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डकैत या देवता! आदमी से डकैत कैसे बन जाता है इंसान

डकैतों का इतिहास बहुत पुराना रहा है । यहां की भौगोलिक स्थिति अपराधियो के लिए काफी अनूकूल है। प्रारम्भ से ही आज भी यह क्षेत्र जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण डकैतों की शरणस्थली रहा है। दस्यु समस्या होने के कारण यहां का विकास काफी प्रभावित हुआ। बता दें कि बुन्देलखण्ड का चित्रकूट जिला डकैतों के गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है।

Harsh Pandey
Published on: 23 Oct 2019 5:26 PM GMT
डकैत या देवता! आदमी से डकैत कैसे बन जाता है इंसान
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अनुज हनुमत, लखनऊ: 'डकैत' शब्द का जिक्र आते ही लोगो के मन में स्वतः ही खौफ और आतंक का तस्वीर उभर आती है । उत्तर प्रदेश के दो हिस्से डकैतो के लिए खासकर जाने जाते रहे हैं - 'चंबल और बुन्देलखण्ड'। चंबल तो एक समय डकैतों का गढ़ हुआ करता था लेकिन अब डकैतो का ये गढ़ समाप्त हो चुका है। मौजूदा समय में सिर्फ बुन्देलखण्ड ही डकैतों की शरणस्थली है। बुन्देलखण्ड में धर्मनगरी चित्रकूट का पाठा इलाका डकैतो के आतंक के लिए जाना जाता है ।

यहां डकैतों का इतिहास बहुत पुराना रहा है । यहां की भौगोलिक स्थिति अपराधियो के लिए काफी अनूकूल है। प्रारम्भ से ही आज भी यह क्षेत्र जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण डकैतों की शरणस्थली रहा है। दस्यु समस्या होने के कारण यहां का विकास काफी प्रभावित हुआ। बता दें कि बुन्देलखण्ड का चित्रकूट जिला डकैतों के गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है।

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ये बड़ा दुखद विषय है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कर्मस्थली चित्रकूट जो समूचे विश्व में धर्मनगरी के नाम से विख्यात है, वो पिछले चार पांच दशक से लगातार डकैतो के आतंक के लिए जाना जाता रहा है।

चित्रकूट का पाठा इलाका मुख्य रूप से डकैतों की शरणस्थली रही है। यहां मुख्य रूप से दस्यु प्रभावित क्षेत्र के थानों में आदिवासी (कोल) जाति के लोगों का बाहुल्य है। इसके अतिरिक्त अन्य जातियां भी मिश्रित रूप से आवासित हैं। दस्यु गिरोहों में प्रत्येक जाति के अपराधियो का वर्चस्व रहा है, मुख्य रूप से पटेल, कोल एवं यादव जाति के अपराधियों की सक्रियता रही है जिन्हें जातीयता के आधार पर सरंक्षण प्राप्त हो रहा है। दस्यु प्रभावित क्षेत्र में शिक्षा का अभाव होने के कारण लोग भयवश एवं जातीयता के आधार पर गैंगों में शामिल होते रहे तथा सरंक्षण देते रहे हैं।

बुन्देलखण्ड के पिछले 40 वर्ष के इतिहास में तीन पीढ़ियों को सिर्फ एक ही शब्द सबसे ज्यादा सुनने को मिला और वो है -'डकैत'। लेकिन इस पूरी समयावधि में डकैतो के स्वरुप में खासा परिवर्तन देखने को मिला है।

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आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पहले उच्च वर्ग के कुछ लोग अपना दबंगपन कायम रखने के लिए शौकिया डकैत पैदा किया करते थे। इस मामले में धर्मनगरी चित्रकूट का नाम सबसे पहले आता है। यहां तेंदूपत्ता से लेकर खैर के पेड़, कोयले से लेकर बालू खनन तक के व्यापार में ऐसे उच्च वर्ग के लोगों ने खूब लूट की और वो भी पूरी दबंगई के साथ। तेंदूपत्ता से बीड़ी और खैर से कत्था बड़े पैमाने पर बनाया जाता है। इन दोनों की तुड़ाई कराने वाले ठेकेदारों में आपस में काफी तनातनी रहा करती थी और उससे निजात पाने के लिए ही बुन्देलखण्ड में सर्वप्रथम डकैत प्रथा की शुरुआत हुई।

दादुओं की उपज...

इसके बाद अपना-अपना प्रभुत्व बनाये रखने के लिए डकैत पालने की शुरुआत हुई। इसलिए चित्रकूट जिले के पाठा क्षेत्र को दादुलैण्ड की धरती भी कहा जाने लगा क्योंकि यहां के डकैत कोई और नही बल्कि यहां मौजूद दादुओं की ही उपज थे, धीरे धीरे समय बदला और डकैतो ने इन तमाम दादुओ से इतर पाठा के बीहड़ो में खुद की स्वतंत्र सत्ता स्थापित की । इन्ही डकैतो ने अपने पालनहारो को ही परेशान करना शुरू कर दिया।

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डकैत...

