जय श्रीराम बोल मौत को चूमा, महाभीषण था जन्मभूमि मुक्ति का ये संघर्ष

न्यूजट्रैक सभी कारसेवकों को एक बार फिर याद करते हुए पूरी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। शहीद हुए, बलिदान हुए मंदिर आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले लोगों के परिवारीजनों ने हुतात्माओं की पहली बरसी पर क्या कहा था उसे पुनः प्रकाशित कर रहे हैं।

Update:2020-08-04 19:37 IST

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, साहित्यकार और राम मंदिर आंदोलन की विचार धारा के अलंबरदार वचनेश त्रिपाठी ने पांचजन्य के 3 नवंबर 1991 के अंक में कहा था राममंदिर बने बिना कारसेवकों को श्रद्धांजलि अधूरी रहेगी। 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में भूमिपूजन करेंगे। राम मंदिर के लिए बहुत से लोगों ने शहादत दी। जान गंवाई। बलिदान हुए। 5 अगस्त का दिन वचनेश त्रिपाठी जी के शब्दों में कहा जाए तो शहीद हुए कारसेवकों को सच्ची श्रद्धांजलि का दिन है। उनकी पूरी श्रद्धांजलि का दिन है। उनको फिर से याद करने का दिन है। उनको नमन करने का दिन है।

भूमिपूजन कारसेवकों को पूरी श्रद्धांजलि

न्यूजट्रैक उन सबको एक बार फिर याद करते हुए पूरी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। हमने शहीद हुए, बलिदान हुए मंदिर आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले लोगों के परिवारीजनों ने हुतात्माओं की पहली बरसी पर क्या कहा था उसे पुनः प्रकाशित कर रहे हैं। यह न्यूजट्रैक की नजर में उन्हें याद करने का सबसे नायाब तरीका है।

कारेसवा करने का वायदा पूरा किया, पर घर लौटने का नहीं

अयोध्या का एक शहीद कार सेवक परिवार है श्री मथुरा प्रसार गुप्त का। इनके 19 वर्षीय पुत्र विनोद कुमार गुप्त पिछले वर्ष 30 अक्टूबर को रामजन्मभूमि पर पुलिस की गोली लगने से शहीद हो गये।

आप उस मां-बाप के दर्द की कल्पना नहीं कर सकते। जिसका सिर्फ एक ही लाल हो और वह भी परलोक सिधार गया हो। ऐसे ही पिता हैं श्री मथुरा प्रसाद। घर में उनकी पत्नी आज भी अपने शहीद लाल के वियोग में विक्षिप्त सी हैं।

एक ही लाल था छोड़कर चला गया। किसी का सहारा नहीं रहा। अब किसके लिए जीऊं और क्यों जिऊं? उस दिन विनोद यह कहकर गया था कि माँ हम कारसेवा करके ही आएंगे, कारसेवा तो उसने कर दी, लेकिन लौटा नहीं। ऐसा था मेरा लाल। अभी तक मंदिर न बन पाने का उन्हें बेहद दुःख है। कहती हैं अब तो मंदिर बन ही जाना चाहिए, अगर अब नहीं बनेगा तो कब बनेगा?

एक मुखिया की शहादत से दो घर सूने हुए

भारतीय समाज में परिवार के एक मात्र कमाऊ मुखिया की एकाएक मृत्यु हो जाए तो उसकी स्वाभाविक बदहाली की सहज ही कल्पना की जा सकती है। स्व. महावीर अग्रवाल ऐसे ही शहीद हैं। जिन्होंने अपने पीछे एक भरा-पूरा परिवार छोड़कर संसार से विदाई ली।

पारिवारिक परिस्थितियां ऐसी थीं कि उनकी दो शादियां हुई थीं और दोनों पत्नियों का संसार इस समय सूना है। श्री अशोक अग्रवाल मूलतः गोण्डा से (तिवारी निकेतन, तारघर के सामने, मालवीय नगर, गोण्डा) थे। यहां उनकी पत्नी जया अग्रवाल रहती हैं।

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जया अग्रवाल बताती हैं, उनके रहने पर बड़गांव में अगरबत्ती का व्यापार भी था। 25 अक्टूबर को वह घर से निकले थे और फिर लौटकर नहीं आए। 2 नवम्बर के हत्याकाण्ड में उनकी हत्या कर दी गई। अब व्यापार बंद हो गया। यह कहते-कहते जया भी फूट-फूटकर रोने लगती है।

दो बच्चे- जनीश कुमार (7) और रष्मि अग्रवाल (5) हैं। दोनों सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ते हैं। किराए के मकान में रहती हैं। विश्व हिन्दू परिषद की ओर से उनके नाम एक लाख रूपया तीन वर्ष के लिए सावधि जमा खाते में जमा कर दिया गया है।

हर तीन माह बाद तीन हजार रूपये ब्याज (एक हजार रूपये प्रतिमाह के हिसाब से) के रूप में मिलता है। इसी पैसे को जया अग्रवाल अपने घरेलू कार्यों में खर्च करती हैं।

दुर्गा वाहिनी की प्रमुख लक्ष्मी सहस्त्र बुद्धे ने दिया सहारा

बताती हैं दुःख का पहाड़ टूटा तो सहारा दिया जिला दुर्गा वाहिनी की प्रमुख लक्ष्मी सहस्त्र बुद्धे ने। उनकी ही दौड़ धूप व प्रयासों से मुझे पैसा भी मिल पाया। अब भी वही हमारी मदद कर रही हैं। अगर अपने बच्चों के भविष्य संवारने के लिए कोई काम मिल जाए तो मैं कर सकती हूं।

मैट्रिक तक की शिक्षा उन्होंने ली है। मंदिर निर्माण के संदर्भ में उनका आज भी मानना है कि उसे बनना ही चाहिए। वह मंदिर निर्माण में हो रहे विलम्ब से परेशान हैं।

दूसरे घर की व्यथा

स्व.महावीर अग्रवाल की दूसरी पत्नी श्रीमती शारदा देवी (35 फैजाबाद) में रहती हैं। गोण्डा से आने के बाद महावीर यहीं ठहरे थे और यहीं से 2 नवम्बर को कारसेवा में गये थे। मैंने उन्हें काफी रोका, पर न माने। आखिर हमें सदा के लिए छोड़कर चले गये।

