गजब गांव की अजब निशानियां, रामायण-महाभारत में भी मौजूद हैं अंश

इसके साथ ही चौक-चौराहे और सार्वजनिक जगहों पर बीड़ी, पान, सुपारी, शराब आदि के प्रयोग पर 500 रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। गरिफेमा ने नगालैंड में अन्य गांवों के लिए ही नहीं बल्कि देश के दूसरे हिस्से के लिए भी उदाहरण पेश किया है।

Manali Rastogi
Published on: 4 May 2023 3:55 PM GMT
गजब गांव की अजब निशानियां, रामायण-महाभारत में भी मौजूद हैं अंश
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गजब गांव की अजब निशानियां, रामायण-महाभारत में भी मौजूद हैं अंश

लखनऊ : कहते हैं भारत का दिल शहर में नहीं बल्कि यहां के गांव में बसता है इसीलिए भारत को हमेशा से ही गांवों का देश कहा जाता है। अनेकता में एकता यहां की विरासत है लेकिन यहां कई ऐसे गांव हैं, जो अलग-अलग वजह से चर्चा में बने रहते हैं।

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यहां हर जगह कोई न कोई अजब-गजब चीजें मिल ही जाएंगी जो अपने अंदर कई राज समेटे हुए हैं। अगर आप भी कुछ अलग तरह का ट्रेवल एक्सपीरियंस लेना चाहते हैं तो एक बार इन गांवों में जरूर जाना चाहेंगे जहां कुछ हट कर देखनें को मिलेगा।

जहां कुछ भी छुआ तो लगता है जुर्माना

भारत में एक ऐसा गांव भी है जहां बाहर से आने वाले लोगों ने इसका कुछ भी छुआ तो उस पर जुर्माना लगता है। इसका नाम है मलाणा है। यह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के अति दुर्गम इलाके में स्थित है। यहां के लोग खुद को सिकंदर का वंशज मानते है। यह इकलौता है जहां पर सम्राट अखबर की पूजा होती है।

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इसकी विचित्र पंरपराओे के कारण यहां हर साल हजारों संख्या में टूरिस्ट आते हैं लेकिन वो यहां कि कोई चीज नही छू सकते है अगर छुआ तो 1,000 से 25,000 तक का जुर्माना लगता है जो हर जगह बोर्ड में लिखा हुआ है। अगर किसी को दुकान से कुछ लेना है तो उसे दुकानदार खुद दे देगा और पैसे दुकान के बाहर ही रख देने होते हैं।

लड़कों को माना जाता है दुर्भाग्यशाली

भारत के मेघालय राज्य में स्थित मावलीनांग में लड़कों को दुर्भाग्यशाली माना जाता है। इस में आदिम जनजाति खासी लोग रहते हैं। जिनकी आबादी लगभग 500 लोगों की है। इस गांव की संस्कृति ही ऐसी है की टूरिस्ट यहां खींचें चले आते हैं। यहां लडकियां एक तरह से राज करती हैं क्योंकि यहां पुरुष प्रधानता का नाम नहीं है। यहां सिर्फ महिलाओं की ही सत्ता चलती है।

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यहां बच्चे अपने नाम के आगे मां का सरनेम लगाते हैं। यहां लडकियां परिवार की संपदा की वारिस होती हैं। यहां महिलाओं को किसी भी बात की कोई रोकटोक नहीं और न ही यहां परम्पराओं की कोई बेड़ियां ही हैं। खासी जनजाति की महिलाओं को अपनी पसंद के लड़के से शादी करने की पूरी आजादी होती है और कोई भी लड़की अपनी मर्जी से तलाक ले सकती है।

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घरों में एक भी दरवाजा नहीं

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के नेवासा तालुका में शनि शिंगणापुर भारत का एक ऐसा गांव है जहां लोगों के घर में एक भी दरवाजा नहीं है। यहां तक कि लोगों की दुकानों में भी दरवाजे नहीं हैं। यहां पर कोई भी अपनी बहुमूल्य चीजों को ताले-चाबी में बंद करके नहीं रखता फिर भी आज तक कभी कोई चोरी नहीं हुई।

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गांव जहां फ्री में मिलता है दूध-दही

