रमजान: इतिहास में होगा पहला मौका जब इबादतगाहे नहीं होगी गुलजार

पवित्र रमजान का चांद शुक्रवार को आसमान पर दिखाई पड़ गया। शनिवार को पहला रोजा है। अब एक माह तक मुस्लिम समुदाय इबादत मे लग जाएगा। लेकिन ये शायद...

Update: 2020-04-25 05:12 GMT

पवित्र रमजान का चांद शुक्रवार को आसमान पर दिखाई पड़ गया। शनिवार को पहला रोजा है। अब एक माह तक मुस्लिम समुदाय इबादत मे लग जाएगा। लेकिन ये शायद देश के इतिहास मे पहला मौका होगा जब इबादतगाहे गुलजार नही होगी। यानी मस्जिदों मे अजाने तो होगी लेकिन रोजेदार अजान सुनकर घरों मे ही नमाज अदा करंगे।

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दरअसल इसका बड़ा और मूल कारण है दुनिया भर मे फैली कोरोना महामारी से आई हुई आफत। जहां बड़े-बड़े मुल्क इस महामारी की गिरफ्त मे हैं वहीं हिंदुस्तान मे भी इस महामारी ने कदम रख दिए हैं। देश मे इससे ग्रस्त लोगों की तादाद हजारो मे पहुंच गई है। जिसके चलते सरकार को लाकडाउन की एडवाइजरी जारी करनी पड़ गई।

इसको लागू हुए एक माह का समय बीत गया है। लोग इससे बचने के लिए घरों मे कैद हो हैं और यही विधि इसका बेहतर और मुनासिब इलाज है। मार्च अंत मे शुरू हुए लाकडाउन मे जहां हिंदू समुदाय के 9 दिन का नवरात्रि का पर्व इसके चलते प्रभावित हुआ वही अब मुस्लिम समुदाय का रोजा। लेकिन जान है तो जहान है, इसी कहावत को इस विषम परिस्थिति मे चरितार्थ करना अति अवाश्यक है।

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यही वजह है के जहां शासन-प्रशासन ने मुस्लिम समुदाय से घरो मे रहकर इबादत की अपील की है वही मुस्लिम धर्म गुरुओ ने भी। बता दें कि मजहबे इस्लाम मे इंसानी जान को सबसे ज़्यादा अहमियत दी गयी है जिसको हर मुसलमान को मानना भी इबादत में शुमार होता है। रहमतो और बरकतों वाले महीने रमज़ान में बड़े पैमाने पर लोग रोज़े रखते हैं, साथ मिल जुल कर इफ्तार भी करते हैं। लेकिन इस बार कोरोना का इस पर खतरा है।

रिपोर्ट- असगर नकी

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लॉकडाउन के दौर में अध्ययन- अध्यापन : चुनौतियां एवं अवसर प्रोफेसर राजीव सिजरिया

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