ऋषि गंगा त्रासदी का यूपी में क्यों है असर, जानें अलकनंदा का इतिहास

अलकनन्दा नदी गंगा की सहयोगी नदी हैं। इस नदी का प्राचीन नाम विष्णुगंगा उद्गम संतोपंथ ग्लेशियर से हुआ है। यह संतोपंथ ताल (छीर सागर) के अलकापुरी से निकली है।

Update:2021-02-07 22:48 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

उत्तराखंड के चमोली में आज जोशीमठ के पास हिम ग्लेशियर फटने से रिशी गंगा नदी में आए सैलाब से उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से में बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो गया है। जबकि बद्रीनाथ के पास से अलकनंदा निकलती है। ऐसे में हमारे लिए नदियों उद्गम स्थल उनका मार्ग और गंगा में क्यों बाढ़ आयी ये जानना जरूरी हो गया है।

आइये हम आपको बताते हैं देवभूमि से निकलने वाली नदियों का इतिहास भूगोल।

मोटे तौर पर यह जान लें कि अलकनन्दा नदी गंगा की सहयोगी नदी हैं। इस नदी का प्राचीन नाम विष्णुगंगा उद्गम संतोपंथ ग्लेशियर से हुआ है। यह संतोपंथ ताल (छीर सागर) के अलकापुरी से निकली है। हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक अलकापुरी एक पौराणिक नगर है। यह यक्षों के स्वामी, धन के देवता कुबेर की नगरी है। महाभारत में इस नगरी का उल्लेख यक्षों की नगरी के रूप में आता है। इस नगरी की तुलना देवों के राजा इंद्र की राजधानी से की जाती है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में अलकापुरी का उल्लेख एवं वर्णन किया है। ऐसी अलकापुरी हिमालय में कैलास पर्वत के निकट अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।

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हो सकता है कभी कैलाश पर्वत के निकट किसी पर्वतीय जाति अथवा यक्षों की नगरी का अस्तित्त्व रहा हो। कवि ने उत्तरमेघ के प्रारंभ में जो वर्णन दिया है वह कुछ काल्पनिक किन्तु कुछ सीमा तक तथ्य पर आधारित है।

अलकनंदा गंगा की सहायक नदी

कालिदास ने गंगा नदी का उल्लेख अलकापुरी के निकट ही किया है, जबकि वर्तमान भौगोलिक स्थिति के अनुसार भी गंगा का एक स्रोत - अलकनंदा नदी भी कैलास पर्वत के निकट ही प्रवाहित होती है। यह अलकनंदा गंगा की ही सहायक नदी है।

वैसे तो गंगा के चार नामों में से एक अलकनंदा भी है। उत्तराखंड के चार धामों में गंगा के कई रूप और नाम हैं। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा। यह उत्तराखंड में संतोपंथ और भगीरथ खरक नामक हिमनदों से निकलती हैं। गंगा जहां से निकलती है उस स्थान को गंगोत्री कहा जाता है।

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अलकनंदा नदी घाटी में लगभग 195 किमी तक बहती है। देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है और इसके बाद अलकनंदा नाम समाप्त होकर केवल गंगा नाम रह जाता है।

चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी जिलों से गुजरती है अलकनंदा

अलकनंदा चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी और पौड़ी जिलों से होकर गुज़रती है। चमोली में अलकनंदा व ऋषि गंगा का संगम होता है। इसे कुछ दूर तक रिशी गंगा कहा जाता है। गंगा के पानी में अलकनंदा का योगदान भागीरथी से अधिक है।

हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ बद्रीनाथ अलकनंदा के तट पर ही है। तिब्बत की सीमा के पास केशवप्रयाग नामक स्थान पर यह आधुनिक सरस्वती नदी से मिलती है। केशवप्रयाग बद्रीनाथ से कुछ ऊँचाई पर स्थित है।

अलकनन्दा नदी कहीं बहुत गहरी, तो कहीं उथली है, नदी की औसत गहराई 5 फुट (1.3 मीटर) और अधिकतम गहराई 14 फीट (4.4 मीटर) तक कही जाती है।

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अलकनंदा की पाँच सहायक नदियाँ हैं जो गढ़वाल क्षेत्र में पांच अलग अलग स्थानों पर अलकनंदा से मिलकर पंच प्रयाग बनाती हैं। जैसे (केशवप्रयाग) यह सरस्वती और अलकनंदा नदी का संगम स्थान है। सरस्वती नदी देवताल झील से निकलती है।

