ये कैसे हुआ: इन 2 देशों ने सभी को चौंका दिया, बिना लॉकडाउन कर दिखाया ऐसा

इन देशों में संक्रमितों की संख्या और देशों के मुकाबले कम है जबकि आश्चर्य की बात तो ये है कि यहां पर पूर्ण लॉकडाउन भी नहीं लगाया गया था। तब फिर ऐसा कैसे।

Update:2020-05-02 13:21 IST

नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी का संक्रमण दुनिया भर में कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। बिट्रेन की बात करें तो यहां संक्रमण तेजी से फैल रहा है। वहीं कोरोना मरीजों की संख्या 1,77,454 हो चुकी है और मौतों का आंकड़ा 27 हजार पार कर चुका है। साथ ही दक्षिण कोरिया की बात करें तो चीन का पड़ोसी देश होने के बाद भी यहां संक्रमण का आंकड़ा अबतक 10 हजार और 250 जानें गई हैं। हालांकि स्वीडन भी दूसरे देशों से ठीक ही है, यहां 21,520 कोरोना मरीजों के बीच 2,653 जानें गई हैं। इन देशों में संक्रमितों की संख्या और देशों के मुकाबले कम है जबकि आश्चर्य की बात तो ये है कि यहां पर पूर्ण लॉकडाउन भी नहीं लगाया गया था। तब फिर ऐसा कैसे।

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नेशनल असेंबली के लिए चुनाव भी हुए

दक्षिण कोरिया की बात करें तो फरवरी के लास्ट में एक दिन में यहां 900 से ज्यादा मामले आए, लेकिन अगले दो ही महीनों के भीतर संक्रमितों की दर तेजी से गिरी। बीते पूरे हफ्ते यहां एका-दुक्का मामले रह गए।

वहीं इन हालातों के बीच अप्रैल में ही देश की नेशनल असेंबली के लिए चुनाव भी हुए। ये एक ऐसा कदम है, जिसके बारे में दुनिया के ज्यादातर देश फिलहाल सोच भी नहीं सकते क्योंकि उनकी सारी ताकत बंदी और कोरोना से हुई विपदा को संभालने में ही लग रही है।

दक्षिण कोरिया में बार, कैफे, दुकानें और सारे ही होटल खुले हुए हैं। जल्दी ही चर्च पर लगी रोक भी हटने वाली है। बता दें कि यहां के एक चर्च के कारण ही देश में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े थे, जिसके बाद चर्च के अधिकारियों पर हत्या की कोशिश का आरोप लगा था।

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कोरोना वायरस टास्क फोर्स

ये देश इसलिए महामारी पर काबू पा सका है क्योंकि इससे पहले सार्स और मर्स से प्रभावित हो चुकने के कारण काफी कुछ सीख लिया था। साल 2015 में मर्स के कारण यहां 38 जानें चली गई थीं, जिसके कारण सरकार पर काफी गंभीर आरोप भी लगे थे।

तभी सरकार ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और जांच पर काफी जोर दिया। कोरोना वायरस टास्क फोर्स बनी, जिसका मंत्र था- test, trace and contain।

तुंरत ही कोरोना की जांच के लिए 600 सेंटर बने, जिनमें एक-एक दिन में 20000 तक जांचें होने लगीं। कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का डाटा निकालने के लिए तकनीक की मदद ली गई। उनके फोन रिकॉर्ड, जीपीएस, बैंक या खरीदारी के बिल और सीसीटीवी इमेज के जरिए संदिग्धों तक पहुंचा गया।

दुनिया का सबसे अच्छा हेल्थकेयर

साथ ही दक्षिण कोरिया का हेल्थकेयर सिस्टम भी बहुत अच्छा रहा है। जो हर कदम पर साथ रहा। साल 2015 में Organisation for Economic Co-operation and Development (OECD) ने दुनिया का सबसे अच्छा हेल्थकेयर सिस्टम भी घोषित किया था।

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यूके के फ्री हेल्थकेयर सिस्टम एनएचएस की अपेक्षा में यहां का सिस्टम निजी तरीके से चलता है लेकिन देश की 97 प्रतिशत आबादी को नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस मिलता है।

यहां पर रेस्टोरेंट या किसी पब्लिक प्लेस या सरकारी ऑफिस में जाने पर पहले तापमान लिया जाता है, उसके बाद ही अंदर जाने को मिलता है। मामूली लगने वाली ये कुछ बातें साउथ कोरिया की कोरोना से जीत में काफी अहम रहीं।

स्वीडन की बात करें तो स्वीडन का हेल्थकेयर सिस्टम बिना लॉकडाउन के भी कोरोना मरीजों की देखभाल अफोर्ड कर सकता है। वैज्ञानिकों के इस मत में Swedish Institute for Health Economics (IHE) के डायरेक्टर पीटर लिंडग्रेन भी सम्मिलित हैं।

बुजुर्गों की केयर पर जोर

इनके अनुसार, ICU में आए मरीजों की हालत में सुधार है यानी इलाज काम कर रहा है। हालांकि वे मानते हैं कि लॉकडाउन न होने के कारण उम्रदराज लोगों में संक्रमण और मौत की दर बढ़ी है। इसलिए फिलहाल बुजुर्गों की केयर पर जोर दिया जा रहा है।

साथ ही स्वीडिश हेल्थ मिनिस्टर Lena Hallengren के मुताबिक, अब केयर होम्स में रह रहे उम्रदराज लोग चिंता का विषय हैं। हालांकि वे यह भी मानती हैं कि फिलहाल ये नहीं कहा जा सकता कि स्वीडन ने कोरोना पर जीत हासिल कर ली है।

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आगे वे कहती हैं कि हमने लॉकडाउन नहीं किया है लेकिन सारे बिजनेस उसी तरह से चल रहे हों, ऐसा भी नहीं है। हम लगातार जांच रहे हैं कि कोरोना से निपटने के लिए हमारा वर्तमान तरीका कितना सही है।

सोशल डिस्टेंसिंग के कायदे को मानते हुए

हालांकि स्वीडन में रेस्टोरेंट, बार , सैलून और कुछ स्कूल खुले हुए हैं, वहीं 50 से ज्यादा लोगों का इकट्ठा होने सख्त मना है। लगभग सारी गतिविधियां सोशल डिस्टेंसिंग के कायदे को मानते हुए चालू हैं, इसके बाद भी फिलहाल तक इस देश में अस्पतालों में दिक्कत नहीं हैं।

इस पर स्वीडिश एपिडेमियोलॉजिस्ट Anders Tegnell का कहना है कि देश में हर्ड इम्युनिटी बन रही है। देश की बड़ी आबादी बाहर रहते हुए बीमारी से एक्सपोज हो रही है।

वहीं ऐसे लोगों का टेस्ट करने पर उनके शरीर में कोरोना के लिए एंटीबॉडी भी दिख रही है। ऐसे में अगर कोरोना का दूसरी बार हमला होता है तो देश के लोगों के सुरक्षित रहने की संभावना काफी ज्यादा होगी।

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