'डकैत' शब्द का जिक्र आते ही लोगो के मन में स्वतः ही खौफ और आतंक की भयावह तस्वीर उभरने लगती है। 'चंबल घाटी' और 'पाठा के बीहड' डकैतों का एक लंबा इतिहास खुद में समेटे हुए हैं। इन स्थानों में आज भी डकैतों का खौफ और उनका आतंक बदस्तूर जारी है। इन डकैतों के खिलाफ पुलिस की कार्यवाही जितनी चर्चा में रही उतना ही सन्देह के घेरे में भी।

दरअसल, जब हम बुन्देलखण्ड में डकैतों के इतिहास के विषय में बात करते हैं तो चित्रकूट जिले का नाम सर्वप्रथम सामने आता है यहां पाठा का बीहड़ डकैतो के आतंक का गढ़ रहा है। सच तो यह है कि विन्ध्य पर्वत-श्रंखलाओं से सटा बुन्देलखण्ड का प्राय: भू-भाग सफेदपोश नेताओं और सामंतशाहों की भीषण मोर्चाबन्दी के पीछे आज भी डकैतों और अन्य असामाजिक तत्वों के लिए अभयारण्य बना हुआ है।

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बुन्देलखण्ड डकैतों का गढ़...

सन 1981 से लेकर अब तक बुन्देलखण्ड क्षेत्र में गया कुर्मी , राजा रगौली , शिवकुमार पटेल उर्फ़ ददुआ , सूरजभान गैंग , रम्पा उर्फ़ रामपाल , अम्बिका पटेल उर्फ़ ठोकिया , गुड्डा उर्फ़ मइयादीन पटेल , सदाशिव उर्फ फौजी, खरदूषण, जगतपाल पासी, बुद्दा नाई, नथुवा, संतोषा यादव, धर्मा यादव, चुनुवा कहार, कलुवा दलित, हनुमान कुर्मी, राजेन्द्र गोसाई, मतोला, तिजोला, रजवा, रामकरण काछी, रामकरण आरख, कोदा काछी, दिनेश कोल, राजू कोल, छोटा पटेल, छोटा कोल, रामस्वरूप पटवा, कमलेश, दीपक पटेल, सुन्दर पटेल उर्फ रागिया , रमेश उर्फ़ गोपाल लोहार ,रोशनलाल शर्मा , शिवसागर दुबे , रज्जू चमार ,मुन्नी लाल उर्फ़ खड्ग सिंह , रहमत अली उर्फ़ खान , अशोक कोल , ललित पटेल , गोप्पा यादव , बबली कोल आदि के अन्तर्राज्यीय तथा जिला स्तरीय गिरोहों के अलावा कल्लू यादव, मुन्ना यादव, मुन्ना कोरी, कमतू कोरी, किशोरी बेडिया, राजू डोम, भुण्डा गर्ग, शिवशंकर पंडित, गुलबदन पंडित, रघुनाथ मिश्रा, पप्पू यादव, संतू लोध, रंपा यादव, शंकर केवट, उमर केवट, नत्थू केवट, चेलवा, गोपलिया, सीताराम यादव जैसे लोगों को भी बीहड़ का रास्ता अपनाना पड़ा और आज इनकी गिनती आतंक और खौफ के आकाओं के रूप में होती है।

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आपको बता दें कि सबसे खास बात ये है कि इनमें से ज्यादातर अनुसूचित और पिछड़ी जाति के लोग हैं। चार दशक के समय का पूरा आंकलन करने पर सबसे बड़ी बात जो सामने आई वो ये कि पहले ठाठगिरी और ददुअई के चलते आपस में वर्चस्व की लड़ाई में जीत हासिल करने के उद्देश्य से उच्च वर्गों द्वारा डकैतो को पैदा किया गया लेकिन अब मौजूदा समय में बेरोजगारी , दबंगों द्वारा उत्पीड़न , नेताओ की राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की लोलुपता के चलते छोटी छोटी जातियों को डकैती के दलदल में धकेलना का काम किया है।

अब के मौजूदा डकैत किसी भी विशेष सामाजिक परिस्थिति की उपज नही हैं। अब सिर्फ निजी स्वार्थों और सफेदपोशों की सत्ता प्राप्ति तक का माध्यम बनकर रह गए हैं 'धर्मनगरी चित्रकूट के डकैत' ....।

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मौजूदा समय में धर्मनगरी चित्रकूट में जिस तिकड़ी (दस्यु बबुली कोल -दस्यु ललित पटेल -दस्यु गोप्पा यादव) का आतंक चल रहा है उनमें से दस्यु ललित पटेल को अभी हाल ही में एमपी पुलिस ने एक मुठभेड़ में मार गिराया तो दूसरे डकैत दस्यु गोप्पा यादव को एसटीएफ और चित्रकूट पुलिस के संयुक्त आपरेशन में गिरफ्तार कर लिया गया था।

विगत दिनों 5 लाख 35 हजार का इनामी दस्यु बबुली कोल और उसका साथी लवलेश कोल भी आपसी गैंगवार मारा गया था । ये डकैत सूबे का सबसे मंहगा डकैत था ।

चित्रकूट के इतिहास में कुछ ऐसे डकैत रहे जिनका खौफ और आतंक आज भी लोगो के बीच ज़िंदा हैं। कुछ ऐसे रहे जो सबसे अलग रहे-

