सत्ता के शिखर पर नहीं पहुंच पाए राहुल गांधी, ऐसा रहा 20 महीने का सफर
इसके बाद भी राहुल गांधी अपनी बात पर अड़े रहे। फिर सीडब्ल्यूसी की दूसरों बैठक हुई। इस दौरान भी उनसे आग्रह किया गया कि वह अध्यक्ष पद को न छोड़े लेकिन इस बार भी वो नहीं माने। अब सवाल खड़ा हुआ कि गांधी परिवार से ऐसा और कौन है जो ये ज़िम्मेदारी उठा सकता है।
नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक सफल और समृद्ध परिवार से आते हैं, जहां कभी किसी चीज की दिक्कत नहीं हुई। राहुल को विरासत में एक बेहतरीन परिवार और बड़ा संगठन मिला। उनके खानदान में एक से एक दिग्गज नेता हुए।
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जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी और उनकी माता जी सोनिया गांधी। सभी एक से बड़े एक नेता हैं लेकिन बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को राजनीति में वो मुकाम कभी हासिल नहीं हुआ, जो उनकी पुश्तों से उन्हे विरासत में मिला था।
राहुल गांधी को मिली करारी हार
कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उनके करीब 20 महीने के सफर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावी जीत के तौर पर बड़ी सफलताएं मिली, लेकिन इस साल के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार उनकी नाकामी की बड़ी इबारत लिख गया और इसी के साथ पार्टी के मुखिया के तौर पर उनकी पारी का पटाक्षेप भी हो गया।
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अध्यक्ष रहते हुए गांधी ने पार्टी की कार्य संस्कृति में बदलाव का प्रयास किया। उन्होंने टिकट आवंटन, संगठन की कार्यशैली में पारदर्शिता लाने के लिए कदम उठाया तथा संगठन में चुनाव कराने की परंपरा शुरू की।
मामूली अंतर से मिली हार
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्र राहुल ने अपनी सियासी पारी के आगाज से ही मीडिया, आमजन और बौद्धिक वर्ग का ध्यान खींचा और पहले पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने फिर दिसंबर, 2017 में गुजरात चुनाव के समय कांग्रेस अध्यक्ष बने।
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गुजरात के चुनाव में कांग्रेस भले ही मामूली अंतर से हार गई, लेकिन कई सियासी जानकारों ने गांधी के नेतृत्व और पार्टी की चुनावी रणनीति की तारीफ की। गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई तो 2018 के आखिर में हुए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत ने उनके नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ाने का काम किया।
राहुल गांधी को लगा होगी सत्ता में वापसी
इन तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत से उत्साहित कांग्रेस और गांधी को लगा कि 2019 के चुनाव में केंद्र की सत्ता में भी वापसी होगी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व भाजपा की बड़ी जीत ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। साथ ही अपनी परंपरागत अमेठी सीट पर उनकी हार उनके लिए दोहरा झटका लेकर आई।
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लोकसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की स्थिति यह है कि वह 2014 के अपने 44 सीटों के आंकड़ों में महज कुछ सीटों की बढ़ोतरी कर पाई और उसे 52 सीटें मिली। चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान भी कई जानकारों का यह कहना था कि अगर कांग्रेस सीटों का शतक भी लगा लेती है तो वह उसके और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी लिए सहज स्थिति होगी, हालांकि ऐसा नहीं होता दिख रहा।
किया ‘चौकीदार चोर है’ का प्रचार
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में समूची पार्टी ने प्रचार अभियान प्रधानमंत्री मोदी पर केंद्रित रखा और राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए ‘चौकीदार चोर है’ का प्रचार अभियान चलाया जिसके जवाब में मोदी और भाजपा ने ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान शुरू किया।
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राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे के अलावा ‘न्यूनतम आय गारंटी’ (न्याय) योजना को मास्टरस्ट्रोक के तौर पर पेश किया। पार्टी को उम्मीद थी कि गरीबों को सालाना 72 हजार रुपये देने का उसका वादा भाजपा के राष्ट्रवाद वाले विमर्श की धार को कुंद कर देगा, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ।
जनता मालिक है और उसका फैसला स्वीकार
जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के ‘नकारात्मक’ प्रचार अभियान के साथ पार्टी अथवा विपक्षी गठबंधन की तरफ से नेतृत्व का स्पष्ट नहीं होना भी भारी पड़ा। पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभालते हुए गांधी प्रधानमंत्री पद अथवा विपक्ष की तरफ से नेतृत्व के सवाल को भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से टालते रहे। वह बार-बार यही कहते रहे कि जनता मालिक है और उसका फैसला स्वीकार किया जाएगा।
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लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद 25 मई को हुई सीडब्ल्यूसी की बैठक में राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। उस वक्त उनके इस्तीफे को अस्वीकार करते हुए सीडब्ल्यूसी ने उन्हें पार्टी में आमूलचूल बदलाव के लिए अधिकृत किया था।
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मगर इसके बाद भी राहुल गांधी अपनी बात पर अड़े रहे। फिर सीडब्ल्यूसी की दूसरों बैठक हुई। इस दौरान भी उनसे आग्रह किया गया कि वह अध्यक्ष पद को न छोड़े लेकिन इस बार भी वो नहीं माने। अब सवाल खड़ा हुआ कि गांधी परिवार से ऐसा और कौन है जो ये ज़िम्मेदारी उठा सकता है। जब कोई नाम नहीं मिला तो सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया।