मस्जिद पर फहराया झंडा: अब होगी ऐसी खौफनाक जंग, मची पूरी दुनिया में हलचल

इरान में कोम स्थित जानकरन मस्जिद के गुंबद पर आमतौर पर धार्मिक झंडे फहराए जाते हैं। ऐसे में धार्मिक झंडे को हटाकर लाल झंडा फहराने का मतलब युद्ध के एलान के रूप में लिया जा रहा है। क्योंकि लाल झंडे का मतलब दुख जताना नहीं होता है।

Update: 2020-01-05 07:30 GMT

नई दिल्ली: अमेरिका और ईरान के बीच आपसी तनाव बढता ही जा रहा है। जिसके कारण इरान ने कोम स्थित जानकरन मस्जिद के गुंबद पर लाल झंडा फहरा कर युद्ध का एलान किया है। पिछले दिनों अमेरिका ने ईरान के कुद्स फोर्स के प्रमुख मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराया था। जिसकी मौत के बाद इरान ने भी युद्ध की धमकियां देनी शुरू कर दिया है। सुलेमानी पर हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से धमकी देते हुए कहा है कि अगर ईरान ने हमला किया तो उसके 52 ठिकानों को निशाना बनाया जाएगा।

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ईरान ने अघोषित रूप से अमेरिका के खिलाफ युद्ध का किया ऐलान

गौरतलब है कि अमेरिकी हवाई हमले में ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के बाद अब ईरान ने अघोषित रूप से अमेरिका के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया है। शनिवार सुबह ईरान ने जामकरन मस्जिद के ऊपर लाल झंडा फहराकर युद्ध की चेतावनी दे डाली।

इस तरीके के हालात में झंडा फहराना का मतलब होता है कि युद्ध के लिए तैयार रहें या युद्ध आरंभ हो चुका है। रिपोर्ट्स के मुताबिक ऐसा पहली बार नहीं है कि ईरान ने इसतरह से मस्जिद पर लाल झंडा फहराया है।

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लाल झंडा फहराने का मतलब युद्ध का ऐलान

इरान में कोम स्थित जानकरन मस्जिद के गुंबद पर आमतौर पर धार्मिक झंडे फहराए जाते हैं। ऐसे में धार्मिक झंडे को हटाकर लाल झंडा फहराने का मतलब युद्ध के एलान के रूप में लिया जा रहा है। क्योंकि लाल झंडे का मतलब दुख जताना नहीं होता है।

झंडा फहराकर ईरान अपने नागरिकों को युद्ध की स्थिति के लिए तैयार रहने को कह रहा है, जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा है। हालांकि, यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ईरान और इराक के बीच युद्ध के दौरान भी लाल झंडा नहीं फहराया गया था।

मस्जिद पर लाल झंडा फहराने का धार्मिक महत्व

दरअसल, हुसैन साहब ने कर्बला युद्ध के दौरान मस्जिद के ऊपर लाल झंडा फहराया था। लाल झंडे को खून और शहादत का प्रतीक माना जाता है। इसलिए ईरान द्वारा लाल झंडा फहराने को मारे गए कमांडर सुलेमानी के लिए बदले के तौर पर देखा जा रहा है। जामकरन मस्जिद को ईरान का सबसे पवित्र मस्जिद माना जाता है और यहां के युवाओं पर इसका काफी प्रभाव है।

अमेरका और ईरान के बीच आपसी तनाव बढता ही जा रहा है। पिछले दिनों अमेरिका ने ईरान के कुद्स फोर्स के प्रमुख मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराया था। जिसकी मौत के बाद इरान ने भी युद्ध की धमकियां देनी शुरू कर दिया है। सुलेमानी पर हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से धमकी देते हुए कहा है कि अगर ईरान ने हमला किया तो उसके 52 ठिकानों को निशाना बनाया जाएगा।

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इरान ने अब तक 52 अमेरिकियों को बंदी बनाया

