर है।