सन् 1982 में वीपी सिंह के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते उनके अग्रज न्यायमूर्ति सीपीएन सिंह की दस्यु जगतपाल पासी द्वारा हत्या कर दी गई थी, जिससे उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। सन् 1984 में केन्द्र सरकार द्वारा बीहड़ सुधार योजना से सम्बद्घ मसौदे को अन्तिम रूप प्रदान किया गया।

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सन 1975 में ददुआ ददुआ ने डकैत बनकर बीहड़ में कदम रखा और कुछ ही समय में बुंदेलखंड के बच्चे-बच्चे की जुबान पर ददुआ का नाम था 80 के दशक तक लोगों में खौफ का पर्याय था। एक वक़्त उसने चित्रकूट के मऊ थाना अंतर्गत रामू का पुरवा गांव में आधा दर्जन लोगों को लाइन से खड़ा कराकर दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया था।

चित्रकूट जनपद में ही ददुआ पर अपहरण फिरौती व हत्या के 150 से अधिक मुकदमें दर्ज थे। इसके अलावा मध्य प्रदेश के रीवा सतना सहित फतेहपुर कौशाम्बी इलाहाबाद में भी चार दर्जन से अधिक मुकदमें ददुआ पर दर्ज थे।

खाकी किलर नाम से पहचाना जाने वाला दस्यु अम्बिका पटेल उर्फ़ ठोकिया , पुलिस पर हमले करने के लिए शुरू से ही कुख्यात रहा है। जब-जब गिरोह ने हमला किया है पुलिस को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।

ऐसे हमलों में गिरोह लगभग एक दर्जन एसटीएफ और पुलिस जवानों को न केवल मार चुका है बल्कि उनके हथियार भी लूटने में कामयाब रहा है। ठोकिया गिरोह ने खाकी पर सबसे बड़ा हमला 22 जुलाई 2007 में फतेहगंज थाना क्षेत्र के कोल्हुवा जंगल में किया।

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ददुआ की मौत के बाद ठोकिया से मुठभेड़ के दौरान उसके खास साथी मइयादीन को मार गिराया था। इससे खफा ठोकिया ने एसटीएफ जवानों पर हमला कर दिया था जिसमें छह एसटीएफ जवान शहीद हो गए थे और एक पुलिस मुखबिर को मारा गया था।

इस घटना से पूरा पुलिस महकमा थर्रा गया था और एडीजीपी ने खुद ठोकिया से मोर्चा लेने के लिए चित्रकूट में प्रवास किया था।

डकैत घनश्याम केवट के साथ जमौली गांव मे हुई सीधी मुठभेड़ से उत्तर प्रदेश पुलिस की असली ताकत का अंदाजा चलता है। एक डकैत मामूली राइफल के बूते आधुनिक हथियारों से लैस 500 जवानों के हाथों तब मारा गया, जब वह आईजी-डीआईजी समेत आधा दर्जन को घायल और चार को मौत के घाट उतार चुका होता है।

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धर्मनगरी चित्रकूट में दस्यु ददुआ, ठोकिया, रागिया और बलखड़िया के बाद प्रभाव में आए दस्यु सरगना ललित पटेल को दिनांक 06/08/2017 को एमपी पुलिस ने एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया था।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का आया था बयान...

आपको बता दें कि इसी वर्ष जुलाई माह की शुरुआत में ही इस डकैत ने तीन लोगों की हत्या कर जला दिया था जिसके बाद ये ज्यादा सुर्खियों में आया था। जुलाई माह के अंतिम सप्ताह में चित्रकूट के मझगवां में एक रैली को सम्बोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने कहा था कि अब चित्रकूट में डकैत रहेंगे या शिवराज।

खास बात यह रही कि इस बयान के हफ्ते भर के अंदर एमपी पुलिस ने पुलिस अधीक्षक राजेश हिडंगकर के नेतृत्व में दस्यु ललित पटेल को मार गिराया था।

परिस्थितियों ने बना दिया डकैत...

कुछ ऐसे डकैत भी रहे जिन्हें परिस्थितियों ने डकैत बनने पर मजबूर कर दिया। बाद में ये सब खौफ और आतंक के सबसे बड़े चेहरे के रूप में सामने आये...

Image result for चित्रकूट के डकैत

चार दशक के लंबे समयांतराल के बाद आज भी चित्रकूट, (बुन्देलखण्ड क्षेत्र) में हनक कायम करने की परम्परा जीवित है। बन्दूक उठा कानून के साथ आंख मिचौली खेलने वाले हर डकैत के पीछे की पृष्ठभूमि तो यही बयां करती है।

ददुआ, ठोकिया और घनश्याम केवट...

ददुआ, ठोकिया और घनश्याम केवट के डकैत बनने के पीछे दबंगो और पुलिस की संयुक्त कारस्तानी रही है। लेकिन डकैत सिर्फ डकैत होता है, उसका भूतकाल उसे न तो वर्तमान में न तक भविष्य में भगवान् नहीं बना सकता है।

उसके वर्तमान समय के कार्य ही उसका भविष्य तय करेंगे लेकिन ददुआ जैसे डकैत इसका अपवाद हैं क्योंकि आज डकैत ददुआ का मंदिर भी बना हुआ है और उसकी पूजा भी होती है।

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यह समाज के लिए नए सिरे से चिंतन करने का वक्त है कि आखिर ऐसे व्यक्ति का पूजन क्यों जिसने दशकों तक अपनी हनक से सैकड़ो हजारों लोगो का सबकुछ छीन लिया, बहरहाल ऐसी ही कुछेक व्यक्ति जिनके अव्यवस्थित वर्तमान ने उन्हें भविष्य का डकैत बना दिया।

दस्यु ददुआ....