यह कहते-कहते शारदा देवी की आंखों से आंसू आ जाते हैं। दो पुत्र हैं। अखिलेश अग्रवाल (15) तथा अभिषेक अग्रवाल (10) जो बीता सो बीता, उन्हें कोई लौटा नहीं सकता है कि लेकिन अगर इतने पर भी मंदिर नहीं बनता है तो यह मान लिया जाएगा कि विश्व हिन्दू परिषद मंदिर कभी नहीं बनवा सकती है।

मंदिर बनने पर ही तसल्ली

शारदा देवी कहती हैं। खून भी दिया गया, अभी तक मंदिर भी नहीं बना, यह दुःख की बात है। मंदिर बनने पर ही तसल्ली होगी। गत वर्ष 6 दिसम्बर, 14 जनवरी तक हुए सत्याग्रह में इन्होंने 13 जनवरी को अन्य रामभक्त महिलाओं के साथ भाग लिया था।

घर में दो बच्चों के अलावा बूढ़ी मां रेशमी देवी (75) अपने पुत्र के वियोग से दुःखी हैं। बच्चों के बीच मन बहलाती हैं। इस वर्ष 3 मार्च को सरकार की ओर से फैजाबाद के परगनाधिकारी ने घर पर आकर एक लाख रूपये का चेक दिया। बैंक में जमा कर दिया है। ब्याज से परिवार का खर्च चल रहा है।

जब लड़ाई छिड़ गई, तब चिन्ता कहि बात की

गोण्डा जनपद से लगभग 60 कि.मी. दूरी पर एक गांव है गोपाल जतिया। फेरई वर्मा, जिनकी उम्र लगभग 80 वर्ष की थी, 30 अक्टूबर से पूर्व घर से चले थे। अयोध्या नहीं पहुंच सके और 27 अक्टूबर को ही गिरफ्तार कर रायबरेली जेल भेज दिया गया।

9 नवम्बर को उन्हें रिहा किया गया। लेकिन इन 12 दिनों की जेल-यात्रा के दौरान सरकारी उदासीनता के कारण उनकी तबियत खराब हो गई। जेल से निकलते ही जेल द्वार पर हृदय गति रूक जाने से उनकी मृत्यु हो गई। एक पुत्र रामदेव वर्मा (50) तथा उनका परिवार है। पत्नी संसार से विदा ले चुकी हैं।

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घर में बहू व बच्चे हैं। 15 बीघा खेत है। पानी का साधन गांवों में वैसे भी नहीं रहता है। इसलिए अच्छी खेती के लिए प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ता है। रामदेव की मृत्यु के बाद विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता व नेता घर पर आये थे। विश्व हिन्दू परिषद की ओर से एक लाख का चेक दिया गया जो 3 वर्ष के लिए जमा कर दिया गया है।

मंदिर के सवाल पर उनकी गांव-सुलभ सहज प्रतिक्रिया देखिए। ‘जवन होइके रहा, होइग, हम का बताई।’ सरकार जाने कि कउन दोशी है और मंदिर कब बनी। लेकिन एक हिन्दू होई के नाते हम चाहीथ कि मंदिल जल्द बने।

जब लड़ाई छिड़ गई तब चिन्ता केहि बात की। जवन होइके होई, होइ जाए लेकिन मंदिर परिषद वाले जरूर बनाई। मुलायम के संदर्भ में पूछने पर राम देव का कहना था कि उन्हें ते सजा मिल गई, अब का सजा दिही जाई।

शहीद गांव सूजागंज नहीं, अब राम अचल नगर

बाराबंकी जनपद के शहीद स्व. राम अचल गुप्त के घर की व्यथा ही अलग है। परिवार अभी भी लगभग विक्षिप्त सा है। एक अदृश्य भय समाया हुआ है। इस परिवार का पूरा पता इस प्रकार है-स्व. राम अचल गुप्त, पुत्र श्री देवी प्रसार गुप्त, सूजागंज, रूदौली, बाराबंकी। शहीद राम अचल गुप्त के गांव सूजागंज का नाम अब बदलकर राम अचल नगर रख दिया गया है।

पिता श्री देवी प्रसाद ने बताया कि 28 वर्षीय राम अचल भेलसर कस्बे में पान की दुकान पर बैठता था। वही हमारी कमाई का एक एकमात्र साधन था। दो नवंबर को पुलिस गोलीकाण्ड में शहीद हो गया।

पिता को इस बात का अफसोस

25 अक्टूबर को यहां से गया था। उसके बाद सदा के लिए अलग हो गया। 8 वर्श पूर्व उसकी शादी हुई थी। तीन बच्चे हैं- संयज कुमार (6) ममता कुमारी तथा संदीप कुमार (2)।

देवी प्रसाद जी को इस बात का काफी अफसोस है कि अयोध्या में रामभक्तों के हत्यारों को भी अभी तक सजा नहीं मिली। कहते हैं- उन हत्यारों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए। सरकार की ओर से राम अचल गुप्त को सहायता राशि दी गई। उनकी पत्नी व बच्चों से मुलाकात नहीं हो सकी। क्योंकि वह उस समय अपने मायके में थीं।

अभी भी गोलियों की आवाज सुनाई देती है

स्व. रमेश पाण्डेय की उम्र लगभग 31 वर्ष की थी। घर में पत्नी गायत्री पाण्डेय (27) तथा चार बच्चे हैं। दो लड़के सुभाष चन्द्र पाण्डेय (8), सुरेश चन्द्र पाण्डेय (3) तथा दो बेटियां- नीता पाण्डेय (7) तथा सुनीता पाण्डेय (5)। सभी बच्चे स्थानीय सरस्वती शिशु मंदिर में अध्ययनरत हैं।

वैसे स्व. रमेश पाण्डेय का मूल घर गोण्डा में है, लेकिन व्यापार व अन्य औद्योगिक कार्यों से वह अयोध्या (गायत्री नगर 50/45 रानी बाजार अयोध्या फैजाबाद) में रहते थे। पत्नी गायत्री पाण्डेय अभी भी वहीं 50 रूपये प्रतिमाह किराये के मकान में रहती हैं।

बताती हैं उनके न रहने से घर सूना-सूना सा लगता है। रात में ऐसा प्रतीत होता है कि मानो गोलियां चल रही हों। लेकिन क्या कर सकते हैं? जाएं तो जाएं कहां? गोण्डा में 15 बीघे खेत है, लेकिन वहां से इनका विशेष सरोकार नहीं रह गया है।

