भाजपा के आधे टिकट टीएमसी के बागियों को, पार्टी में नहीं थम रहा असंतोष
पार्टी के दो उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। इन दोनों का तो यहां तक कहना है कि वे भाजपा में है ही नहीं। पता नहीं पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार कैसे बना दिया। इस खुलासे के बाद पार्टी की खूब किरकिरी हुई है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की सियासी जंग में इस बार भाजपा की ओर से तृणमूल कांग्रेस को उखाड़ फेंकने का बड़ा दावा किया जा रहा है मगर इस बार के चुनाव में भाजपा ने जिन उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है उनमें करीब आधे उम्मीदवार तृणमूल कांग्रेस के बागी ही हैं। भाजपा की ओर से 289 सीटों पर पत्ते खोले जा चुके हैं और इनमें से करीब 150 उम्मीदवार ऐसे हैं जो तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं।
पार्टी के दो उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। इन दोनों का तो यहां तक कहना है कि वे भाजपा में है ही नहीं। पता नहीं पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार कैसे बना दिया। इस खुलासे के बाद पार्टी की खूब किरकिरी हुई है। बंगाल में टिकटों के बंटवारे पर भाजपा में खूब घमासान मचा हुआ है और अनेक स्थानों पर कार्यकर्ताओं ने खुलकर अपनी नाराजगी जताई है। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि बरसों से पार्टी में काम करने वाले लोगों की अनदेखी की गई है।
एक ओर हमला, दूसरी ओर दागियों को टिकट
चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा लगातार तृणमूल कांग्रेस पर हमले कर रही है। भाजपा का आरोप है कि तृणमूल के दस साल के शासन के दौरान भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला और पार्टी के नेता हिंसक गतिविधियों में लिप्त रहे। दूसरी ओर भाजपा की ओर से कई ऐसे नेताओं को टिकट दिया गया है जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और उनके खिलाफ जांच भी चल रही है।
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वैसे इस बाबत सवाल किए जाने पर भाजपा नेताओं का तर्क है कि अभी किसी के खिलाफ आरोप नहीं साबित हुआ है। एक और तृणमूल कांग्रेस पर हमले और दूसरी ओर हाल में तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वालों को टिकट, यह बात तमाम लोगों के गले के नीचे नहीं उतर रही है।
साहा को टिकट देने पर किरकिरी
भाजपा ने गुरुवार को पार्टी के 157 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी। इस सूची में दो ऐसे लोगों के नाम भी शामिल थे जिन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। इन दोनों का कहना है कि न तो उन्होंने भाजपा ज्वाइन की है और न तो उन्होंने टिकट के लिए कोई दावेदारी की थी।
पार्टी की सूची में काशीपुर बेलगछिया सीट से तरुण साहा का नाम घोषित किया गया है। तरुण साहा की पत्नी माला साहा टीएमसी से विधायक है। साहा ने खुद को टीएमसी कार्यकर्ता बताते हुए कहा कि मैंने टीएमसी से इस्तीफा नहीं दिया है। मुझे नहीं पता कि मेरा नाम भाजपा की सूची में कैसे शामिल कर लिया गया। मैंने इस बाबत टीएमसी नेतृत्व को भी सूचित कर दिया है।
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भाजपा में गए बिना भी दे दिया टिकट
साहा की तरह ही चौरंगी से शिखा मित्रा के मामले ने भी भाजपा की खूब किरकिरी कराई है। शिखा मित्रा को कोलकाता की चौरंगी सीट से टिकट देने की घोषणा की गई। शिखा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्वर्गीय सोमेन मित्रा की पत्नी हैं। टिकट घोषित किए जाने के बाद शिखा ने चुनाव लड़ने से मना करते हुए कहा कि मैंने भाजपा ज्वाइन ही नहीं की है।
उन्होंने कहा कि भाजपा के टिकट पर मेरे चुनाव लड़ने का कोई सवाल ही नहीं है। शिखा ने पिछले दिनों में टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले शुभेंदु अधिकारी से मुलाकात की थी और उसके बाद ही उनके भाजपा में शामिल होने की खबरें उड़ी थीं। हालांकि शिखा ने अब भाजपा में जाने से साफ तौर पर मना कर दिया है।
ऐसी सीटों पर उतारे मुस्लिम प्रत्याशी
भाजपा की सूची में आठ मुस्लिम उम्मीदवारों के नाम भी शामिल किए गए हैं। इन उम्मीदवारों को ऐसी सीटों पर चुनाव मैदान में उतारा गया है जहां पार्टी के जीतने की संभावना काफी कम है। इनमें से सागरदिघी से माफुजा खातून को छोड़कर बाकी सभी ऐसे चेहरे हैं जिन्हें अधिकांश लोग नहीं जानते।
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माफुजा भाजपा के टिकट पर 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं। जानकारों का कहना है कि ऐसा करके पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह मुस्लिम विरोधी पार्टी नहीं है। हालांकि इससे भी पार्टी को ज्यादा फायदा होता नहीं दिखता।
पार्टी में नहीं थम रहा घमासान
भाजपा में टिकट बंटवारे को लेकर शुरू हुआ घमासान अभी शांत नहीं पड़ा है। अनेक चुनाव क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी ने चार सांसदों और 11 विधायकों को भी चुनाव मैदान में उतारा है। इनके अलावा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकुल राय और उनके बेटे शुभ्रांशु राय को भी टिकट दिया गया है।
टिकट बंटवारे से नाराज तमाम कार्यकर्ताओं ने विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन करके अपना विरोध जताया है। इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई है। पार्टी नेतृत्व कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने में जुटा हुआ है। अब देखने वाली बात यह होगी कि नेतृत्व को इस काम में कहां तक कामयाबी मिलती है।
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