शुरुआत में एक दबंग के इशारे पर रैपुरा पुलिस ने निर्दोष शिवकुमार को जेल भेज दिया, जो बाद में दस्यु ददुआ के रूप में उभरा, इसी प्रकार लोखरिहा गांव में अम्बिका पटेल की बहन के साथ हुए दुराचार पर जब पुलिस न्याय नहीं कर पाई तब वह ठोकिया बन बैठा।

घनश्याम केवट...

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साइकिल का पंचर बनाने वाले घनश्याम केवट की भतीजी के साथ छेड़छाड़ की घटना ने उसे डकैत 'नान केवट' बना दिया।

दस्यु ददुआ, ठोकिया व नान केवट के बाद पाठा क्षेत्र में पुलिस के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती दस्यु बबली कोल गोप्पा यादव व ललित पटेल हैं, जिनकी तिकड़ी ने पुलिस के नाक में दम कर रखा है। इनके पास दस्यु ददुआ और ठोकिया के आधुनिक हथियार भी मौजूद हैं।

पुलिस रिकार्ड खंगालने से पता चलता है कि पुलिस व इन डकैतों के मध्य हुईं अब तक की मुठभेडों में एके-56, एके-47 व एसएलआर जैसी आधुनिक राइफलों का इस्तेमाल होता रहा है।

पुलिस ने इन तीनों खूंखार डकैतों को कथित मुठभेड में ढेर करने का दावा किया है, किन्तु अब तक यह नहीं बता पाई है कि उनके आधुनिक हथियार कहां हैं?

कुछ खास तथ्य...

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घनश्याम केवट व पुलिस के मध्य 16 जून से 18 जून को 52 घंटे चली मुठभेड़ में सरकार के 52 लाख रुपये खर्च हुए। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक दस्यु सम्राट ददुआ के खात्मे तक सरकार के 100 करोड़ रूपये खर्च हुए । बुन्देलखण्ड में बेरोजगारी इस समस्या के पनपने का सबसे बड़ा कारण है ।

धर्मनगरी का हरा सोना और डकैतो के आय का स्रोत 'तेंदूपत्ता'...

प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण चित्रकूट जिले के जंगल हमेशा से हरा सोना उगलते रहे हैं। यहां अवैध खनन और वन से जुड़े माफिया तमाम हथकण्डे अपनाकर अरबपति बन गए। समूचे चित्रकूट जिले और उससे सटे मध्य प्रदेश में तेंदु पत्ता बहुतायत मात्रा मेम पाया जाता है और सरकार को इससे प्रतिवर्ष ख़ासा मुनाफ़ा भी प्राप्त होता है।

बीड़ी जिस पत्ते से तैयार की जाती है, उसी का नाम है तेंदु पत्ता। सूखी और सुलगती धरती पर इसी हरे सोने से धर्मनगरी के जंगल गुलजार रहते हैं। अकूट संपत्ति दिलाने वाला यह तेंदू पत्ता चित्रकूट जिले को ही नहीं अपितु बुंदेलखंड को एक अलग पहचान देता है।

इस क्षेत्र में व्यवसायिक रूप से भी प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। बीहड़ व पहाड़ों में उगने वाले इस तेंदु पत्ते को लेकर कभी पाठा के जंगलों में इसके तोड़ने का फरमान खूंखार डकैतों द्वारा सुनाया जाता था जो आज भी बदस्तूर जारी है।

तब जाकर प्रशासन की हिम्मत होती थी कि वह तेंदु पत्ता को तुड़वा सके। खूंखार डकैत ददुआ पत्ता तोड़ने की इजाजत दिए जाने के बदले में अच्छी खासी रकम लेता था। इस क्षेत्र में उसका इतना खौफ था कि बगैर इजाज़त पाठा के जंगल सहित पूरे बुंदेलखंड में इस पत्ते को तोड़ने के बारे में नहीं सोच सकता था।

'तेंदूपत्ता' - दस्यु गैंगों की कमाई का था मुख्य जरिया...