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सहायता के रूप में भाजपा नेता श्री आडवाणी की ओर से दस हजार रूपये के अलावा सरकार की ओर से एक लाख रूपये का चेक 5 वर्ष के लिए इनके नाम जमा कर दिया गया है। घर का खर्च तो उसी से चलता है। मूल चिन्ता बच्चों का भविष्य है। बच्चे छोटे हैं।

गायत्री जी के अलावा उनका कोई संरक्षक नहीं है। घर में किसी अर्थोपार्जन करने वाले व्यक्ति के न होने से असुरक्षा का भाव उत्पन्न होना स्वाभाविक है। दुःख दर्द का भागीदार कोई नहीं है। मणिराम छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास महाराज इस परिवार का विषेश ध्यान रखते हैं।

बच्चों के छोटे होने से रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी स्वयं करनी पड़ती है। मंदिर निर्माण के सवाल पर उनका कहना था इतने बलिदान के बाद तो मंदिर बनना ही चाहिए। अगर अब नहीं बना तो कभी नहीं बनेगा।

मां के आंसू अभी तक नहीं सूखे

स्व. राजेन्द्र प्रसाद धरिकार के परिवार में पिता राम आसरे धरिकार-माता लालती देवी के अलावा एक बहन सुनीता (13) तथा एक छोटा भाई रविन्दर धरिकार (9) है। बहन स्कूल नहीं जाती है। घर के काम में मां का पिताजी की मदद करती है। छोटा भाई कक्षा तीन में पढ़ता है।

राजेनद्र प्रसाद जन्मभूमि पर शहीद होने से पूर्व पिता के परम्परागत कामों में सहायता किया करता था लेकिन अब ? पिता श्री राम आसरे बताते हैं- अब तो कोई भी सहारा न रहा। आप ही लोगों का सहारा है। फिर भी हाथ थके नहीं हैं।

बेटा राम-काम के लिए शहीद हुआ है। कोई गलत काम करते हुए मारा नहीं गया। अपनी नाव पार लगाने में सक्षम है। लेकिन एक बात कहूंगा और उसे आप जरूर छापिए। एक तो राम मंदिर अवश्य बनना चाहिए । दूसरे ये पास की नुजूल जमीन है उस पर शहीद स्मारक बनाया जाये।

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यही कहकर राम आसरे अपनी बात खत्म कर देते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि उस पर मोहल्ले को राजेन्द्र नगर नाम से पुकारा जाने लगा है। राजेन्द्र प्रसाद की माँ लालती देवी के आंसू अभी नहीं सूखे हैं। सूख भी कैसे सकते हैं? एक मां का बेटा जो शहीद हुआ है।

लालती जी को इस बात का बेहद दुःख है कि अयोध्या में निर्दोश राम भक्तों के हत्यारे अधिकारी अभी तक दण्डित नहीं किये गये। उन्हें दण्ड तो मिलना ही चाहिए वह कहती हैं। भाजपा नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने पिछले वर्ष इस परिवार को 10 हजार रूपये की सहायता राशि प्रदान की थी।

सरकार की ओर से देय एक लाख रूपये को स्वीकार नहीं किया। कानपुर विश्व हिन्दू परिषद की ओर से एक लाख रूपये का चैक स्थानीय विहिप के पदाधिकारी राम बाबू अग्रवाल ने दिया। विहिप महासचिव अशोक सिंहल, भाजपा नेता राजमाता सिंधिया भी इनका दुःख दर्द बांटने यहां आ चुकी हैं।

अभी नहीं तो कभी नहीं

शहीद का नाम स्व. वासुदेव गुप्त। पत्नी- शकुन्तला देवी। पता- नयाघाट, अयोध्या। बच्चों के बारे मे जानना चाहेंगे आप? बच्चे पांच हैं। तीन बेटियां-अन्नपूर्णा (19), अनसूईया (18),सीमा (14) तथा दो बेटे-संदीप कुमार (9) तथा प्रदीप कुमार (3)। 6 सदस्यीय परिवार और सहायता?

स्वजनों ने पहले ही किनारा कर लिया था। स्व. वासुदेव गुप्त के पिता लक्ष्मीनारायण पहले ही इन्हें अलग कर चुके थे। सौतेली मां की ईर्श्या अन्त तक झेलनी पड़ी थी। फिर मृत्यु के बाद कौन पूछता है? कार सेवा अभियान में 30 अक्टूबर को शहीद होकर वासुदेव गुप्त ने जो कुर्बानी दी।

वह अपूरणीय है। लेकिन उनके पीछे जो बड़ा परिवार है। भाजपा नेता श्री लालकृश्ण आडवाणी द्वारा पार्टी की ओर से 10 हजार की सहायता राशि के अलावा इस परिवार को एक लाख रूपये की सहायता राशि मिली है। उस पैसे का ब्याज ही अब परिवार के भरण पोषण का माध्यम है।

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घर में कोई पुरूष संरक्षक नहीं है। बच्चे छोटे हैं फिर असुरक्षा की भावना बलवती होना स्वाभाविक है। बच्चों के भविष्य की चिन्ता व घर का खर्च वहन करना- ये गंभीर चुनौती है। शकुन्तला देवी के सामने।

स्थानीय शिशु मंदिर में बच्चे अध्ययनरत हैं और वह स्वयं अपने घर पर ही चाय बिस्कुट माचिस और अन्य आम जरूरतों की चीजों की एक छोटी सी दुकान कर रही हैं।

मैं बोल देती हूं

बस इसी में उनका दिन बीत जाता है और कुछ आर्थोपार्जन भी होता है। बात शुरू की तो 15 मिनट में ही सारा दुःख दर्द उड़ेल दिया। कहने लगीं आप तो अखबार वाले हो, सब कुछ लिख दोगे इसलिए मैं बोले देती हूं।

जिस काम के लिए मेरे पति सहित सैड़कों रामभक्त शहीद हो गये, वह काम अर्थात मंदिर कब बनेगा, भाजपा सरकार मंदिर नहीं बनवा पाएगी तो आने वाली कोई भी सरकार मंदिर नहीं बनवा सकती है। यह कहकर वह एकाएक चुप हो जाती हैं।