आज जब इंसानियत लगभग खो सी गई है और लोग किसी को पानी तक नहीं पूछते। ऐसे में भारत का एक गांव ऐसा भी है जहां दूध-दही जैसी चीजें लोगों को मुफ्त में दे दी जाती हैं। गुजरात के धोकड़ा गांव में लोग कभी भी दूध या उससे बनने वाली चीजों को बेचते नहीं हैं, बल्कि मुफ्त में दे देते हैं। ऐसा केवल उनके लिए होता है, जिनके पास अपनी गाय या भैंसें नहीं हैं।

यह है मंदिरों का गांव

भारत में ऐसा गांव भी है जहां पर नजर घुमाओ वहां पर मंदिर ही नजर आएगें। जी हां, झारखंड राज्य के दुमका जिले में शिकारीपाड़ा के पास बसे एक छोटे से गांव मलूटी में 108 प्राचीन मंदिर थे जो ठीक ढंग से संरक्षण न हो पाने के कारण 72 ही रह गए हैं।

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यह मंदिर छोटे-छोटे लाल सुर्ख ईटों से बने हैं और जिनकी ऊंचाई 15 फीट से लेकर 60 फीट तक है। इन मंदिरों की दीवारों पर रामायण-महाभारत के दृ़श्यों का चित्रण भी बेहद खूबसूरती से किया गया है। इस गांव को 'गुप्त काशी' भी कहा जाता है।

देवभूमि के इस गांव में रहती है भूतों की बटालियन

उत्तराखंड में चंपावत जिले का एक गांव है स्वाला। बताया जाता है कि यह गांव 63 साल पहले आठवीं बटालियन की पीएसी की एक गाड़ी के गिरने बाद वीरान हो गया था। किसी टाइम पर आबादी से भरे इस गांव में आज यह आलम है कि गांव वीरान होने के साथ-साथ गांव का नाम भी बदल गया है।

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अब इस गांव को अब ‘भूत गांव’ के नाम से जाना जाता है 1952 में पीएसी की एक गाड़ी के गिरने के बाद से इस गांव की तकदीर और नाम दोनों को बदल गए। चंपावत जिले से 30 किलोमीटर पहले वीरान पड़ा गांव स्‍वाला भुतहा हो गया है।

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घटना स्थल पर लगा मार्बल का बोर्ड बताता है कि कभी यहां की पहाड़ी से सेना की गाड़ी गिरी थी इस गाड़ी में पीएसी के आठ जवान थे। इन सभी की खाई में गिरने से मौत हो गई थी। लोगों का कहना है कि गाड़ी गिरने के बाद जब जवान अपनी जान बचाने के लिए चीख रहे थे उसी के पास के बसे स्वाला गांव के लोगों ने मदद की गुहार लगा रहे घायल जवानों से लूटपाट की।

करते रहे लूटपाट

घायल जवान पानी-पानी के लिए चीख-पुकार मचाते रहे और ग्रामीण लूटपाट करते रहे। इस वजह से उन आठ पीएसी जवानों की तड़प-तड़प कर मौत हो गई और जवानों की आत्‍मा गांव में भटकने लगी कहते हैं आज भी जवानों की आत्‍मा गांव में भटकती है।

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डर के चलते जहां स्वाला गांव से लोगों का पलायन हो गया है लोग अब इसे भुतहा गांव के नाम से जानने लगे हैं। जिस जगह से पीएसी के जवानों का गाड़ी गिरी थी, वहां इन जवानों की आत्मा की शांति के लिए नव दुर्गा देवी का मंदिर स्थापित कर दिया गया था, जहां हर आने और जाने वाली गाड़ी जरूर रुकती है।

यहां बोली जाती है

संस्कृत भाषा

आज के समय में हमारे देश की राजभाषा हिंदी भी पहचान के संकट से जूझ रही है, वहीं कर्नाटक के शिमोगा शहर से कुछ ही दूरी पर एक गांव ऐसा भी है, जहां गांववाले केवल संस्कृत में ही बात करते हैं। शिमोगा शहर से लगभग दस किलोमीटर दूर मुत्तुरु अपनी विशिष्ठ पहचान को लेकर चर्चा में है। तुंग नदी के किनारे बसे इस गांव में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है। करीब पांच सौ परिवारों वाले इस गांव में प्रवेश करते ही 'भवत: नाम किम्?' (आपका नाम क्या है?) पूछा जाता है।

