Hindi Diwas 2020: क्या हिन्दी व्याकरण को पाठ्यक्रम में शामिल करना विकल्प है

हम 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते हैं। और ये कामना करते हैं कि हमारे देश के नियामक करोड़ों देशवासियों की इच्छा की पूर्ति कर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाएंगे। लेकिन 71 साल बीत जाने के बावजूद देश के हालात ऐसे नहीं बन सके हैं कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाया जाए।

Update: 2020-09-11 12:41 GMT
हम 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते हैं। और ये कामना करते हैं कि हमारे देश के नियामक करोड़ों देशवासियों की इच्छा की पूर्ति कर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाएंगे।

लखनऊ: हम 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते हैं। और ये कामना करते हैं कि हमारे देश के नियामक करोड़ों देशवासियों की इच्छा की पूर्ति कर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाएंगे। लेकिन 71 साल बीत जाने के बावजूद देश के हालात ऐसे नहीं बन सके हैं कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाया जाए। इसे केंद्र सरकार की कमजोर इच्छा शक्ति और राजनीतिक दबाव ही कहा जाएगा कि करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली जुबान आज तक राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी है।

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देश को सबसे बड़ा धोखा

14 सितंबर 1949 को देशवासियों को बरगलाते हुए देश के कर्णधारों ने हिन्दी को संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत भारतीय संघ की राजभाषा घोषित कर दिया। यानी संविधान के तहत हिन्दी देश की दूसरे दर्जे की आधिकारिक भाषा है वह भी अंग्रेजी के बाद। और हिन्दी में कामकाज पर रोक भी संविधान का ही एक उपबंध करता है। इसे भी आज तक न तो बदला गया और संशोधित करने की दरकार हुई।

हिन्दी वाले उपेक्षित

आज हालात ये हो गई है कि हिन्दी में काम करने वाले लोग उपेक्षित और अलग थलग महसूस करने लगे हैं। लोगों को अपने हिन्दी में हिन्दी के लिए काम करने पर अफसोस होने लगा है। उन्हें लगने लगा है कि अगर अंग्रेजी में काम करते तो ज्यादा नाम होता सराहना होती। जो भाषा रोजगार न दे सके उसका मर जाना ही अच्छा है।

फोटो-सोशल मीडिया

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अच्छी किताबें नहीं बिकती

हिन्दी प्रकाशक परेशान हैं अच्छे लेखकों की किताबें बिकती नहीं हैं। कोई पढ़ना नहीं चाहता। हिन्दी में काम कर रहे प्रकाशनों के अच्छे उप संपादक, कापी राइटर या रिपोर्टर नहीं मिल रहे हैं। हालात ये है कि अंग्रेजी बिल्कुल नहीं आती और हिन्दी टूटी फूटी आती है। लोग हिन्दी पढ़ें और समझें कैसे।

देवनागरी लुप्त हो रही

काफी समय पहले मुझसे वरिष्ठ पत्रकार अच्य़ुतानंद मिश्र ने कहा था कि सब कुछ छोड़ो असली समस्या हिन्दी लिपि देवनागरी के लुप्त होने के खतरे की है। उन्होंने सही कहा था। उन्होंने एक दशक से पहले सोशल मीडिया के प्रवेश के समय ही इस खतरे को भांप लिया था लेकिन हम नहीं चेते।

हिन्दी स्कूल बंदी की ओर

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शिक्षा के व्यवसायीकरण का हाल यह है कि हमने जानबूझकर राज्य सरकार के स्कूलों या प्राथमिक शिक्षा के स्कूलों को बंद होने पर मजबूर कर दिया है यदि मध्याह्न भोजन और स्कालरशिप का लालच न हो तो इन स्कूलों में आज ताला लटक जाए। हिन्दी माध्यम के स्कूलों से जो बच्चे आज निकल रहे हैं वह निसंदेह अच्छी नौकरी नहीं पा रहे हैं वह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की फौज तैयार कर रहे हैं।

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राज्य स्तरीय माध्यमिक स्कूलों की स्थिति यह है कि तमाम स्कूलों में बच्चों से ज्यादा शिक्षक हैं। इन स्कूलों से अगर सरकारी एड बंद कर दी जाए तो इन पर भी ताला लटक जाएगा।