धर्मनगरी के इस सोने जैसी सम्पदा को कभी सफेदपोश तो कभी डकैत सभी मिलकर लूटते आये हैं। वहीं सरकार को करोड़ों-अरबों के राजस्व की क्षति भी होती थी। बीहड़ के जानकार व दस्यु गैंगों को करीब से परखने वाले सूत्र बताते हैं कि डकैत ददुआ तो यहां अपना एकक्षत्र राज कायम कर चुका था। बीहड़ में और नेता व ठेकेदार तेंदू पत्ता तोड़ने के लिए शासन-प्रशासन से नहीं बल्कि डकैतो से इजाज़त लेते थे जो आज भी बदस्तूर जारी है और बदले में उन्हे कमीशन मिलता है। यहां से इस पत्ते की तस्करी भी होती है।

उत्तर प्रदेश पुलिस के पास अब तक कोई ऐसी कार्ययोजना नहीं है, जिससे बेगुनाह इंसाफ पसन्द लोग खूंखार 'डकैत' न बनें। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि जब तक बुन्देलखण्ड में पुलिस अपनी आदत में सुधार नहीं करती, तब तक पाठा क्षेत्र में डकैत पैदा होते रहेंगे।

धर्मनगरी चित्रकूट के पाठा क्षेत्र में डकैतों के संरक्षणदाताओं में राजनेताओं की एक लम्बी फेहरिस्त है।

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कई नेता तो डकैतों के बल पर सांसद और विधायक होते रहे हैं। पाठा क्षेत्र में आर्थिक लाचारी से जूझ रहे अनुसूचित और पिछड़े वर्ग के लोग बीहड़ में क्यों कूदने को बाध्य होते हैं आला अफसरानों ने कभी विचार करने की जरूरत नहीं समझी।

पाठा: एक ऐसा क्षेत्र जहां डाकुओं को सरंक्षण देते है यहां के सफेदपोश! लेकिन पीटे जाते हैं निर्दोष ग्रामीण, अब ये पाठा क्षेत्र को प्राप्त वरदान कहिये या अभिशाप की यहां हमेशा से अगर कोई ज्यादा चर्चा में रहा है तो वो दो शख्स हैं- एक यहां का बेबस और लाचार किसान और दूसरा दशकों से खरपतवार की तरह उपज रहे डकैत।

इन दोनों की आड़ पर जमकर राजनीति की जाती रही है और शायद यही कारण है कि न तो यहां के किसानों की जिंदगी बदली और न ही यहां से डकैतों का पूर्ण रूप से सफाया हुआ। इन दिनों समूचे पाठा क्षेत्र, किसानों की बदहाल स्थिति के लिए खबरों में नहीं है बल्कि डकैतो के आतंक, सियासी जुगलबंदी और पुलिसिया कार्यवाही के लिए चर्चा में है।

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योगी सरकार...

योगी सरकार के आते ही लोगो को लगा की अब दस्यु समस्या का खात्मा होगा लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि अभी और इन्तजार करना पड़ेगा। पिछले एक महीने से पुलिस की कार्यवाही भी तेज हुई। खासकर चित्रकूट जिले के उन तमाम क्षेत्रो में जहां दस्युओं की ज्यादा समस्या है। महीने भर में डकैतों के खिलाफ कई बड़ी कार्यवाही की गई। कई बार मुठभेड़ भी हुई।

पुलिसिया कार्यवाही पर सवाल...

हालिया एक घटना ने इस दस्यु उन्मूलन में सियासी अड़चन के साथ पुलिसिया कार्यवाही को भी सिर्फ इसलिए सन्देह के घेरे में ला दिया है क्योंकि उसमें भी सियासत के हुक्मरानों को वोटबैंक की बू आ रही है। सही पूछें तो दस्यु इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों के लिए आगे कुआं है और पीछे खाईं जैसी हालत है। डकैतो को सरंक्षण नही देते तो समस्या और अगर दे दिया तो भी समस्या।

पिछले चार दशक के लंबे समय में दस्यु ददुआ से लेकर ठोकिया और बबली कोल तक के मौजूदा समय में चुनाव के दौरान इन दस्युओं से सियासत के जुड़ाव की खबरें आती रही हैं, चाहे वो समाजवादी पार्टी का शासनकाल रहा हो या बहुजन समाज पार्टी का या भाजपा या कांग्रेस का।

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इन सभी पार्टियों से जुड़े बड़े बड़े नेताओं का दस्यु कनेक्शन समय समय पर गाहे बगाहे सामने आता रहा है, खासतौर पर चुनाव के समय सबसे ज्यादा। ऐसे में आप इनके उन्मूलन की कप्लना कैसे कर सकते हैं। कुछ लोगो का तो यहां तक कहना है कि इनमे से अधिकांश दस्युओं की उपज सत्ता के संघर्ष का परिणाम है। यहां चुनाव के दौरान मूद्दे केंद्र में नहीं होते बल्कि झूठ , फरेब और दलबल ही काम आता है।

जानकारों का तो यहां तक कहना है कि अगर किसी दस्यु गैंग का सफाया होता भी है तो वह उसका सियासी उम्र पूरी होने का नतीजा है न की सरकार की कोई बड़ी कार्यवाही।

योगी सरकार के स्पष्ट आदेश...

बहरहाल, योगी सरकार के स्पष्ट आदेश हैं कि डकैतो के खिलाफ कार्यवाही में कोई भी दबाव पुलिस न महसूस करे और जल्द से जल्द उनका सफाया करे।

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लेकिन सबसे अहम प्रश्न ये है कि क्षेत्रीय स्तर पर प्रशासन के ऊपर सफेदपोशो द्वारा दस्यु उन्मूलन की कार्यवाही के नाम पर बनाये जाने वाले दबाव को, कोई भी सरकार कैसे रोक सकती है। बीते दिनों ऐसा ही एक मामला पाठा क्षेत्र से सामने आया था, जिसने देखते ही देखते प्रशासन और सियासत के हुक्मरानों को एक ही कठघरे में आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया है। जीत किसी की हो लेकिन हर आम जनमानस की ही होगी।

आपको बता दें कि दिन रात डकैतों को पकड़ने के लिए जंगलो में खाक छानने वाली पुलिस की कार्यवाही पर तो गाहे बगाहे हमेशा ही प्रश्न चिन्ह लगे हैं लेकिन क्या हमेशा सन्देह करना उचित है ?