शहीद जिसे विद्युत विभाग ने लील लिया

उन्नाव जनपद की तहसील है। नवाबगंज। नवाबगंज तहसील के बजरंग दल के संयोजक श्री कंचन गुप्त की मृत्यु 31 जुलाई 1990 को उस समय हुई, जब वह कारसेवा अभियान के तहत वृन्दावन में 1 अगस्त 1990 को हो रहे विहिप के संत सम्मेलन में जा रहे थे।

इटावा जनपद से पहले ही बस रूकी। बरसात का महीना था। नीचे उतरे तो बिजली के तार से स्पर्श हो गया और उनकी वहीं मृत्यु हो गई। उनका शव आया नवाबगंज। पूरे सम्मान के साथ शव दाह हुआ।

कुछ दिन बाद तत्कालीन प्रदेश भाजपा महामंत्री कलराज मिश्र (अब राजस्थान के राज्यपाल) तथा भाजपा नेता लाल जी टण्डन (अब स्वर्गीय) श्री गुप्त के घर गए और अपनी सहानुभूति प्रकट की।

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स्व. कचंन गुप्त का परिवार काफी बड़ा है। पिता राम भजन गुप्त के अलावा माता, भाभियां व बहने हैं। 5 बहने हैं। कल्पना देवी की शादी हो चुकी है। अर्चना देवी (22) वन्दना देवी (18) अंजना देवी (16) नीलिमा देवी (13) के अलावा चार भाई हैं।

देव प्रकाश गुप्त (22) तथा सत्य प्रकाश गुप्त (16) पिता रामभजन गुप्त किराने की दुकान पर रहते हैं और बड़े भाई श्री देव प्रकाश गुप्त स्थानीय आंनद आटो मोबाइल स्टेशन पर नौकरी करते हैं इन दो के अलावा घर में ऐसा कोई व्यकित नहीं है जो परिवार के लिए कुछ अर्थोपार्जन करता हो।

लड़कियां शादी योग्य हो चुकी हैं। रामभजन को इनकी शादी की चिन्ता लगी रहती है। अकल्पनीय गरीबी के कगार तक पहुंचे रामभजन ने हार नहीं मानी है और आज भी मंदिर निर्माण के प्रति आशान्वित हैं। उसके लिए हर तरह से सहयोग देने को भी तत्पर हैं।

मेरा बेटा श्रीराम के काम आया

कारसेवा के लिए अपने प्राण को न्यौछावर कर देने का संकल्प मन में लेकर लाखों रामभक्तों की तरह ही सीहोर जिले की इछावर विधानसभा क्षेत्र के विधायक करण सिंह वर्मा अपने साथियों सहित मेटाडोर में सवार होकर सीहोर से अयोध्या के लिए कूच किये।

किन्तु 29 अक्टूबर को प्रातः 11 बजे उत्तर प्रदेषा की सीमा से कुछ दूर ही सागर के पास ग्राम रतौना में विपरीत दिशा में आते एक ट्रक ने इतनी भयंकर टक्कर मारी कि दो कार सेवकों की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई तथा शेष सभी को गंभीर चोटें आई।

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मृतक कारसेवकों में 23 वर्षीय राजेश शर्मा उर्फ भूरा अपने पिता मांगी लाल षर्मा के तीन पुत्रों में सबसे छोटा था। उसने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की थी। स्वस्थ एवं उत्तम शरीर के कारण अनेक कुश्तियां जीतने के साथ ही साथ संगीत की प्रतियोगिताओं में भी सफलता पाई तथा एक नवोदित कवि के रूप में भी ख्याति अर्जित की।

स्व. राजेश शर्मा ‘भूरा’ के 63 वर्शीय वृद्ध पिता मांगीलाल षर्मा ने रोते हुए अपने होनहार पुत्र के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जाते समय कहकर गया था कि ‘झण्डा चढ़ाकर ही आऊंगा’

श्री शर्मा का कहना है कि मुझे खुशी है कि मेरा बेटा श्रीराम के काम आया। श्री राम मंदिर अवश्य बनेगा। यदि जरूरत पड़ी तो मैं अपने पूरे परिवार के साथ अयोध्या जाने को तैयार हूं। मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा की घोषणा के अनुसार उन्हें चालीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता प्राप्त हो चुकी है तथा विगत 17 जुलाई उनके पौत्र अनिल शर्मा को सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्त दी गई है।

मेरे पति राम में लीन हो गये हैं

दुर्घटना में मृत दूसरा कारसेवक 22 वर्शीय नरेन्द्र सिंह मेवाड़ा उर्फ ‘दारा’ उक्त मेटाडोर का चालक था। छात्र जीवन से ही हिन्दुत्व के प्रसार के लिए जाने वाले प्रयासों में सहयोग करता था। श्री राम जी के दर्शन की उत्कृष्ट इच्छा लेकर गया था।

दारा की पत्नी पुष्पा अपने नन्हें पुत्र तरूण के लिए काफी चिंतित हैं। उनके परिवार के लोगों ने उन्हें काफी प्रताडि़त किया। इसलिए अब वे अपने पिता खुशीलाल ठाकुर के साथ सीहोर में रहती हैं। श्रीमती पुष्पा के अनुसार दारा का परिवार समीप के ग्राम बरखेड़ी में निवास करता है।

श्रीमती पुश्पा ने बताया कि उसे पति की मृत्यु के समय ही सरकार से 10 हजार रूपये प्राप्त हुए थे किन्तु उन्हें उसके जेठ पृथ्वी सिंह ने छीन लिया। उसे पता चला है कि भानपुरा पीठ के शंकराचार्य जी ने भी एक हजार रूपए भिजवाए है किन्तु वे उसे आज तक नहीं मिले।

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ससुराल की निरन्तर प्रताड़ना के कारण वह एक माह बाद ही अपने 7 माह के दुधमुंहे बालक को लेकर अपने पिता के यहां आ गई। तब से यहीं है। विगत 12 अप्रैल से उसे सरकार की ओर से प्राथमिक षाला में सहायक शिक्षिका के पद पर नियुक्ति दी गई है।