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'हैलो' के स्थान पर 'हरि ओम्' और 'कैसे हो' के स्थान पर 'कथा अस्ति?' आदि के द्वारा ही बातचीत होती है। बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं सभी बहुत ही सहज रूप से संस्कृत में बात करते हैं। भाषा पर किसी धर्म और समाज का अधिकार नहीं होता, तभी तो गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवार के लोग भी संस्कृत उतनी ही सहजता से बोलते हैं जैसे दूसरे लोग।

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गांव की विशेषता है कि यहां की मातृभाषा संस्कृत हैं और काम चाहे कोई भी हो संस्कृत ही बोली जाती है। जैसे इस गांव के बच्चे क्रिकेट खेलते हुए और आपस में झगड़ते हुए भी संस्कृत में ही बातें करते हैं। गांव में संस्कृत में बोधवाक्य लिखा नजर आता है। 'मार्गे स्वच्छता विराजते। ग्रामे सुजना: विराजते।' मतलब सड़क पर स्वच्छता होने से यह पता चलता है कि गांव में अच्छे लोग रहते हैं। कुछ घरों में लिखा रहता है कि आप यहां संस्कृत में बात कर कर सकते हैं। इस गांव में बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में होती है।

यह गांव कहलाता है ‘मिनी लंदन’

झारखंड की राजधानी रांची से उत्तर-पश्चिम में करीब 65 किलोमीटर दूर स्थित एक कस्बा गांव है मैक्लुस्कीगंज। एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए बसाई गई दुनिया की इस बस्ती को मिनी लंदन भी कहा जाता है। पश्चिमी संस्कृति के रंग-ढंग और गोरे लोग होने के कारण इसे लोग मिनी लंदन कहने लगे।

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इंसानों की तरह मैकलुस्कीगंज को भी कभी बुरे दिन देखने पड़े थे। यहां के लोग उस दौर को भी याद करते हैं जब एक के बाद एक एंग्लो-इंडियन परिवार ये जगह छोड़ते चले गए। कुछ 20-25 परिवार रह गए, बाकी ने शहर खाली कर दिया। इसके बाद तो खाली बंगलों के कारण भूतों का शहर बन गया था मैकलुस्कीगंज, लेकिन अब कुछ गिने-चुने परिवार मैकलुस्कीगंज को आबाद करने में जुटे हैं। जो सब एक नए मैकलुस्कीगंज की ओर मिनी लंदन को ले जा रहे हैं।

ये है हमशक्लों का गांव

केरल के मलप्पुरम जिले में स्थित कोडिन्ही को जुड़वों के गांव के नाम से जाना जाता है। यहां पर वर्तमान में करीब 350 जुड़वां जोड़े रहते हैं, जिनमें नवजात शिशु से लेकर 65 साल के बुजुर्ग तक शामिल है। विश्व स्तर पर हर 1000 बच्चो पर 4 जुड़वां पैदा होते हैं, एशिया में तो यह औसत 4 से भी कम है, लेकिन कोडिन्ही में हर 1000 बच्चों पर 45 बच्चे जुड़वां पैदा होते हैं।

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हालांकि, यह औसत पूरे विश्व में दूसरे नंबर पर, लेकिन एशिया में पहले नंबर पर आता है। विश्व में पहला नंबर नाइजीरिया के इग्बो-ओरा को प्राप्त है, जहां यह औसत 145 है। मुस्लिम बहुल कोडिन्ही की आबादी करीब 2000 है। इसमें घर, स्कूल, बाजार हर जगह हमशक्ल नजर आते हैं।

कहते है भगवान का अपना बगीचा

हमारा देश सफाई के मामले में बहुत पीछे है लेकिन हमारे देश में एक ऐसा गांव है जो एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गांव है। इस गांव को भगवान का अपना बगीचा कहते है। यह गांव है मावल्यान्नॉंग गांव। खासी हिल्स डिस्ट्रिक्ट का यह गांव मेघालय के शिलॉंन्ग और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से 90 किलोमीटर दूर है। सफाई के साथ-साथ यह गांव साक्षरता में भी नम्बर 1 है।

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यहां पर 95 परिवार रहते हैं जिनकी जीविका का मुख्य स्रोत सुपारी है। इतना ही नहीं यहां के ज्यादातर लोग अंग्रेजी में बात करते है। यहां लोग घर से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं।