ध्यान देने वाली बात यह है कि आखिर उन ग्रामीणों का क्या होगा जो इस सियासत, प्रशासन और दस्युओं के बीच पिस जाती है। ग्राउंड जीरो पर जाकर जब हमने तहकीकात की तो पता लगा की इन तमाम दस्यु प्रभावित इलाकों में अगर ग्रामीण अपने गांव घर में डकैतों को सरंक्षण नही देते हैं तो यही डकैत उनकी बेरहमी से पिटाई करते हैं और इसके बाद अगर गलती और दबाव के चलते सरंक्षण दे भी दिया तो पुलिसिया डण्डा कब चल जाये पता नहीं।

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इन दोनों स्थितियो के बीच सियासी हुक्मरानों की जुगलबंदी भी देखने लायक होती है। विषय के तह तक न जाकर सिर्फ सतही तौर पर सियासी ड्रामा रच दिया जाता है। ग्रामीणों की स्थिति वैसी ही रहती है और पुलिसिया कार्यवाही भी उसी प्रकार दशकों से सन्देह के घेरे में रही आती है।

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार...

विश्वस्त सूत्रों की मानें तो सबसे बड़ी बात ये है कि राजनीतिक सह मात के खेल में इन्ही डकैतों का प्रयोग चुनाव के दौरान किया जाता है लेकिन उस समय चारो ओर सन्नाटा पसर जाता है। लेकिन जैसे ही सत्ता में वापसी होती है वैसे ही इन्ही डकैतों के उन्मूलन की बात छेड़ दी जाती है, अब भला आप ही सोचिये की कोई खुद के ही स्थापित अस्तित्व के आधारभूत ढांचे को कैसे गिरा सकता है।

चार दशक से बादशाहत कायम रखे हैं दस्यु सम्राट...

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लगभग चार दशक तक पाठा समेत आस पास के क्षेत्रो में अपनी बादशाहत कायम रखने वाले खौफ के पर्याय दस्यु सम्राट ददुआ से ठोकिया और बलखड़िया तक इन सभी दस्युओं के साथ सियासत के न जाने कितने चेहरों की जुगलबंदी देखी गई। कभी लखनऊ और दिल्ली की मंजिल तक पहुचाने वाले रास्ते पाठा के इन्ही बीहड़ो से होकर जाया करते थे। जिसकी आहट आज तक सुनाई देती है।

मजे की बात तो ये है कि बसपा और सपा शासनकाल में मंत्री, सांसद और विधायक रहे कई सफेदपोश नेताओ पर पूर्व में आसपास के कई थानों में आज भी दस्यु गैंगों से संपर्क रखने के कारण केस दर्ज है।

अब आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस समूचे पाठा क्षेत्र में इन तमाम दस्यु गैंगों से सियासत के सफेदपोशों का जुड़ाव आम लोगो के लिए कितना परेशानी का सबब बनता होगा। यहीं सफेदपोश इस खौफ के आतंक के सरक्षणदाता, मददगार होते हैं और पीटी जाती है निर्दोष जनता। चुनाव के बाद समस्याएं भी खत्म नही होती हैं और ऊपर से गाहे बगाहे इन डकैतो द्वारा बेरहमी से पिटाई कर दी जाती है। ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि पाठा वासी जाएं तो कहां जाये ? यहां के दस्यु प्रभावित गांव के ग्रामीणों की जिंदगी आगे कुआं पीछे खाईं जैसी स्थिति की द्योतक है। इस समस्या को खत्म करना मौजूदा योगी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी।

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चित्रकूट के कुछ प्रमुख दस्यु सरगनाओं पर एक नजर...

आई.एस.173- गया कुर्मी...

दस्यु सरगना गया कुर्मी को ही पाठा के बीहड़ों में खौफ का पहला हस्ताक्षर माना जाता है। गया कुर्मी के साथ ही गैंग में राजा रगौली और शिवकुमार पटेल उर्फ़ ददुआ जैसे डकैत थे। इस गैंग के जन्मदाता कोई और नहीं बल्कि तत्कालीन समय के वो ठेकेदार (दादू) थे, जिन्होंने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए बुन्देलखण्ड में डकैतों को जन्म दिया। गया कुर्मी ने सन 1982 में आत्मसमर्पण कर दिया था।

आई.एस. 112- शिवकुमार उर्फ़ ददुआ...