श्रीमती पुश्पा का यह दृढ़ संकल्प है कि उसके पति मरे नहीं,राम में लीन हो गए है। अतः वह जाति के रिवाज के बावजूद नातरा (दूसरी शादी) नहीं करेगी। उन्होंने बताया कि तरूण के पिता बच्चे के खिलाते समय कहते थे कि मै तो चालक हूं लेकिन अपने बच्चे को जहाज का चालक बनाउंगा। अतः मैं अपने पति की इच्छा के अनुरूप अपने बच्चे को जहाज चालक बनाने के लिए पूरा प्रयास करूंगी।

वे मरे नहीं, अमर हो गये

मध्य प्रदेश के देवास जिले में पतितपावनी नर्मदा के तट पर बसे ग्राम नेमावर के निवासी स्व. बाबूलाल तिवारी (55)पेशे से चालक थे, श्री राम के अनन्य भक्त होने के कारण ही अपनी पत्नी सहित कारसेवा हेतु अयोध्या प्रस्थान किया, किन्तु तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार के सिपाहियों ने उन्हें इतना मारा कि उनकी मृत्यु हो गई।

स्व. बाबूलाल तिवारी की पत्नी गायत्री देवी (42) ने बताया कि उन्होंने कई लोगों से कारसेवा में चलने के लिए कहा किन्तु जब कोंई तैयार नहीं हुआ तो वे अकेले ही जाने लगे, तब मैंने कहा कि मैं भी साथ चलती हूं। अतः हम लोग यहां से भोपाल पहुंचे। वहां से अन्य कारसेवकों के साथ सतना गये।

चित्रकूट में राजमाता सिंधिया जी के साथ उ.प्र. में प्रवेश की कोशिश की। लेकिन सफल नहीं हो सके। पुलिस ने लाठीचार्ज किया। अनेक लोग घायल हुए मेरे पति को भी अनेक लाठियां लगी। हाथ की हड्डी टूट गई। किन्तु सिर पर चोट लगने से वे अचेत हो गये। चित्रकूट में इलाज हुआ,

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बाद में उन्हें नेहरू अस्पताल इलाहाबाद गये। वहां चिकित्सकों ने बताया कि सिर की नस फट गई है, ऑपरेशन करना पड़ेगा। मैंने मना कर दिया। मैं उसी हाल में उन्हें लेकर भोपाल आ गई जहां सभी लोगों ने मदद की। हमीदिया अस्पताल में भर्ती किया। ऑपरेशन भी हुआ किन्तु 11 दिसम्बर को उनका निधन हो गया।

स्व. तिवारी के तीन पुत्र व तीन पुत्रियां हैं। पुत्र कैलाश 22, नीलेश 13, उषा 20, हेमकुमारी 16 तथा डाली 10 । इसमें उशा की शादी हो चुकी है। बाकी सभी पढ़ रहे हैं।

श्रीमती गायत्री देवी, जो स्वयं भी ईश्वर की भक्त हैं, ने कहा कि मरना तो एक दिन सभी को है। मेरे पति एक अच्छे काम के लिए मरे हैं। वे मरे नहीं अमर हो गये। उनकी करनी अच्छी थी, उन्हें भगवान से लगाव था इसलिए उनकी सद्गति हुई।

जीर्ण-षीर्ण हालत में अपने मकान में रह रही गायत्री देवी ने बताया कि उन्हें विश्व हिन्दू परिषद ने 50 हजार रूपये तथा सरकार व दिव्यानन्दजी महाराज ने कुल 11 हजार रूपये की आर्थिक सहायता की है।

इसके अतिरिक्त नर्मदा बस सर्विस के मालिक के यहां मेरे पति नौकरी करते थे, ने 15 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से आर्थिक सहायता भिजवाई है जो दो माह पूर्व मेरे पुत्र कैलाश की सरकार द्वारा सहायक शिक्षक की नियुक्ति होने तक जारी रही। श्रीमती गायत्री देवी को पूर्ण विश्वास है कि राम राम मंदिर अवश्य ही बनेगा।

शहादत की गौरवमई परंपरा को जीवित रखा

2 नवंबर को अयोध्या में पुलिस के बर्बरता पूर्ण हत्याकांड में शहीद होने वाले में एक नाम ऐसा भी है जिसने अपने नाम की सार्थकता साबित करते हुए राजस्थान की गौरवमई बलिदानी परंपरा को जीवित रखा।

राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगर जयपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा की सक्रिय स्वयंसेवक 87 वर्षीय राम अवतार ही वह नौजवान था। जिसने हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ने की कोशिश में अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।

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रामगढ़ अलवर के रहने वाले रतन लाल सिंघल की आंखों का यह तारा जयपुर में अपने बड़े भाई सहायक अभियंता जगदीश प्रसाद सिंघल के साथ पिछले 10 वर्षों से रह रहा था जहां प्यार से उसे रामू पुकारा जाता था जब रामू के जयपुर निवास पर उनके बड़े भाई जगदीश प्रसाद भाभी व भतीजे से उसके संबंध में बात होती है तो वे भाव विभोर हो जाते हैं।

उनके बच्चे भी रामू चाचा के बारे में पूछने लगे। उनके बड़े भाई जगदीश्वर बताते हैं वे उसे खोने के बाद अकेले पड़ गए हैं। वे उसे व्यापार करवाते। रामू इतना भावुक था कि देश हित या हिंदू हित का विषय आ जाने पर किसी की कुछ नहीं सुनता था। विश्व हिंदू परिषद ने रामू के पिता रतनलाल को ₹100000 की राशि अनुग्रह के साथ भेंट की, जिसका उपयोग उन्होंने रामू की छोटी बहन के विवाह में किया।

वह हमारे प्रेरणा स्रोत बन गए

बिहार का एक जिला है बेगूसराय प्रायः जातीय संघर्ष व राजनीतिक चहल कदमी के कारण अखबार की सुर्खियों में रहता है। पिछले वर्ष 30 अक्टूबर की कार सेवा व 2 नवंबर के हत्याकांड के दौरान जब बिहार सुर्खियों में आया तो बेगूसराय के कारण।

अयोध्या में पुलिस की गोलियों से छलनी सुखदेव इस्सर शहीद हो गए और बिहार का नाम राम जन्म भूमि के इतिहास में दर्ज करा गए। जनपद के ग्राम व पोस्ट मराठी कला में जन्मे इस्सर 71 वर्ष के थे। बुढ़ापे में राम नाम की धुन सवार थी।