एक ऐसा गांव जहां न तो कोई दहेज लेता, न देता

केरल के नीलांबुर गांव के एक तिहाई लोगों के पास घर नहीं था क्योंकि उनकी ज्यादातर कमाई और बचत बेटियों की शादी में दिए जाने वाले दहेज में चली जाती थी। दरअसल, नीलांबुर पंचायत में हर महीने 60 शादियां होती थीं, जिसमें 3-4 लाख रुपए सिर्फ दहेज पर खर्च होता था। इसके चलते गांव की ज्यादातर आबादी दिवालिया हो जाती थी। साल 2009 में लोगों ने तय किया कि वे अब दहेज न देंगे और न ही लेंगे।

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इसके लिए पंचायत ने चौपालें लगाईं, वर्कशॉप्स आयोजित किए, डोर-टू-डोर कैंपेन चलाया और नुक्कड़ नाटकों का भी सहारा लिया। इसका असर यहां के लोगों में भी देखने को मिला। कुछ ही समय में पूरा गांव दहेज मुक्त हो गया। अगले दो सालों में नीलांबुर को देख आसपास के गांवों ने भी दहेज प्रथा को तिलांजलि दे दी। स्वयंसेवी संस्था ‘Dump dowry’ ने भी इलाके में बहुत काम किया। संगठन के चलते महंगी शादियां सामूहिक शादियों में तब्दील हो गईं।

170 सालों से वीरान है

भारत के कई शहर अपने दामन में कई रहस्यमयी घटनाओं को समेटे हुए हैं। ऐसी ही एक घटना है राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गांव की। यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा है। कुलधरा के हजारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली कर के चले गए थे और जाते-जाते शाप दे गए थे कि यहां फिर कभी कोई नहीं बस पाएगा तब से यह गांव वीरान पड़ा है।

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कहा जाता है कि यह रूहानी ताकतों के कब्जे में है, कभी एक हंसता-खेलता यह आज एक खंडहर में तब्दील हो चुका है। पर्यटन स्थल में बदल चुके कुलधरा में घूमने आने वालों के मुताबिक यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है। उन्हें वहां हर पल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आस-पास चल रहा है।

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बाजार के चहल-पहल की आवाजें आती हैं, महिलाओं के बात करने, उनकी चूडिय़ों और पायलों की आवाज हमेशा ही वहां के माहौल को भयावह बनाते हैं। प्रशासन ने इसकी सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते हैं, लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहीं करता है।

जो हर साल कमाता है 1 अरब रुपए

यूपी का एक गांव अपनी एक खासियत की वजह से पूरे देश में पहचाना जाता है। शायद आप इसको नही जानते होगे लेकिन इसने देश के कोने-कोने में अपने झंडे गाड़ दिए हैं। इस गांव का नाम है सलारपुर खालसा जो अमरोहा जिले के जोया विकास खंड क्षेत्र का एक छोटा सा गांव है। इसकी जनसंख्या लगभग 3,500 है।

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इसके फेमस होने का कारण टमाटर है। यहां टमाटर की खेती बड़े पैमाने पर होती है। देश का शायद ही कोई कोना होगा, जहां पर सलारपुर खालसा की जमीन पर पैदा हुआ टमाटर न जाता हो।

यह है भारत का तंबाकू मुक्त गांव

नगालैंड की राजधानी कोहिमा के नजदीक गरिफेमा देश का पहला ‘तंबाकू मुक्त गांव’ है। कोहिमा के निकट गरिफेमा ग्राम्य परिषद में प्रधान सचिव आर बेनचिलो थोंग ने वर्ल्ड नो टोबैको डे के मौके पर साल 2014 में इसकी घोषणा की थी।

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थोंग ने कहा- कि गरिफेमा ग्राम्य परिषद, विलेज विजन सेल और गांव के स्टूडेंट यूनियन के द्वारा उठाए गए कदम का यह परिणाम है। गांव में एक संकल्प लिया गया था कि तंबाकू या शराब पीकर शांति में खलल करने वालों पर 1000 रुपए जुर्माना लगाया जाएगा।

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इसके साथ ही चौक-चौराहे और सार्वजनिक जगहों पर बीड़ी, पान, सुपारी, शराब आदि के प्रयोग पर 500 रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। गरिफेमा ने नगालैंड में अन्य गांवों के लिए ही नहीं बल्कि देश के दूसरे हिस्से के लिए भी उदाहरण पेश किया है। यहां के ग्रामीणों से कड़ाई से इसका पालन करने को कहा गया है।

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