अमेरिका की वो गलतियां, जो छिन सकती है 2 लाख लोगों की जिंदगियां

अमेरिका में इस जानलेवा वायरस से अब तक 2 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। और करीब 4 हजार लोगों की मौत भी हो चुकी है। कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में अमेरिका ने चीन और इटली को काफी पीछे छोड़ दिया है।

Update: 2020-04-02 08:28 GMT

नई दिल्ली: पूरे विश्वभर में कोरोना वायरस का कहर जारी है। अब तक इस वायरस से पूरी दुनिया में करीब 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों की संख्या में लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। वहीं इस महामारी से दुनिया भर के सबसे शक्तिशाली देश कहे जाने वाला अमेरिका भी अछुता नहीं है। अमेरिका में कोरोना वायरस लगभग दो महीने पहले ही दस्तक दे चुका है।

अमेरिका में महामारी का भयंकर रूप आना अभी बाकी है

कोरोना वायरस का कहर पूरे अमेरिका में फैल चुका है। अमेरिका में इस जानलेवा वायरस से अब तक 2 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। और करीब 4 हजार लोगों की मौत भी हो चुकी है। कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में अमेरिका ने चीन और इटली को काफी पीछे छोड़ दिया है। हालांकि स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि आगे चलकर अमेरिका में इस महामारी का भयंकर रूप सामने आएगा।

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हो सकती हैं 2 लाख से ज्यादा मौतेंं

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी आने वाले 2 सप्ताह को कठिन समय बताया है। इसके अलावा व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने ये संभावनाएं जताई हैं कि इस बीमारी से देश में तकरीबन 1 से 2 लाख मौते हो सकती हैं। ऐसे में सवाल ये खड़े होते हैं कि आखिर अमेरिका कहां चूक गया जो इस बीमारी ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया।

अमेरिका की वो गलतियां, जिससे पैदा हुआ इतना बड़ा संकट

देश में इस वक्त मेडिकल सप्लाई में संकट पैदा हो गई है। अमेरिका में मास्क से लेकर, ग्लव्स, गाउन्स और वेंटिलेटर्स की भारी मात्रा में कमी हो रही है। डॉक्टरों, अस्पतालों के पास इस संक्रमण से सुरक्षा देने वाले पर्याप्त उपकरण की कमी है। यही नहीं कई स्वास्थ्य कर्मियों को तो सैनिटरी का सामान दोबारा इस्तेमाल करना पड़ रहा है। साथ ही कई स्वास्थ्यकर्मी अपने स्तर से मास्क बनाने में जुटे हैं।

केंद्र सरकार और राज्य के बीच मची होड़

सबसे बड़ी समस्या वेटिंलेटर्स की उत्पन्न हो रही है। मंगलवार को न्यू यॉर्क के गवर्नर एंड्रू कूमो ने इसे लेकर शिकायत की। कूमो ने कहा कि मेडिकल उपकरणों को पाने के लिए केंद्र सरकार और राज्यों के बीच होड़ मची हुई है। जिससे इनकी कीमतें बढ़ गई हैं।

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पर्याप्त मेडिकल उपकरण की आपूर्ति नहीं कर सकी सरकार

जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में हेल्थ पॉलिसी एंड मैनेजमेंट के प्रोफेसर जेफरी लेवी ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत करते हुए कहा कि, ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सरकार समय पर पर्याप्त मेडिकल उपकरण की आपूर्ति नहीं कर सकी। साथ ही जब संकट बढ़ा तब भी सरकार ने तेजी से काम नहीं किया और मेडिकल उपकरणों के उत्पादन में कई हफ्तों बर्बाद कर दिए। अमेरिकी सरकार ने जरूरी मेडिकल उपकरणों का उत्पादन बढ़ाने में अपनी पूरी क्षमता नहीं लगाई।

शुरुआती दौर में नहीं हुई ज्यादा टेस्टिंग

इसके अलावा जो अमेरिका की गलती रही, वो थी शुरुआती दौर में ज्यादा टेस्टिंग न कराना। अमेरिका ने अगर शुरुआत में ही टेस्टिंग कराई होती तो देश में इतनी भयावह स्थिति न पैदा होती।

प्रोफेसर लेवी ने कहा कि, किसी भी महामारी से निपटने के लिए ये जरूरी है कि आपको पता हो कि कहां क्या चल रहा है। अगर आपको इस बात का अंदाजा नहीं है तो आपको ये भी नहीं पता होगा कि वायरस का अगला हॉटस्पॉट कौन सी जगह होने वाली है।

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आपको ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करानी चाहिए ताकि संक्रमित मरीजों की पहचान की जा सके और उन्हें बाकी लोगों से अलग किया जा सके। इससे संक्रमण कम फैलता है और आप पूरे देश को लॉकडाउन करने से भी बच सकते हैं।

मार्च के अंत तक हो सका केवल 10 लाख टेस्ट

मार्च महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति ने ये वादा किया था कि वह महीने के अंत तक 50 लाख टेस्ट करवाएंगे। हालांकि एक विश्लेषण के मुताबिक, महीने के अंत तक केवल 10 लाख तक ही टेस्ट करवाए जा सके। इसके अलावा लैब में टेस्ट के रिजल्ट आने में एक या उससे ज्यादा हफ्ते लग जा रहे हैं, जिससे कि लोगों को ये नहीं पता लग पा रहा कि वे संक्रमित हैं या नहीं।

अमेरिकी ने बीमारी को नहीं लिया सीरियस

जनवरी और फरवरी महीने में कोरोना ने चीन की इकोनमी को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था, और इटली में मौत के आंकड़ें थमने के नाम नहीं ले रहे थे, लेकिन इन सब के बावजूद अमेरिका ने इस खतरे को गंभीरतापूर्वक नहीं लिया। ट्रंप और उनके अधिकारियों ने ये दावा किया कि हालात कंट्रोल में हैं और गर्मी तक यह एक जादू की तरह गायब हो जाएगा।

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बदलते बयान गंभीर समस्या

ट्रंप और शीर्ष नेतृत्व के लगातार बदलते बयान भी एक गंभीर समस्या है। प्रोफेसर लेवी के मुताबिक, इस महामारी के दौरान हालात बदलते रहते हैं और उसी के आधार पर आपके संदेश भी बदलते रहते हैं। लेकिन इस मामले में किसी वैज्ञानिक संकेत या जमीनी हकीकत को न देखते हुए राजनीतिक चिंताओं की वजह से बयान बदलते गए।

नहीं हो रही सोशल डिस्टेंसिंग

कोरोना वायरस की रोकने के लिए सबसे जरूरी है, सोशल डिस्टेंसिंग। लेकिन कईयों चिंताओं के बाद भी अमेरिका के फ्लोरिडा बीच पर फ्लोरिडा बीच पर स्टूडेंट्स की भीड़ नहीं थमी। एक चर्च में भी हजारों की तादाद में लोग प्रेयर करने पहुंचते रहे। जब इसके संबंध में चर्च के पादरी टोनी स्पेल से सवाल किए गए तो उन्होंने कहा कि, चाहे कुछ भी हो जाए हम प्रार्थना करना नहीं छोड़ेंगे।

देशभर में ऐसी कई गतिविधियां हुईं, जिससे साफतौर पर जाहिर होता है कि राज्य और स्थानीय सरकारें सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर इच्छुक नहीं हैं। इसलिए वो इसे लागू करवाने के लिए ज्यादा सख्ती भी नहीं कर रहे।

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