अयोध्या की ओर चल दिए। पहुंचे भी अयोध्या पुलिस की गोली ने उन्हें इस संसार से विदा कर दिया। बुढ़ापा धन्य हो गया। राम काज में शहीद हो गए सुखदेव इस्सर। बड़ा परिवार है पांच पुत्र रामनरेश इस्सर, राम कुमार, राजेंद्र कुमार, गजेंद्र कुमार और दिलीप कुमार सभी राम भक्त हैं।

विश्व हिंदू परिषद परिवार ने उनके परिवार को ₹10000 की आर्थिक सहायता दी। गांव वालों की इच्छा है कि इस्सर के नाम पर स्मारक बने। वह अपने घर के मुखिया थे। इसलिए उनके न रहने पर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। परिवार के सभी सदस्यों का कहना है कि वह तो राम नाम से प्रेरित होकर अयोध्या गए। वह अमर हो गए, हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए।

मंदिर बनने का इंतजार

शहीद राम भक्त महेंद्र नाथ अरोड़ा 2 नवंबर को दरिंदों के शिकार हो गए और हनुमानगढ़ी की गलियों में जय श्री राम कहते हुए दम तोड़ दिया। महेंद्र अरोड़ा की शहादत राजस्थान की सूर्य नगरी जोधपुर के लिए गौरव का विषय है।

अब उनके पीछे उनकी याद को संजोए जोधपुर विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर सुमति अरोड़ा अपने उसी गोल्फ कोर्स वाले मकान में रह रही हैं। और इंतजार कर रही हैं। उस काम के पूर्ण होने का जिस काम की पूर्ति के लिए उनके पति ने अपने प्राण उत्सर्ग कर दिए थे। अब उन गली कूचे में चलने फिरने वाले महेंद्र अरोड़ा नहीं हैं। उनकी जगह है उनकी शहादत का सतत अहसास कराने वाली महेंद्र अरोड़ा लिंक रोड।

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19 जनवरी 1935 को जन्मे महेंद्र अरोड़ा की पत्नी के अलावा उनकी वृद्ध मां तीन पुत्र और दो पुत्रियां बड़ा पुत्र शैलेंद्र अरोड़ा व्यापार कर रहा है। उससे छोटा जीतेंद्र अरोड़ा बैंगलोर में जल सेना में है तथा सबसे छोटा नरेंद्र 12वीं कक्षा का छात्र बड़ी पुत्री मीरा रोड जोधपुर विश्वविद्यालय से एमएससी कर रही है वहीं छात्र संघ की महासचिव भी है उस से छोटी पुत्री दसवीं कक्षा में पढ़ रही है।

सुमति अरोड़ा को राजस्थान सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार से कोई सहायता नहीं मिली। वह कहती हैं कि यदि उन सरकारों को सहायता नहीं देनी थी तो नहीं देते, पर इस तरह की घोषणाएं करके हमारे दिल पर जख्म तो न लगाते।

उल्लेखनीय है अब इस परिवार को केवल विश्व हिंदू परिषद ने ₹100000 की राशि भेंट की है। वह राम मंदिर के पुनर्निर्माण पर भी अटल हैं। वे कहती हैं जिस काम के लिए लोगों ने अपने प्राणों की बलि चढ़ा दी। वह तो होना ही चाहिए। इस मुद्दे पर तो समाज की विजय होनी ही चाहिए।

शहीद सेठा राम ने कहा था भगत सिंह कभी घर से पूछ कर नहीं निकला करता

मथानिया 1 वर्ष पहले तक यह गांव सिर्फ प्याज और मिर्ची की खेती के लिए समूचे भारत में मशहूर था लेकिन अब यह दोनों वस्तुएं गौंण हो गई हैं और उनकी जगह सिर्फ एक ही नाम इसको प्रसिद्धि दिला रहा है सेठाराम।

2 नवंबर 1990 को उसे उस समय गोली मार दी थी जब अयोध्या में अश्रु गैस के गोले उठा उठा के नाली में डाल रहा था। उन्हें बेअसर कर रहा था। एक सिपाही ने उसका मुंह खोला और दूसरे ने बंदूक की दुनाली मुंह में रखकर घोड़ा दबा दिया। उसके मित्रों ने पूछा कि घर वालों से पूछ कर जा रहे हो तो सेठा राम का जवाब था भगत सिंह पूछ कर नहीं निकलता।

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अब उसके परिवार में माता-पिता के अलावा दो भाई हैं सेठाराम की विधवा और दो बच्चे उनके पुत्र की आयु 4 वर्ष है जबकि छोटे भाई वीरेंद्र परिहार घर में खेती का काम कर रहा है परिवार में किसी वस्तु की कोई कमी नहीं है इसलिए सरकारी मदद के प्रति उपेक्षा का भाव है।

विश्व हिंदू परिषद ने ₹100000 की सहायता राशि की पत्नी मीनाक्षी देवी के नाम से बैंक में जमा कर दी है। सभी ग्रामीणों ने गांव के चौक में जेठाराम की प्रतिमा स्थापित की है जिसका अनावरण साध्वी सरस्वती ने किया। शहीद सेठा राम के पिता से देश के अन्य राम भक्तों को सिर्फ दो काम करने की सलाह देते हैं, एक राम जन्म स्थान मंदिर पर भव्य मंदिर का निर्माण, दूसरे अयोध्या हत्याकांड के हत्यारों को उनके किए की सजा।

मेरा बेटा राम काज हेतु शहीद हुआ

अलीगढ़ जनपद की इगलास तहसील का एक गांव है बलराम नगला। बलराम नगला के शहीद भगवान सिंह के परिवार से मुलाकात काफी प्रेरणा दायक रही। पिताजी जवाहर सिंह गर्व से कहते हैं हमारा बेटा कोई बुरा काम करते हुए नहीं मारा गया। वह राम काज के लिए शहीद हुआ है। उसे मोक्ष मिला है। मेरा परिवार धन्य हो गया। पिता ही नहीं परिवार के सभी सदस्यों की यही प्रतिक्रिया है।

शहीद भगवान सिंह की मां आशीष कौर कहती हैं पुत्र की शहादत से दुख किस बात का हम ही मर जाए तो दुख करने से क्या फायदा। इस राम भक्तों का लाडला भगवान सिंह गांव से मथुरा जाकर पढ़ाई कर रहा था। वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आया।

