पंडित भीमसेन जोशी: ऐसे बने शास्त्रीय संगीत के सम्राट, बताया कैसे बनें सफल

एक बार जब पंडित भीमसेन जोशी से पूछा गया कि आपको गाने का शौक कैसे हुआ तो इसके जवाब में उन्होंने बताया था कि मेरी मां की वजह से मुझे गाने का शौक हुआ था।

Update:2021-02-04 12:47 IST
पंडित भीमसेन जोशी: ऐसे बने शास्त्रीय संगीत के सम्राट, बताया कैसे बनें सफल

लखनऊ: पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी शास्त्रीय संगीत का एक ऐसा नाम, जिसे शायद ही दुनिया कभी भुला पाएगा। आधुनिक भारत के तानसेन कहे जाने वाले पंडित जोशी 4 फरवरी, 1922 को कर्नाटक के गडग जिला के एक छोटे से गांव में जन्मे थें। भारत रत्न से सम्मानित जोशी के बारे में कहा जाता है कि भीमसेन जोशी रोए भी तो राग में। छोटी सी ही उम्र में जोशी को शास्त्रीय संगीत से बेहद लगाव हो गया, जिसके चलते उन्होंने संगीत सीखने की ठानी।

गुरु सवई गंधर्व से सिखी गायकी

संगीत सीखने की चाह में वो छोटी सी उम्र में जालंधर चले गए, जहां उनकी मुलाकात विनायक राव पटवर्धन से हुई। इस मुलाकात में उन्हें गुरु सवई गंधर्व से मिलने की सलाह मिली। गुरू सवई गंधर्व ने पंडित भीमसेन को गायकी की कला सिखाई। ऐसा कहा जाता है कि जोशी को 20 से ज्यादा रागों पर पकड़ हासिल थी। उन्होंने अपनी गायकी के लिए भारत के अनेक अवॉर्ड और खिताब मिल जीते। लेकिन वो असली खिताब वो गुरु की कृपा और गला यानी संगीत को मानते थे।

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ऐसे हुआ था गाने का शौक

वहीं एक बार जब पंडित भीमसेन जोशी से पूछा गया कि आपको गाने का शौक कैसे हुआ तो इसके जवाब में उन्होंने बताया था कि मेरी मां की वजह से मुझे गाने का शौक हुआ था। वो अक्सर पूजा पाठ करती थी और भजन गाया करती थी। जिसके चलते मुझे धीरे-धीरे गाने का शौक हो गया। बकौल जोशा, उन्हें गायक बनने की प्रेरणा सबसे पहले उस्ताद अब्दुल करीम खान से मिली।

Bhimsen Joshi

उस्ताद करीम खान से मिली गायक बनने की प्रेरणा

उस्ताद करीम खान की ठुमरी ये बसंत' और 'पिया बिन नही आवत' की रिकार्डिंग सुन जोशी ने ठाना कि उन्हें शास्त्रीय संगीत सीखना है। ना केवल उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखने की ठानी, बल्कि उसके लिए कठिन मेहनत की और देश से लेकर विदेश में भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने जीवल में सफलता पाने की तीन मुख्य शर्तें भी बताईं।

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सफलता पाने की तीन मुख्य शर्तें

पंडित भीमसेन जोशी का कहना था कि जीवन में सफलता पाने की तीन ही मुख्य शर्तें हैं, पहला तो अच्छा गुरु मिलना चाहिए, दूसरा खुद से अच्छा प्रयत्न किया जाना चाहिए, तब जाकर अंत में कहीं तकदीर या किस्मत रंग लाती है। उनका कहना था कि पहली दो शर्तों के बिना किस्मत अकेले सफलता नहीं दिला सकती।

तकदीर तभी कामयाबी तक पहुंचने में आपकी मदद करती है जब आपकी कोशिश पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ होती है। बता दें कि शास्त्रीय संगीत के सम्राट का निधन 24 जनवरी 2011 को पुणे के एक निजी अस्पताल में हुआ था।

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