घटिया स्कूल कर रहे कमाई

गरीब से गरीब माता पिता हिन्दी का हाल देखकर अपने बच्चे को सरकारी स्कूल की जगह घटिया मॉंटेसरी स्कूल में भेजना चाहते हैं। इन स्कूलों में न तो प्रशिक्षित टीचर होते हैं न ही उनका विषय का ज्ञान ही ठीक ठाक होता है चूंकि अगर बेहतर नॉलेज होती तो 3-10 हजार या फिर 10-20 हजार की नौकरी बचाने को न जूझ रहे होते।

यही स्थिति हिन्दी में काम कर रहे लोगों की है अंग्रेजी आती नहीं है हिन्दी के अधकचरे ज्ञान से ज्ञानी बनकर या अंधों में काना राजा बनकर कुएं के मेढक की तरह टर्राते रहते हैं। कुएं के मेढक को उतने में ही दुनिया नजर आती है।

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एक सवाल तो फिर करना क्या चाहिए

मुझे लगता है कि हिन्दी ब्राह्मणवाद की पोषक है और यही इसकी राह में सबसे बड़ी बाधा है। दरअसल हिन्दी का पहला व्याकरण आचार्य अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने लिखा था।

इसके बाद हिन्दी व्याकरण कामता प्रसाद गुरु का आया ये भी वाजपेयी थे। लेकिन इस व्याकरण से भी हिन्दी की भ्रांतियां नहीं मिटीं इसके बाद तीसरा और अंतिम व्याकरण आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का आया हिन्दी शब्दानुशासन।

हिन्दी व्याकरण है

ये अब तक का सर्वमान्य व्याकरण है। आचार्य किशोरीदास वाजपेयी के हिन्दी में इस अद्वितीय योगदान को देखते हुए उन्हें हिन्दी पाणिनि कहा गया।

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व्याकरण लिखने के बाद अपने लगभग 30 साल के जीवन में वह सतत आलोचना का स्वागत करते रहे कि यदि किसी को आपत्ति हो तो सामने आए लेकिन कोई नहीं आया।

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इस व्याकरण को श्यामसुंदर दास, डॉ. अमरनाथ झा, श्रीनारायण चतुर्वेदी और सुनीति चाटुर्ज्या ने लिखवाया था। और नागरी प्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया था।

गड़बड़ी कहां हुई

हिन्दी का सर्वमान्य व्याकरण आ जाने के बाद भी केंद्र की सत्ता में बैठे नीति नियंताओं को हिन्दी की सुध नहीं आयी। और हिन्दी लिखने की सही जानकारी देने के लिए हिन्दी की वर्तनी, हिन्दी शब्द मीमांसा, हिन्दी निरुक्त, भाषा विज्ञान जैसे विषय स्कूल कालेजों में हिन्दी के साथ पढ़ाए जाने शुरू ही नहीं किये।

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यही वजह रही हिन्दी पढ़ना तो लोग सीख गए। कहानी लेख रिपोर्ताज की समझ आ गई। हिन्दी सिनेमा ने हिन्दी का काफी भला किया और पूरे देश की भाषा बना दिया।

कोई अंकुश नहीं

लेकिन निजी शिक्षण संस्थानों पर हमारी केंद्र या राज्य सरकारें कोई अंकुश नहीं लगा सकीं। जहां देवनागरी लिखने या हिन्दी बोलने पर पाबंदी है। हिन्दी का काम रोमन लिपि से किया जा रहा है।

अंत में मै यही कहूंगा कि अगर हिन्दी का वाकई भला करना है तो सभी सरकारी नौकरियों में हिन्दी की अच्छी जानकारी अनिवार्य की जानी चाहिए। स्कूलों में हिन्दी शब्दों का क्या अनुशासन होता है हिन्दी वाक्य कैसे लिखें। कैसे सही हिन्दी लिखें ये पढ़ाया जाना चाहिए। तभी हिन्दी बचेगी।

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रिपोर्ट- रामकृष्ण वाजपेयी (लेखक- वरिष्ठ पत्रकार)

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