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मथुरा में ही स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। संघ शिक्षा वर्ग में तृतीय वर्ष का शिक्षा प्राप्त किया। कुछ दिनों तक विस्तारक रहा। उसके बाद 30 वर्षीय भगवान सिंह ने मथुरा नगर पालिका में नौकरी कर ली। परिवार में माता-पिता के अलावा दो भाई व बहन हैं। इन सभी का विवाह हो चुका है। 25 बीघे खेती है।

कृषि ही जीविका का मुख्य साधन है। भगवान सिंह के शहीद होने के बाद विश्व हिंदू परिषद के अधिकारी व कार्यकर्ता इस परिवार का ध्यान रख रहे हैं। परिवार को ₹10000 की सहायता राशि दी गई। राम मंदिर के सवाल पर पिता जवाहर सिंह कहते हैं हिंदुओं के ऐसे सभी मंदिरों को पुनः बनाना चाहिए जिन्हें तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। जो लोग अन्यत्र पर मंदिर बनाने की बात कर रहे हैं वह हिंदू समाज को धोखा दे रहे हैं।

जय श्री राम कहा और जो समाधि ले ली

अयोध्या से 30 अक्टूबर को मतवाले कारसेवक सरकारी संगीनों से अपने लहू का फाग खेलकर भगवा फहरा चुके थे। विजई कारसेवकों की हुंकार अयोध्या की सीमाओं को लांघ कर दिग दिगंत में अनुगुंजित थी।

जहां अयोध्या में अशोक सिंघल के आह्वान पर कारसेवकों ने 2 नवंबर को श्री राम लला के दर्शनों का संकल्प लेकर सरकारी तंत्र को फिर चुनौती दे डाली थी, अपने घरों से सरफरोशी की तमन्ना लेकर निकल पड़े वह राम भक्त जो अभी तक आयोध्या नहीं पहुंच सके थे उदास थे लेकिन जैसे ही इन राम भक्तों को पता चला अब 2 नवंबर को रामलला के दर्शनों का आह्वान किया गया है इनके उत्साह का कोई ठिकाना ना रहा।

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खेतों बीहड़ों शरण लिए रामभक्त एक बार फिर अयोध्या कूच की तैयारी में जुट गये। नंगे बदन, सूजे पैर, भूखे पेट पर दमकते चेहरे लिए राम भक्तों की टोली अयोध्या के लिए चल पड़ी। ऐसी ही एक टोली का नायक था कर्नाटक जिले की मंडी दिल्ली का रहने वाला 26 वर्षीय युवक नारायणन यह टोली पुलिस से बचती हुई पैदल ही बिहड़ों के रास्ते अयोध्या की ओर चल पड़ी।

सब तरह की विघ्न बाधाओं को लगते हुए 1 नवंबर को नारायणन अपने मित्रों के साथ गोमती के किनारे तक पहुंच गए जहां से अयोध्या लगभग 50 किलोमीटर दूर थी। रामलला के दर्शनों की उत्कंठा के सम्मुख गोमती की लहरों की क्या बिसात। निर्णय हुआ गोमती को तैर कर पार किया जाए।

नारायणन लहरों में कूद पड़े जल का स्तर बढ़ा हुआ था गोमती की लहरों ने उसे पार ना होने दिया। नारायणन गोमती में बह गया। उसकी देह तक ना मिली। युवक अपने बूढ़े मां बाप का एक बड़ा सहारा था उसके जाने से वृद्ध दंपति के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया इनके पिता वीरन्ना ने इस संबंध में विहिप को भी लिखा है।

बच्चों को भी पति के समान भी और राम भक्त बनाऊंगी

राम मंदिर कार सेवा में शहीद होने वाले 28 वर्षीय राजीव दुबे की 25 वर्षीय पत्नी वीना दुबे जहां पति के वियोग में पत्थर की मूर्ति की भांति जिंदा है वहीं उन्हें इस बात का गर्व है कि वे ऐसे राम भक्त की पत्नी हैं जो देश की आवाज पर राम मंदिर की कार सेवा में जय श्री राम का नारा लगाते हुए शहीद हो गया।

पति के वियोग में दुखी भी ना अपने आंखों के आंसू को पूछते हुए 5 वर्षीय पुत्र आनंद और 18 माह की पुत्री गौरी की ओर निहारते हैं। कहती हैं मैं अपने पति के अरमानों को पूरा करूंगी और इन दोनों बच्चों को केवल राम भक्ति ही नहीं बल्कि चंद्रशेखर आजाद और वीरांगना झांसी की रानी जैसा वीर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करूंगी।

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इंटरमीडिएट उत्तीर्ण बिना पति के सपनों को पूरा करने के लिए बच्चों को उत्तम शिक्षा दिलाने के लिए इतना जरूर चाहती हैं कि उन्हें कोई नौकरी मिल जाए। वीना ने बताया अयोध्या जाने से पूर्व उनके पति की अभिलाषा थी उनकी गौरी प्रशासनिक अधिकारी और बेटा सेना का अफसर बने।

गांधीग्राम कृष्णा नगर कानपुर निवासी शहीद राजीव दुबे कृपा शंकर दुबे के बड़े पुत्र थे। राजीव दुबे के अनुज प्रदीप कुमार बीएससी करने के बाद भी नौकरी से वंचित है। दूसरा अनूप मधु जन्मजात दिव्यांग है। मां मनोज कुमारी दुबे शिक्षिका हैं।

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परंतु युवक बेटे के वियोग में टूट चुकी हैं। उसके बाद भी वे गर्व से कहती हैं मैं अत्यंत सौभाग्यशाली हूं कि मेरा बेटा भारत मां की आवाज में राम के काम आ गया। वह कहती हैं मेरा राजीव गौरी व आनंद के रूप में आज भी जीवित है।

शहीद राजीव के अनुज प्रदीप बताते हैं पुलिस वालों ने भैया को निर्दयता पूर्वक तब तक मारा जब तक मैं जिंदा रहे। वह कहते हैं कि भैया का शव लेकर भाग न जाते। तो हत्यारे पुलिस वाले भैया का शव भी लापता कर देते।

उनकी मां ने बताया कि विहिप ने सहायता के रूप में ₹100000 दिए थे। उसे गौरी और आनंद के नाम से जमा कर दिया है। उनकी इच्छा है बेटे की आदमकद प्रतिमा कानपुर के प्रवेश द्वार रामादेवी चौराहे पर स्थापित की जाए, ताकि बलिदान की भावना बलवती होती रहे।