बात दें की राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ये धमकी इसलिए दिया है कि अमेरिका के हमले के बाद इरान ने अब तक 52 अमेरिकियों को बंदी बनाया है। इस लिए 52 ठिकानों पर इसलिए हमला करेगा ।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट करते हुए कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुए लिखा है। ‘ईरान बदला लेने की धमकी दे रहा है। मैं ईरान को चेतावनी देना चाहता हूं कि अगर उसने किसी अमेरिकी या अमेरिकी ठिकाने पर हमला किया तो हमने ईरान के 52 ठिकानों की पहचान की है (ईरान द्वारा बंधक बनाए गए 52 अमेरिकी बंदियों की याद में)।

बात दें कि ये 52 ईरानी ठिकानों में कई उच्‍च स्‍तर के हैं और ईरान और उसकी संस्‍कृति के लिए बेहद अहम हैं। इन ठिकानों पर बहुत तेजी से और बहुत विध्‍वंसक तरीके से निशाना बनाया जाएगा। इसलिए अमेरिका को और ज्‍यादा धमकी नहीं चाहिए’

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बगदाद में कर चुका है हमला

शनिवार रात को ईराक की राजधानी बगदाद में अमेरिकी दूतावास पर तीन रॉकेट से हमला किया गया। कहा जा रहा है कि ये हमला ईरान की तरफ से बदले की कार्रवाई है। इस दौरान तीन रॉकेट दागे गए। दो रॉकेट दूतावास के नजदीक गिरे। बगदाद के ग्रीन जोन इलाके में कई मोर्टार बम गिरे और अमेरिकी सैनिकों के ठिकाने के पास कई रॉकेट भी गिरे। हालांकि इस हमले में किसी की मौत की पुष्टि नही हुई है।

अमेरिका और ईरान की इस सैन्य तनातनी के बीच तीसरे विश्वयुद्ध पर बहस भी शुरू हो गई है। कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। एक सवाल ये भी है कि अगर अमेरिका और ईरान के बीच सीधी जंग होती है तो ईरान के साथ कौन-कौन से देश खड़े होंगे? क्या अमेरिकी कार्रवाई के खिलाफ दुनिया के कुछ देशों का अलग गुट भी बन सकता है।

अमेरिका के खिलाफ जाकर कौन से देश दे सकते हैं ईरान का साथ

इस तरह के सवाल पर पहली बात तो यही कही जा रही है कि कोई भी देश नहीं चाहता कि युद्ध हो। किसी भी तरह की सीधी लड़ाई से पूरी दुनिया को नुकसान होगा। लेकिन सवाल है कि अगर ऐसा हुआ तो ईरान की स्थिति क्या होगी?

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि ईरान अमेरिका से सीधी लड़ाई नहीं लड़ सकता। इस तरह की लड़ाई में उसे दुनिया के बाकी किसी देश का समर्थन मिलना मुश्किल है। इस बात की संभावना ज्यादा है कि अमेरिका के खिलाफ ईरान प्रॉक्सी वार की शुरुआत कर सकता है।

इसमें उसे कुछ देशों के सशस्त्र चरमपंथी गुटों का समर्थन मिल सकता है। अमेरिका के खिलाफ ईरान के इस तरह के युद्ध में उसे लेबनान, यमन, इराक और सीरिया का समर्थन मिल सकता है। लेकिन कोई भी देश इसमें खुलकर सामने नहीं आना चाहेगा। हालांकि यही बात अमेरिका के साथ भी है।

ईरान के साथ जंग में अमेरिका के मित्र राष्ट्र भी भागीदार नहीं बनना चाहेंगे। मीडिल ईस्ट में इजरायल, खाड़ी के देश और सऊदी अरब जैसे देश अमेरिका का समर्थन करते हैं, लेकिन वो ईरान के साथ जंग में तब तक अमेरिका का साथ नहीं देंगे, जब तक उन देशों पर ईरान हमले नहीं करता है।

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क्या रूस और चीन कर सकते हैं ईरान का समर्थन

रूस और चीन ने ईरान में अमेरिकी कार्रवाई पर आपत्ति जताई है। रूस ने इसे अमेरिका की ‘अवैध कार्रवाई’ बताया है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से कहा है कि अमेरिका का ईरान पर हमला ‘अवैध’ है। उसे ईरान के साथ बात करनी चाहिए लावरोव इस बात से नाराज थे कि अमेरिका ने इस तरह की कार्रवाई से पहले नहीं बताया।

लावरोव ने कहा कि यूएन का एक सदस्य देश अगर किसी देश के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई पर यूएन के दूसरे सदस्य देशों की अनदेखी करता है तो ये अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है और इसकी भरपूर निंदा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे इस क्षेत्र की शांति भंग होगी, अस्थिरता आएगी और अमेरिका को इसके नतीजे भुगतने होंगे।

हालांकि एक बड़ी बात ये है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस घटना को तवज्जो नहीं दी है। रूस के किसी मीडिया रिपोर्ट में पुतिन ने इस मामले पर कोई खास जोर नहीं दिया है। पुतिन की तरफ से सिर्फ इतना कहा गया है कि कासिम सुलेमानी के मारे जाने की वजह से मिडिल ईस्ट के हालात और बिगड़ेंगे।

अमेरिकी हमले में मारे गए कासिम सुलेमानी ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद 29 जुलाई 2015 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी। उस वक्त तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन एफ कैरी ने इस पर आपत्ति भी जाहिर की थी।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने रूस के रुख पर लिखा है कि रूस, ईरान में अमेरिकी कार्रवाई का विरोध करेगा लेकिन ईरान के साथ जंग में वो नहीं कूदना चाहेगा। वो भी तब, जब रूस ने इराक के युद्ध और लीबिया की सरकार गिराने में अमेरिका का साझीदार रहा है।

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क्या अमेरिका के खिलाफ जंग में ईरान का साथ देगा चीन

चीन का रूख भी रूस की तरह ही होगा। चीन ने ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी के अमेरिकी हवाई हमले में मारे जाने पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है। वो दोनों पक्षों से शांति की अपील कर रहा है।

कासिम सुलेमानी के मारे जाने पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि बीजिंग इस मामले पर चिंतित है और वो लगातार मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव पर नजर बनाए हुए है।

चीनी प्रवक्ता ने कहा कि इस मामले में सभी पक्षों को अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करना चाहिए और संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के हिसाब से चलना चाहिए।

चीन की तरफ से कहा गया कि खासतौर पर वो अमेरिका से कहना चाहते हैं कि वो संयम रखे और तनाव को और बढ़ने से रोकने के लिए किसी तरह की कार्रवाई न करे। इसी तरह से ब्रिटेन ने अमेरिकी कार्रवाई की आलोचना नहीं की लेकिन उसने इलाके में शांति स्थापित करने के लिए संयम रखने की अपील की है।

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क्या जंग आगे बढ़ी तो बन सकता है ईरान के समर्थन में कोई गुट

कुछ जानकारों की राय में अगर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव और बढ़ता है और जंग के हालात पैदा होते हैं तो ईरान चीन और रूस एकसाथ आ सकते हैं। मिडिल ईस्ट में रूस और चीन के अपने-अपने हित जुड़े हुए हैं। दोनों ही देश इस इलाके में अमेरिकी दखलअंदाजी पर विरोध जताते रहे हैं।

अभी हाल ही में खबर आई थी कि ईरान, रूस और चीन की नौसेना हिंद महासागर के उत्तरी हिस्से में नेवल एक्सरसाइज करने वाली है। ईरान ने इस नेवल एक्सरसाइज में हिस्सा लेने की पुष्टि की थी। इस नेवल एक्सरसाइज को मॉस्को और बीजिंग के साथ ईरान के बढ़ते सैन्य सहयोग की तरह देखा जा रहा था।

पिछले कुछ वर्षों में चीन और रूस के नौसेना के अधिकारी भी ईरान की यात्रा पर जाते रहे हैं। हालांकि इस एक्सरसाइज को भी इलाके में स्थायी शांति की कोशिश बहाली के तौर पर बताया जा रहा था।

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