नब्बे के दशक में बुन्देलखण्ड में दस्यु सम्राट ददुआ का आतंक अपने चरमसीमा में था। उन दिनों विकास कार्यों से लेकर कोई भी छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा कार्य बिना दस्यु ददुआ की सहमति के बिना नही होता था। दस्यु ददुआ को बुन्देलखण्ड का वीरप्पन भी कहा जाता था।

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद के रैपुरा थाना क्षेत्र के देवकली गांव में ददुआ पैदा हुआ। राम प्यारे पटेल का बड़ा बेटा शिव कुमार उर्फ ददुआ 32 साल पूर्व बागी हुआ था। यूपी और एमपी की सरकारों ने दस्यु ददुआ की परछाईं तक नहीं छू पाई।

पहली बार वर्ष 1975 में ददुआ के खिलाफ भैंस चोरी का मुकदमा दर्ज किया गया था। 1978 में अपने परिवार के एक सदस्य की हत्या के बाद बदला लेने की नीयत से बागी तेवर अपनाने वाले ददुआ के रिकॉर्ड में पहला बड़ा अपराध कौशाम्बी जिले के पश्चिम सरीरा क्षेत्र में डकैती डालने के इल्जाम के रूप में दर्ज हुआ।

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करीब दो दशक तक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आतंक का पर्याय रहे इनामी डकैत ददुआ के ऊपर सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 241 अलग-अलग धाराओं में अपराधिक मामले दर्ज थे, सालों तक पुलिस ददुआ की एक फोटो भी नहीं जुटा पाई थी।

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फरवरी 2007 में चित्रकूट स्थित जगमल के जंगल में एसटीएफ ने दस्यु ददुआ को पांच डकैतों के साथ मार गिराया था। दस्यु सम्राट ददुआ को 'रॉबिनहुड' की संज्ञा भी दी जाती थी।

फिलहाल इनामी डकैत ददुआ और उसकी पत्नी की मूर्ति की स्थापना उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के नरसिंहपुर कबरहा गांव में कर दी गई। एक ही प्रश्न है अब समाज के सामने फिर खड़ा हो गया है कि डकैत या देवता ?

आई. एस. 229- अम्बिका पटेल उर्फ़ ठोकिया...

दस्यु सरगना ठोकिया उर्फ़ अम्बिका पटेल का जन्म वर्ष 1972 में चौकी भरतकूप क्षेत्र के ग्राम लोखरिया क्षेत्र में हुआ था। दस्यु ठोकिया का गांव जंगल क्षेत्र में होने के कारण इसका सम्पर्क आई.एस. 220 के लीडर संता खैरवार से हो गई। संता खैरवार के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद इस गैंग को दिनांक 13.03..2003 को अलग से पंजीकृत किया गया।

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गैंग लीडर के दिनांक 04.08.2008 को मुठभेड़ में मारे जाने के बाद यह गैंग समाप्त हो गया। दस्यु ठोकिया को खाकी किलर के नाम से भी जाना जाता है। 22 जुलाई 2007 को पुलिस मुठभेड़ कर लौट रहे एसटीएफ के जवानों पर घात लगाकर ठोकिया गिरोह ने साथ अंधाधुंध फायरिंग कर 6 कमांडो की हत्या कर दी थी। हमले में एसटीएफ के 10 जवान घायल भी हुए थे।

मुन्नी लाल उर्फ़ खड़गसिंह...

खड़गसिंह मूल रूप से थाना बहिलपुरवा का रहने वाला है। इसकी आपराधिक गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए इसे दिनांक 20.12.2006 को सूचीबद्ध किया गया था। पुलिस रिकार्ड की जानकारी के अनुसार कुछ समय तक यह दस्यु ठोकिया के गिरोह में भी सक्रिय रहा।

खड़गसिंह के 07.01.2009 गिरफ्तार होने के बाद गैंग पूरी तरह से नष्ट हो गया। एक समय जिस डकैत खड़गसिंह की तूती बोलती थी वो आज सजा काटकर आम व्यक्ति की तरह जिंदगी व्यतीत कर रहा है ।

दस्यु गौरी यादव उर्फ उदयभान...

गैंग लीडर गौरी यादव मूलरूप से बिलहरी थाना बहिलपुरवा क्षेत्र का निवासी है। प्रारम्भ में यह एसटीएफ का मुखबिर रहा जो पुलिस एवं अपराधियों की बारीकियो को नजदीक से जान गया। वर्ष 2005 में थाना नयागांव क्षेत्र में फिरौती हेतु अपहरण की घटना को अंजाम दिया।

आज समूचे चित्रकूट जिले में आतंक का दूसरा नाम बन चुका दस्यु गोप्पा शुरुआत में इसी गैंग जा सदस्य था लेकिन आज वो खुद एक गैंग का सरगना है। सूत्रों का कहना है कि डकैत गौरी यादव जल्द ही समर्पण कर सकता है।

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आई. एस. 262- बबली कोल गैंग...