गोली खाना स्वीकार किया परंतु जय श्रीराम का जय कारा नहीं छोड़ा

कानपुर के ही स्वर्गीय चंद्रिका प्रसाद नागर का 17 वर्षीय पुत्र अमित अपने भाई डॉक्टर सतीश कुमार नागर के साथ 29 अक्टूबर को राम मंदिर की कार सेवा के लिए अयोध्या रवाना हुआ।

जब वह 2 नवंबर को कोतवाली अयोध्या के सामने से जय श्री राम के गगनभेदी जयकारे के उद्घोष के साथ राम जन्म भूमि की ओर बढ़ रहा था चार पुलिसवालों ने भद्दी भद्दी गालियां दी और अमित के सीने पर यह कहते हुए लाए बंदूक की नालियां लगा दीं कि यदि राम का नाम लिया तो भून दिया जाएगा।

राइफल की नली ने युवा अमित का जोश बढ़ा दिया वह जन सैलाब का नेतृत्व करते हुए जोर से बच्चा बच्चा राम का जन्म भूमि के काम का उद्घोष करते हुए आगे बढ़ने लगा। तभी प्रशासनिक हत्यारों की राइफलें और पिस्तौलें आग उगलने लगीं।

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अमित के सीने से खून फूट पड़ी। यह बताते हुए अमित के बड़े भाई सतीश फफक पड़े उन्होंने कहा हमें गर्व है अपने अनुज के उस शानदार बलिदान पर जिसे बंदूके नहीं दबा सकीं। वही हमें यह गम भी है कि बलिदान की होड़ में छोटे भाई से पिछड़ गए और जालिम पुलिस वालों से उसके शव को न प्राप्त कर सके।

सतीश बताते हैं जब खून से लथपथ अपने अनुज को उठाने का प्रयास कर रहे थे। तभी कड़क आवाज में कहा गया इसे भी समाप्त कर दो। दोनों को सामने खड़ी गाड़ी में फेंक दो। परंतु लगता है गोलियां समाप्त हो चुकी थी इसलिए पुलिस के जवानों ने उसे तब तक दबाए रखा जब तक वे अमित के शव को गाड़ी से उठा नहीं ले गए। अयोध्या की गलियां राम भक्तों के रक्त से सराबोर थी।

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उन्होंने बताया कि अमित बचपन से ही माता पिता के प्यार से वंचित हो गया था। वह बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति का था। उसे गीता रामायण दुर्गा सप्तशती कंठस्थ थी। वह यदि चाहता तो शहीद होने से बच सकता था। भाग सकता था।

परंतु उसने इस नारे को सार्थक कर दिया कि बच्चा बच्चा राम का जन्म भूमि के काम का। उन्होंने कहा कि मैं जिंदा रह कर भी तब तक मृतक समान हूं जब तक राम जन्म स्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता।

बर्बरता का जख्म अभी भरा नहीं

स्वर्गीय नीरज चौरसिया मथुरा का यह शहीद कारसेवक अयोध्या ना पहुंच सका। 30 अक्टूबर की कार सेवा में भागीदार नहीं बन सका इससे पहले ही संसार से विदा ली। 29 अक्टूबर को अयोध्या जाने के लिए रस्साकशी चल रही थी इसी प्रदर्शन ने उत्साही नीरज शामिल हुआ 18 वर्षीय बालक उस दिन पुलिस की गोली का शिकार हो गया।

उस दिन जब कारसेवक भरतपुर गेट, आर्य समाज एवं द्वारकाधीश से आगे बढ़ रहे थे। पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया यह युवक आगे बढ़कर अपने घर पर चला गया और सत्याग्रही नीचे गली में थे नीचे से पुलिस ने निशाना लेकर गोली मारी और नीरज भाई ढेर हो गया।

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मां शकुंतला आज भी अपने बेटे के जुदा होने के गम से मुक्त नहीं हो सकीं। पिता बैजनाथ छय रोग से ग्रसित हैं। समय से पूर्व बूढ़े हो चले हैं। उस दिन का घटनाक्रम बताते हुए रोने लगते हैं।

घटना के दूसरे दिन घर पर कुछ पुलिसकर्मी पहुंचे जहां की मृत्यु हो गई थी उस स्थान पर पड़े खून के धब्बे मिटा दिए, खून के धब्बे तो मिटा गए लेकिन बर्बरता काजल आज भी कायम है। वह कहते हैं राम मंदिर निर्माण के समय पर हर सहयोग दिया जाएगा। नीरज के घर में तीन भाई एक बहन है। अर्थ उपार्जन का एकमात्र साधन विश्राम घाट पर पान की दुकान है।

भावुक मन की पीड़ा

होली गेट मथुरा निवासी सूरज भान जैन की आंखों में आंसू अभी सूखे नहीं है। 30 अक्टूबर की कार सेवा के बाद 2 नवंबर का हत्याकांड भी चुका था। अपने मित्र नीरज की मृत्यु का सदमा अयोध्या ना सह पाने की पीड़ा में एक दिन भगवान दास जैन ने आत्महत्या कर ली। विदा होने से पहले एक पत्र लिखा आदरणीय मैं आत्महत्या कर रहा हूं।

बॉबी मित्र नीरज के बिना मन नहीं लग रहा है। मैं पूर्णतया सुखी हूं फिर भी मेरा मन उदास है मुलायम सिंह यादव को समर्थन देने की कल्पना से और फिर होने वाले नरसंहार से मेरी आत्मा कांप उठी है। मेरी मौत के बाद मेरे परिवार जन को परेशान मत करें। आपका बेटा भगवान दास जैन।

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इसके बाद भगवान दास जैन ने संसार से अंतिम विदा ले ली उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार नहीं रही कांग्रेस का सफाया भी हो गया लेकिन भगवान दास की आत्मा को शांति तभी मिलेगी जब मंदिर बनेगा यह प्रतिक्रिया भगवान दास के पड़ोसी की है।

घर में पिता सूरजभान का परिवार काफी लंबा है भगवान दास के तीन भाई एक बहन है। बड़ा भाई विवाहित है छोटे भाई राकेश, संजय, बहन पूनम छोटे हैं। मध्यम वर्गीय परिवार है स्वाभाविक रूप से आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।

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