बद्रीनाथ धाम में ऋषिगंगा-अलकनंदा का समागम

बद्रीनाथ हिंदुओं के प्रमुख चारधामों में से एक है। जहां ब्रह्म कपाल स्थित है। बद्रीनाथ चमोली जिले में स्थित है। यहीं पर ऋषिगंगा अलकनंदा से मिलती है। ऋषिगंगा का उद्गमस्थल बद्रीनाथ के समीप नीलकंठ पर्वत है। (गोविंदघाट) यहां पर लक्ष्मण गंगा अलकनंदा से मिलती है लक्ष्मण गंगा का उद्गमस्थल हेमकुंड के पास है।

विष्णु प्रयाग यहां पर पश्चिमी धौली गंगा अलकनंदा से मिलती है। पश्चिमी धौलीगंगा का उद्गमस्थल धौलागिरी श्रेणी का कुनलूग छेत्र है। पश्चिमी धोलीगंगा की सहायक नदी रिशी गंगा है। विष्णुप्रयाग तक अलकनंदा को विष्णुगंगा के नाम से जाना जाता है। विष्णुप्रयाग तक धोलीगंगा की कुल लंबाई 94 किलोमीटर है।

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नंद प्रयाग यहां नंदाकिनी अलकनंदा से मिलती है। नंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल त्रिशूल पर्वत के पास स्थित नंदाघुंगती नामक स्थान है। कर्ण प्रयाग यहां पिंडर नदी अलकनंदा से मिलती है। पिंडर नदी बागेश्वर में स्थित पिंडारी ग्लेशियर से निकलती है। इसे कर्णगंगा भी कहा जाता है। पिंडर की प्रमुख सहायक नदी आटागाड़ है। कर्णप्रयाग तक पिंडर नदी की कुल लंबाई 105 किलोमीटर है।

अलकनंदा की सबसे बड़ी सहायक नदी मंदाकिनी

रूद्र प्रयाग जहाँ मंदाकिनी अलकनंदा से मिलती है। यह अलकनंदा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह केदारनाथ के पास मंदरांचल श्रेणी से निकलती है। मधुगंगा, वाशुकी या सोनगंगा मंदाकिनी की सहायक नदियां हैं। मंदाकिनी एकमात्र ऐसी नदी है जो अलकनंदा में दाहिनी तरफ से आकर मिलती है। रुद्रप्रयाग तक मंदाकिनी की कुल लंबाई 72 किमी है।

देव प्रयाग जहाँ भागीरथी अलकनंदा से मिलती है। देवप्रयाग टिहरी जिले में है यहां पर अलकनंदा नदी को बहु कहा जाता है। देवप्रयाग तक अलकनंदा नदी की कुल लंबाई 195 किमी है। जल क्षमता के आधार पर अलकनंदा उत्तराखंड की सबसे बड़ी नदी है। अलकनंदा नदी का प्रवाह उत्तराखंड के तीन जिलों चमोली ,रुद्रप्रयाग तथा पौड़ी में होता है। देवप्रयाग में भागीरथी नदी में मिलने के बाद अलकनंदा का सफर खत्म हो जाता है इसके बाद इसे गंगा नदी के नाम से जाना जाता है।

अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर बसा देवप्रयाग

देव प्रयाग में श्री रघुनाथ जी का मंदिर है, जहाँ हिंदू तीर्थयात्री भारत के कोने कोने से आते हैं। देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर बसा है। यहीं से दोनों नदियों की सम्मिलित धारा 'गंगा' कहलाती है। यह टिहरी से 18 मील दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। प्राचीन हिंदू मंदिर के कारण इस तीर्थस्थान का विशेष महत्व है। संगम पर होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही इसकी भी मान्यता है।

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कहते हैं जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो ३३ करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया जो गंगा की जन्म भूमि है। भागीरथी और अलकनंदा के संगम के बाद यही से पवित्र नदी गंगा का उद्भव हुआ है। यहीं पहली बार यह नदी गंगा के नाम से जानी जाती है। गढ़वाल क्षेत्र में भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। देवप्रयाग को 'सुदर्शन क्षेत्र' भी कहा जाता है। यहां कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है।

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