कुछ समय पहले दस्यु बबली कोल, गोप्पा यादव और ललित पटेल इन तीनों गैंगों की तिकड़ी ने समूचे चित्रकूट जिले में आतंक का तांडव मचा रखा था, लेकिन अब धर्मनगरी चित्रकूट में सिर्फ बड़े डकैत के रूप में दस्यु बबुली कोल ही बचा ही। जब चित्रकूट जिला अस्तित्व में आया था, तब आई.एस. स्तर के 06 गैंग और जनपद स्तरीय 16 गैंग थे लेकिन मौजूदा समय में कोई भी गैंग शेष नहीं है।

विगत महीने सूबे का सबसे मोस्ट वांटेड डकैत बबुली कोल आपसी गैंगवार में मारा गया। जिसके बाद एमपी पुलिस ने दावा किया कि उनकी टीम ने मुठभेड़ में मार गिराया था। जिसके बाद इस मामले को लेकर काफी कंट्रोवर्शि हुई थी।

चित्रकूट पुलिस ने गैंगवार में शामिल डकैतो को पकड़कर ये साबित कर दिया था कि ये डकैत गैंगवार में मारे गए थे। फिलहाल अब चित्रकूट के बीहड़ इलाका दस्यु मुक्त हो गया है।

इनका मुख्य काम विकास कार्यों को प्रभावित करना , अपहरण करना और खुद का आतंक स्थापित करना आदि है। दस्यु बबली कोल इस समय बुन्देलखण्ड का सबसे ज्यादा इनामी राशि का डकैत है। मौजूदा समय में पुलिस का कई बार दस्यु बबली कोल से सामना हो चुका है लेकिन अभी तक पुलिस को सफलता नहीम प्राप्त हुई है।

दस्यु रामगोपाल यादव उर्फ गोप्पा यादव...

एक लाख का इनामी कुख्यात डकैत गोप्पा यादव इस समय पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ था। हाल ही में कुछ घटनाओं ने गोप्पा यादव को चित्रकूट जिले का सबसे संगीन अपराधी बना दिया था।

आपको बता दें कि दस्यु सरगना गोप्पा यादव पर अपहरण हत्या फिरौती के लगभग दो दर्जन से अधिक मामले चित्रकूट सतना (मध्य प्रदेश) बांदा के विभिन्न थानों में दर्ज हैं।

खासतौर पर इन इलाकों के सीमावर्ती थाना क्षेत्रों में डकैत गोप्पा के खिलाफ ज्यादा मुकदमें दर्ज हैं। ये डकैत तब पुलिस की हिटलिस्ट में ऊपर आया जब इसने 29-6-2016 को मुखबिरी के शक में पहाड़ी थाना क्षेत्र में तीन लोगों को गोलियों से भून मौत के घाट उतार दिया था।

19-12-2016 को इस दस्यु सरगना ने पुरानी रंजिश के चलते एक व्यक्ति की हत्या कर दी। इसके अलावा गोप्पा पर पुलिस से मुठभेड़ के कई मामले दर्ज हैं, अपहरण करना इस गैंग का मुख्य काम है। इस गैंग ने इसी वर्ष एक बड़ी घटना को अंजाम देते हुए 19 जून को बहिलपुरवा थाना क्षेत्र से दो ठेकेदारों का अपहरण कर बोरिंग मशीन तथा ट्रक को आग लगाते हुए दहशत फैलाई। अभी हाल ही में एक ज्वाइंट ऑपरेशन के तहत यूपी एसटीएफ और चित्रकूट पुलिस ने दस्यु सरगना गोप्पा यादव को दबोच लिया था।

दस्यु ललित पटेल...

वैसे तो दस्यु ललित पटेल मध्यप्रदेश के हिस्से वाले चित्रकूट क्षेत्र सहित तमाम जिलों में वारदात करता है लेकिन पिछले कुछ समय से उसने यूपी और एमपी की सीमा को वारदातों के लिए चुन रखा है।

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अभी हाल ही में कोलौहा जंगल में दस्यु ललित पटेल गैंग ने तीन ग्रामीणों को जिंदा जला दिया था जिसके बाद से ललित पटेल खौफ और आतंक का दूसरा नाम बन गया है।

पुलिस ने कहा...

पुलिस का कहना है कि दस्यु गैंग को खत्म करने की उसकी कार्यवाही जारी है। जानकारी के मुताबिक पौशलहा चित्रकूट सतना निवासी दस्यु सरगना ललित पटेल, दस्यु सरगना रहे अम्बिका पटेल उर्फ ठोकिया की मौसी का लडक़ा है।

ग्रामीण सूत्रों के मुताबिक...

ग्रामीण सूत्रों के मुताबिक दस्यु सरगना के पास ठोकिया वाली थ्री नार थ्री रायफल भी थी विदित हो शहीद स्मारक का निर्माण ठोकिया गैंग द्वारा मारे गये 4 एसटीएफ जवानों सहित एक पुलिस मुखबिर की शहादत पर ग्राम प्रधानों सहित ग्रामीणों ने स्थानीय पुलिस के सहयोग से चंदा कर कराया गया था।

दस्यु बलखड़िया द्वारा भी इस शहीद स्थल को गिराया गया था और इसी स्थल को पिछले दिनों ललित पटेल ने भी ढहा दिया था। एमपी पुलिस हरकत में पिछले दिनों हरकत में आई और दिनांक 06/08/2017 को दस्यु ललित पटेल को एक मुठभेड़ में एमपी पुलिस ने पुलिस अधीक्षक राजेश हिंण्डगकर की अगुवाई वाली टीम ने नया थाना क्षेत्र के अंतर्गत पुखरायां के जंगल में मार गिराया था।

Harsh Pandey

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